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________________ खेत्तकप्प ७६८-अभिधानराजेन्द्रः भाग-३ खेत्तकप्प समासतः क्षेत्रकल्पप्रतिपादनायाहएतो समासतो हं,वोच्छामि खेतकप्पं तु। जं देवलोगसरिसं, खेत्तं निप्पय्ववातियं जंच॥१॥ एसो तु खेत्तकप्पो, देसा खलु अद्धछव्वीसं। पं०भा० जत्थ य गुणा इमे तू, खेमाईया मुणेयव्वा। खेमो सिवो सुभिक्खो, अप्पप्पाणो उक्स्सयमणुन्नो // 6 // एसो तु खेत्तकप्पो, गामनगरपट्टणाइन्नो। (खेमो सिवादि) खेमो--डमरविरहिओ। सिवो-रोगविरहिओ। सुभिक्खो-पउरन्नपाणो / अप्पपाणो पि-वीलियाविरहिओ / उवस्सयमणुनो-इत्थिनपुंसकाइविरहिओ / समासेज्ज कयपवरविवज्जिओ, गामणगराकराणि बहूणि बसामासपाउम्गाणि खेत्ताणि // 6 व्यासतो गाथाभिरेव तद्विवर्णमाहखेमो डमरविरहितो,रोगाइविरहितो य सिवो होति / 10 / पउरन्न-पाणदोसा,होति सुभिक्खो मुणेयव्यो। जलूगासंखण मुइंग-पिसुगमसगादिविरहितो जो तु // 11 // सो होति अप्पपाणो, अप्पअभावम्मि थोवे य। समभूमिरेणुवज्जिय, परितुक्खमोवस्सया मणुन्नाओ / / 12 / / गामणगरा विय बहू, पाउग्गा मासकप्पस्स। सज्जणजणो य भद्दो, जहियं च मणुनसाहुजोणीओ।१३। तारिसए खेत्तम्मी, समणुन्नाओ विहारो तु। खेमो य सिवो य तहा, खेमसुभिक्खो य एव संजोगा।१४। णेयव्वा छसु पदेसुं, सत्तसु वा आणुपुटवीए। अहवोदयऽग्गिसावग-तक्करबालमयवजिओ रंमो॥१५॥ अणाययणं पासत्थोसन्नकुसीलाइलिंगमेत्तपडिच्छन्ना नत्थि एरिसे खेत्ते विहरियब्व को इपुण आलंवणाइंकाऊणं ण विहरइ तत्थ।। 18|| 16 / / एत्थि जहं अग्गिभयं, निरग्गिताहमिय गिहा वा। जहियं च सावयभयं, सीहादीणं ण विज्जए देसे // 20|| जहियं च णत्थि चोरा-देवही पंथि मोसादी। वालाउ सप्पगोणस्स, मादीदावोहिगभयंच णत्थि जहिं // 21 // मणसो समाहिकारी, सो रंमो होति णायव्वो। सूरो अणनगम्मो, जत्थ णरिंदो तहिं सुहविहारं // 22 // साहुगुणे व वियाण-ति कुणति य साहूण जा रक्खं / अहिरन्नसुवन्ने ते, छजिवनिकायसंजमे णिरता // 23|| जाणति जणो य एवं, जत्थ तु साहूण गुणनिसह। सज्झाओ जहि सुज्झति, कुदिहिगिन्नो णयविओ होति॥२४॥ एसण इत्थी सोही, य जत्थ तहियं निवासे तु। जहियं च अणायतना, ण संति के पुण अणायतणा // 25 // मणिय साहम्मि भिन्न-वित्ता मूलुत्तरदेसपडिसेवी। एतेहिं जो देसो, आइनो सहय अन्नतित्थीहिं // 26|| सत्थंधवाहगामा, पुलिंददेसा अणायतणा। एतारिसम्मिखेत्ते, अप्पडिबद्धण विहरियव्वं तु // 27 // आलंवणा विकित्तुं तु इमातिकांतु ण विहरंति। वसहीसंथारो भ-तपाणवत्थे पाडिग्गहे सेहा॥