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________________ कयण्णू 351 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 3 कयण्णू गणहरपपुलाया आहा-रगं च १०न हु भवियमहिलाणां / / 126 // अभवियपुरिसाणं पुण, दसपुविल्लाउ केवलित्तं च। उज्जुमइविउलमई, तेरस एया उन हु हुंति॥१३०॥ अर्थवियमहिलाणं पिहु, एया नहु हुति भणियलद्धीओ। महुखीरासवलद्धी, वि नेव सेसा उ अविरुद्धा / / 131 // ता नूणं वेउव्विय-लद्धिपभावेण निम्मियं पहुणा। पुब्बिं विरूवरूयं, इमस्स साहुवियं तु इमं // 13 // तो विम्हिएण गुरुणो, मुणिणे यमए भिवंदिया सव्वे। दिन्नो य तेहि कयसिव-सुहलाभो धम्मलाभो मे // 133 / / गुणिणाय सुहारसवरि-ससुंदरा देसणा खणं तेसिं। पुहो य मुणी एगो, किं नामा एस मुणिनाहो // 13 // भणियं च तेण मुणिणा, अम्ह गुरु एस भुवणविक्खाओ। वुहनामा लद्धिनिही, विहरइ अणिययविहारेण // 13 // तं सुणिय अहं हिट्ठो, नमिउं गुरुणो गओ सट्ठाणम्मि परउयारिकगुरू, गुरू वि अन्नत्थविहरित्था // 136 / / तेण भणेमि अहं तो, बुहसूरी जइ य एइ इह कह वि। तो तुज्झ बंधवग्गं, सुहेण धम्म पि बोहिज्ज / / 137 / / जं मह परिवारस्सय, धम्मे विजत्थ मे वि तइया वि। विहियं विउविरूवं, तेणं परिहियकयमणेणं // 138 / / विमलो भणेइ सुपुरिस ! अब्भत्थिय इत्थ सो समणसीडो। तुम इच्चिय आणेओ, एवं तिपव्वजए खयरो॥१३६।। तो असुपुन्नवयणो, कुमरं आपुच्छिउंरयणचूडो। संपत्तो सट्ठाणं, सुमरंतो विमलगुणनिवहं // 140 / / कुमरो वि जिणं थुणिउं, निग्गंतूणं जिणिंदभवणाओ। पभणेइ भित्त ! एयं, रयणं इत्थोवगोवेहि।।१४१॥ गुरुए कहिं चि कजे, उवजुजिहिई इमं महारयणं। गेहे नीयं एमेव, जाइ ही पुण अणायरओ॥१४॥ जं आणवेइ कुमरत्ति, भणियं तत्थेव गुविलदेसम्मि। सो गोवइ तं रयणं, अह पत्ता दो विसगिहेसु॥१४३।। लहुलीवसओ पविसिय, बुद्धी चिंतेइ सामदेवसुओ। वंचित्तु विमलकुमरं, हरेमि गंतुं तयं रयणं / / 144|| अगणियकुमरुवयारे, अणियतइया विचेव सो पावो। जत्थनिहित्थं चिट्ठइ, रयणं पत्तो तमुद्देसं // 145 / / तत्तो उक्खणिउं तं, तत्थ बलंवत्थ वेढउंखविउं। अन्नत्थ निहियरयणं, गिहपत्तो चिंतइ निसाए।।