________________ कुरुचंद ५६१-अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 कुरुविंद वक्खित्तचित्तेण मए न नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति // 13 // तो सारेयरभावं, निवेण कव्वाण पुच्छिया विबुहा। जपंति नहु विसेसं, एसि वयं देव ! पिच्छामो॥१४|| जं इह इमेहि वक्खित्तचित्तया अक्खिया फुडं सो उ। अजिइंदियत्तमूलं, स अधम्मो तेण चिंतमिणं // 15|| तं सोऊणं सयमवि, वीमंसित्ता पयंपइ नरिंदो। कह मतिसत्तम ! अहं, उत्तमधम्म वियाणिस्सं|१६|| पभणइ मंती नरवर ! जिणदंसणिणो वि अत्थि इह मुणिणो। विहियपयत्था पालिय-महव्वया पवरगोवसमा / / 17 / / समतिणमणिणो सममित्तसत्तुणो तुल्लरंकनरवइणो। महुयरवित्ती कयपाणवित्तिणो धम्मफलतरुणो // 18|| सज्झायज्झाणरया, जिइंदिया जियपरीसहकसाया। ते आहूया वि इहं, इंति न इंति व न याणामि // 16 // भणियं निवेण वरमंति! भत्ति वाहरसु ते महामुणिओ। तत्तो अखुद्दबुद्धी, खुड्डमुणी तेण आहूओ॥२०॥ नमिउं भणियं रना, खुड्डय ! किं मुणसि काउतं कव्वं / गुरुपायपसाएणं, मुणेमि इय भणइ साहू वि॥२१॥ तो कुरुचंदनरिंदो,तयं समस्सापयं पयंपेइ। सिंगारस्स विरहिया, मुणिमा वि हु पूरिया एवं // 22|| खंतस्सदंतस्स जिइंदियस्स, अज्झप्पजोगे गयमाणसस्सा किं मज्झ एएण वि चिंतिएणं, सकुंडलं वा वयणं नव त्तिा२३। भणइ निवो खुड्ड! तए,सिंगारेणं न पूरिया किमियं ? स भणिइ जिइंदियाणं, जईण वुत्तं न सो जुत्तो / / 24 / / सिरिअंगारो सिंगारउ त्ति जंपांत तं पि जइ जइणो। ता नूण चंदबिंबा, अग्गीवुट्ठी समुप्पन्ना // 25 // किञ्चउल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलिया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽवलग्गई।२६।। एवं लगंति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा। विरत्ता तु न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए।।२७॥ इय दुहमइंदियदुट्ठस्स अस्संदमस्स वरमुणिणो। वयणं सुणिउंराया, चमक्खिओ चिंतए चित्ते // 28|| अमयं रसेसुगोसीसचंदणं चंदणेसुजह पवरं। तह सव्येसु विधम्मेसुनूण धम्मो उजिणभणिओ॥२६॥ एवं चिंतिय सम्म खुड्डेण समं गमित्तु गुरुपासे। सोऊणं धम्मकह, गिहत्थधम्म पवजेइ // 30|| चिरकालं परिपालिय, धम्म सचिवेण रोहगेण समं। कुरुचंदमहाराओ, जाओ सुक्खाण आभागी" |31|| "एवं निशम्य चरितं सुविवेकिकेकि, जीमूतगर्जितनिभं कुरुचन्द्रराज्ञः। भव्या जनाः सपदि गड्डरिकाप्रवाह, मुक्त्वाऽऽश्रयन्तु विशदं जिनराजधर्मम्' // 32 // इति कुरुचन्द्रनरेन्द्रकथा। ध०र० / आ०म० / आवस्त्यधीश्वरस्य ताराचन्द्रस्यपुत्रे बालवयस्ये, ('ताराचंद' शब्दे कथा वक्ष्यते हरिचन्द्रस्य पितरि कुरुमत्याः पत्यौ नास्तिकवादरते नृपभेदे, आ०म०प्र०ाआ००। (तत्कथा 'ललिअंगदेव' वक्तव्यतायाम्) कुरुचर त्रि० (कुरुचर) कुरुषु चरतीति कुरुचरः / कुरुदेशजे, स्त्रियां