२८|| सवा य पुटवसंथुय, असहहं ते ये पडिबंधो। (वसहि) संथारवसहि सीयकाले निवाया, उण्हकाले सीयला, वासासु सीयविवज्जिया, अणोवरिसा संथारगा च। मरुक्खमाइ पाणयंच सीयलं वत्थाइतामलित्तकं सिंधवाइलब्भंतिपडिगहा इत्थं पारंपरया लब्भंति / सेहा उ उप्पज्जति सद्धा य दुद्दहिघयाइ देंति / पुव्वपच्छासंथुएसु नेहाणुरायपडिवंधण वा असद्दहंतस्स वा मासकप्पं पडिबंधो होइ। किं मासकप्पेण बहुतरीरियासु विराहणा नारगाईणं च परिहाणी, को इ तित्थवोच्छेयो ययोइजंच भणध णितियवासे संवासाइदोसा अंतोमासं संवसमाणस्स तो वधसंवासाइं दोसा होहिंति / एवं निइपावसे दोसे असद्दहंतस्स आह॥२८॥ फासुया एसरिलायं, णिवातापरितुक्खमा।।२९।। एरिसा साहुयानुग्ग, वसही दुल्लमं न हि। एमेव य संथारा, सुलमा जोग्गा य साहूणं // 30 // भत्तं सुलभमणुनं च, परिसंणत्थि अन्नहि। बत्था पडिग्गहा विय, सुलभा सहाये एत्थ खेत्तम्मि॥३१॥ अन्नत्थ दुल्लमा तु, तेण तु एत्थं बहुगुणं तु / सट्टा आहारादी, देंति जोगणिसंयुता चेव // 32 // पुर पच्छ दट्ठभट्ठा, य अन्नहिं णत्थि णरिसग्गा। उडुबद्धे मासकप्पे-ण विहारो तंण सद्दड इमेहि // 33 // संजम आतविराहण, वचंते गामणुग्गामं। णाणादीण यहाणी, जोगं खेत्तं तु मम्गमाणेणं // 34 // ................ // 16 // णिरविक्खा वि य जहियं, समणगुणविदूय जत्थ जणो। (उदय त्ति) उदएणय पेलिज्जतिनवुज्झंतीर्थः / अग्गिणान मज्झंति, धणकवाडहम्मियग्गओ कोट्टिमताणाओ य / अहाकडाओ वसहीओ सरीरोवहितेण सावगतक्करपरचक्कविरहिएसु देसेसु साहुविहारो अगुण्णाओ। तत्थ य साहूणं कालपरिभोगी जणो सुतत्थपोरिसी काउं तइयाएपोरिसीए भिक्खदेलाए।।१५।। (गाहा)पुढवीपइय सूरो विसेसो जाणइ साहूणं जहा एए अहिरन्नसोवन्नियमंगलभूया सव्वसंगवज्जिया समणगुणा य जणो जाणइ आहाराइ॥१६|| एताणि चेवमाई-याणि आरीय खेत्तसहिआणि // 17 // पुटवभणियाणि जाणि उ, ताइं खलु सत्त य हवंति। णाणस्स दंसणस्सय, जत्थ य नत्थी य उवघातो॥१८॥ एसो तु खेत्तकप्पो, जहियं च अणायणा नच्छि। उदगभयतुणादी, जह कुंकणसिंधुतामलितादी॥१९॥ (नाणस्स)नाणदंसणचरित्ताईणि जत्थ विही तवणियमसंजमजोगाण य परिवुड्डी अणायतयाणि य जत्थ लोइया / इत्थिपुरुसनपुंसका वा, वाउरिया वा वाहलोद्धियचरगसक्काइया विवक्खभूया नस्थि लोउत्तरं च
SR No.016145
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1388
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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