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________________ किरिया 548 - अभिधानराजेन्द्रः भाग-३ किरिया तस्स णं संपराइया किरिया कन्जइ / अहासुत्तं रियमाणस्स प्रतलायतो लोहादिकुट्टनप्रयोजनो लोहाकाराद्युपकरण विशेषः ( मुट्ठिए इरियावहिया किरिया कज्जइ , उस्सुत्तं रियमाणस्स संपराइया त्ति) लघुतरो घनः (अहिगरणिखोडि त्ति) यत्र काष्ठेऽधिकरणी निवेश्यते किरिया कन्जइ, से णं उस्सुत्तमेव रियइ, से तेणटेणं / (उदगदोणि त्ति) जलभाजनं, यत्र तप्तं लोह शीतलीकरणाय क्षिप्यते। सुगमम्। भ०७ श०१ उ० (अहिगरणसाल त्ति) लोहपरिकर्मगृहम् / भ० 16 ज्ञ०१ उ०। संवुडस्सणं भंते ! अणगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जा व आउत्तं धनुषा विध्यतःवत्थपडिग्गई कंबलं पायपुच्छणं गेण्हमाणस्सवा निक्खिव-माणस्स पुरिसे णं भंते ! धणुं परामुसइ 2 उसुं परामुसइ 2 ठाणं ठाइ वा तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ , संपराइया 2 आययकण्णाययं उसुं करेइ 2 उठें वेहासं उसु उव्विहइ, तए किरिया कज्जइ ? संवुडस्स णं अणगारस्स जाव तस्स णं णं से उसु उदु वेहासं उव्विहिए समाणे जाई तत्थ पाणाई भूयाई इरियावहिया किरिया कजइनो संपराइदा किरिया कन्जइ / से जीवाई सत्ताई अभिहणइ बत्तेइ लेस्सेइ संघाएइ संघट्टेइ केणद्वेणं भंते ! एवं वुचइ संवुडस्स णं जाव नो संपराइया किरिया परितावेइ किलामेइ ठाणाओ टणं संकामेइ जीवियाओ कज्जइ ? गोयमा ! जस्सणं कोहमाणमायालोमा वोच्छिण्णा भवंति ववरोवे। तए णं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए ? गोयमा ! जावं तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ , तहेव जाव उस्सुत्तं च णं से पुरिसे धM परामुसइ 2 जाव उविहइ, तावं च णं से रीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइसे णं अहासुत्तमेव रियइ पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं से तेणतुण गोयमा ! जाव नो संपराइया किरिया कन्जइ। पुढे / जेसिं पिय णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए ते वि य णं सुगमम्। भ०६ श०७ उ० जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, एवं धणू पिट्टे पंचहिं (12) सण्डासकेन तमलोहमुक्षिपत: किरियाहिं जीवा पंचहिं छहारू पंचहिं उसू पंचहिं सरे पत्ताणे पुरिसे णं भंते !अयं अयकोटुंसि अयोमएणं संडासएणं फले प्रहारू पंचहिं अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए उव्विहमाणे वा पविहमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा ! जाव चणं गुरुयसंभारियत्ताए अहे वीससाए पचोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई से पुरिसे अयं अयकोर्टसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहिंति वा जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कई किरिए ? पविहिंति वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवाय- गोयमा ! जावं च णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए जाव ववरोवेइ किरिया पंचहिं किरियाहिं पुढे ; जेसिं पिणं जीवाणं सरीरेहितो तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पुढे। अयणिव्वत्तिए अयकोट्टे णिव्वत्तिए संडासए णिव्यत्तिए इंगाला जेसि पिणं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए ते जीवा चउहिं णिव्वत्तिया इंगालकड्डिणी णिव्वत्तिया भच्छा णिव्वत्तिया ते वि किरियाहिं धणू पुढे, चउहिं जीवा, चउहिं पहारू, चउहिं उसू, णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठ। पुरिसे णं भंते ! पंचहिं सरे, पत्ताणे फले पहारू पंचहिं जे वि य से जीवा अहे अयं अयकोट्ठाओ अओमएणं संडासएणं गहाय अहिगरिणी पचोवयमाणस्स उवम्गहे चिट्ठति ते वि य णं जीवा काइयाए उक्खिवमाणे वा णिक्खिवमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा!जावं | जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा।। च णं से पुरिसे अयं अयकोट्ठओ जाव णिक्खिवइत्ता तावं च णं (पुरिसे णमित्यादि) (परामुसइ त्ति) परामृशति गृह्णाति (आययकण्णाय से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं ति) आयतः क्षेपाय प्रसारितः कर्णायतः कर्ण यावदाकृष्टः, ततः पुढे,जें सि पिय णं जीवाणं सरीरेहिंतो अयणिव्वत्तिए संडासए कर्मधारयात् आयतकण्य तः, अतस्तम् इषु वाणं (उड्डे वेहासं ति)। णिव्वत्तिए चम्मेद्वए णिव्वत्तिए मुट्ठिए णिव्वत्तिए अधिगरिणी- उर्द्धमिति वृक्षशिखराद्यपेक्षयाऽपि स्यादत आह-विहावसीत्साकाशे णिव्वत्तिए अधिगरणिखोडीणिव्वत्तिए उदगदो-णीणिव्वत्तिए (उट्विहइ त्ति) उर्द्ध विजहाति, ऊर्द्ध क्षिपतीत्यर्थः / ( अभिहणइ त्ति) अधिगरणसालीणिव्वत्तिया ते वियणंजीवा काइयाएजाव पंचहिं अभिमुखमागच्छतो हन्ति (वत्तेइ त्ति) वर्तुलीकरोति, शरीरसङ्कोचाकिरियाहिं पुट्ठा। पादनात् / (लिसेइ त्ति) श्लेषयत्यात्मनिश्लिष्टान् करोति (संघाए त्ति) "पुरिसे णं भंते !" इत्यादि / (अयं ति) लोहं (अयकोट्ठसि त्ति) अन्योऽन्यं गात्रैः सहतान् करोति (संघट्टेह त्ति) मनाक स्पृशति लोहप्रतापनार्थे कुशूले (उव्विहमाणे व त्ति) उत्क्षिपन्वा (पविहमाणे व (परितावे इ ति) समन्ततः पीडयति (किलो मे इ ति) त्ति) प्रक्षिपन् वा (इंगालकड्डिणि त्ति) ईषद्वकाप्रा लोहमययष्टिः। ( भच्छ मारणान्तिकादिसमुद्धातं नयति (ठाणाओ द्वाणं संकामेइ त्ति) त्ति) ध्यानखल्ल्वापः / इह चायः प्रभृतिपदार्थनिर्वर्तकजीवानां स्वस्थानात् स्थानान्तरं नयति, (जीवियाओववरोवेइ त्ति) व्युतंजीवितान् पञ्चक्रियत्वमविरतिभावेनावसेयमिति। (चम्मेट्टि त्ति) लोहमयः | करोतीति। (किरियाहिं पुढे त्ति) क्रियाभिः स्पृष्टः, क्रियाजन्येन
SR No.016145
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1388
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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