टित्वाद् डीए / प्राकृते तु "प्रत्यये डीवा 8 / 3 / 31 / इति डीर्वा / कुरुचरी, कुरुचरा। प्रा०३ पाद। कुरुजंगल न० (कुरुजाङ्गल) जङ्गलमेव जाङ्गलम् / कुरुषुजाङ्गलम् कुरुक्षेत्रे, कुरवश्च जाङ्गलाश्च द्वन्द्वः / कुरुदेशे, जाङ्गलदेशे च / पुं० भूम्नि, कुरवश्च जाङ्गलं च "विशिष्टलिङ्गो नदीदेशो ग्रामाः" 2 / 4/7 / (पाणि०) समा०ा एकद्भावे कुरुजाङ्गलम् / तत्समाहारे, न० / वाच०। "इहेव जबूदीवे दीवे भारहे वासे मज्झिमखंडे कुरुजंगलजणवए संखावई नाम नयरी।" ती०७ कल्प। कुरुड पुं० (कुरुट) कुणालवास्तव्ये उत्कुष्टस्य मातृष्वसेयके भ्रातरि, आ०क०। ('सुयकरण' शब्द कथा वक्ष्यते) कुत्सितं रोटति / 'रुट दीप्तिप्रतीधाते कः। सितावरकशाके, वाच०। कुराण न० (कुरुण) राजकीयेऽन्यदीये वा वित्ते, व्य०२ उ०। कुरुत्थल न० (कुरुस्थल) मथुरास्थेस्थलभेदे, ती०६ कल्प। कुरुदत्त पुं० (कुरुदत्त) स्वनामख्याते हस्तिनापुरवास्तव्ये इभ्यपुत्रे, स प्रव्रजितो नैषेधिकी परीषहमधिसह्य सिद्ध इति। उत्त०२ अ०। 'कुरुदत्तो वि कुमारो, संवलिफालिव्व अग्गिणा दड्डो। सो वितह दड्डमाणो, पडिवन्नो उत्तमं अटुं।।" संथा०। कुरुदत्तपुत्त पुं० (कुरुदत्तपुत्र) कुरुदत्तस्य पुत्रे ईशानेन्द्रपूर्वभवजीवे, भ०। तत्कथाएवं खलु देवाणुप्पिया णं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए अट्ठमं अट्ठमेणं अणिक्खित्तेणं पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेण उड्डं वाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय सूराभिमुहे आयसावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाहुणित्ता अट्ठमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसइत्ता तीसं भत्ताई अणसणाई छेदित्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि जाइसए वत्तव्वया सव्वे वि अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते वि, णवरं सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबूद्वीवे दीवे, अवसेसं तं चेव // भ०३ श०१ उ०। कुरुदत्तसुय पुं० (कुरुदत्तसुत) हस्तिनापुरे जाते स्वनामख्याते इभ्यपुत्रे, "कुरुदत्तसुतोऽनगारः" इति शान्त्याचार्यः कुरुदत्त इति लक्ष्मीवल्लभः / उत्त०३ अ०। कुरुमइ स्त्री० (कुरुमती) ब्रह्मदत्तचक्रवर्तिनः सकलान्तःपरप्रधानाग्रमहिष्याम्, उत्त०१३ अ० / स० / आचा०। कुरुचन्द्रनृपभायाम्, आ०म०प्र०। आ०चू०। कुरुया स्त्री० (कुरुका) देशतः सर्वतो वा शरीरस्य प्रक्षालने, व्य०१ उ०। कुरुरायपुं० (कुरुराज) कुरूणां राजा टच समा० / वाच०। कुरुदेशनाथे, "अदीणा सतकुरुराया'' स्था०७ ठा०। कुरुवासि(ण) 0 (कुरुवासिन्) देवकुरूत्तरकुरुजेऽनृद्धिमन्मनुष्यभेदे, / स्था०६ ठा०॥ कुरुविंद पुं० (कुरुविन्द) कु रुन् मूलकारणत्वेन विन्दति। विदशः। "शे मुचादीनाम्"७।१।५६। इति (पाणि०) मुम् /