१४६।। न हुसाहु मए विहियं, जरयणं नाणियं तयं गेहे। गिव्हिहिइ को वि अन्नो, केण वि दिट्ठ धुवं होही / / 147|| इचाइ वागजालं,परिचिंतंतस्स तस्स पावस्स। वारिगयस्स गयस्सव, न मणागवि आगया निद्दा // 148|| उद्वित्तु सो पभाए, तुरियं तुरियं गओ तहिं ठाणे। जागिहिस्सइ रयणं, ता कुमारो तग्गिहे पत्तो // 146 // उजाणगयं सुणिउं, च वामदेवं लहुं कुमारो वि। पत्तो तहिं चि दिह्रो, आगच्छंतोय इयरेण / / 150 / / तो अइसंभंतेणं, तेणं विस्सरियरयणठाणेणं। भीएण सुन्नहियएण, गिहिउं उवलक्खडतं / / 151 / / खिवियं कडिवट्टीए, पुड्डो विमलेण कीस संभंतो। दीससि वयसु तुह विरह-भावओ सो वि पचाह / / 152 / / तं संटविउ कुमारो, पत्तो जिणमंदिरे समं तेणं। मज्झम्मि गओ विमलो, ठिओ यवालो बहिं तहिं देसे॥१५३।। नाआ कुमरेण अह-ति संकिरो भीयमासो धणियं / नट्टो नट्ठविवेगो, तओ पएसा उ सिट्ठसुओ।।१५४|| दवदवपरहिं तिहिं वा-सरेहिं अडवीसजोयणे गंतुं। पञ्चागयचेयन्नो, विविहपलावे करेसि य / / 156|| तत्थुजु वि गंतूणं गहेमित रयणमियविचिंते। वलिओ सदेसभिमुहं, मुहं मुहं मणसि झूरंतो॥१५७।। इत्तो य नमियदेवं, जिणभवणाओ विणिग्गहो कुमरो। मित्तमपासित्तु तओ, गवेसए काणणाईसु॥१५८|| सव्वत्थ वि अनियंतो, चउद्दिसिं पेसए निए पुरिसे। सो पत्तो एगेहि, उवणीओ कुमारपासम्मि॥१५॥ अद्धासणे निवसिय, पुट्ठो कुमरेण कहसु मे मित्त। जं अणुभूयं तुमए, सुहदुक्खं तो वि इय आह॥१६०॥ तइया जिणनमणत्थं, चेइगिह तो गओ नमुं कुमारो। जिणभवणदारदेसे अह यं पुण जाव चिट्ठामि / / 161 / / जाव सहस त्ति पत्ता, एगा खयरी य कड्डियकिवाणा। सरीरसाए तीए, गयणे उप्पिडिओ य अहं / / 16 / / नीओ य दूरदेसे, इत्तो अन्ना वि आगया खयरी। सा मह रूढविमूढा, उद्दालेउंसमाढत्ता // 163|| ताणं जुज्झंतीणं, पडिओ हं महीयले तओ नट्ठो। पत्तो य तुह नरेहि, निवनंदणं तं च मिलिओ सि॥१६॥ तेणनिदंसियससिणे-हवयणरयणाइरंजिओ कुमारो। पभणइ रुइरं जायं, जं दिट्ठीए तुमं दिट्ठो॥१६५।। अत्थं तरम्मि वामो, अकंतो इव महामहिधरेणं। दलिओ विव वजेणं, पडिओ वेयणसमुग्घाए।।१६६।। तथाहि उप्पन्ना सिरवियणा, णलंति अंगाइ पचलियदसणा। संजायमुयरसूलं, भग्गंतारायणं सहसा / 167 / / तो आदन्नो विमलो, गुरुओ हा हा रओ समुच्छलिओ। पत्तो धवलनरिंदो, किं किं ति जणो बहू मिलिओ // 168|| आहूयावरविजा, तेहिं पउत्ता उ विविहकिरियाओ। नय जाओ को विगुणो, सरिय विमलेण अह रयणं // 166 / / तं सव्वरोगहरणं, तितत्थ गंतूण पिच्छएजाव। तमददं च विसन्नो, मित्तसमीवं पुणो पत्तो॥१७०|| अह एगा बुडित्थी, वियंभिया माडियं नियं अंगं। उव्विल्लियं भुयजुयं, केसा विहुमुक्कलीहुया / / 171 / / मुक्का सिक्काररवा, अइविगरालंफ्यासियं रूवं / भीओ जणो य पुच्छइ, हेभयवइ! कहसुका वि तुमं॥१७२।। सा आह अहं वणदे-वय म्हि एसोमएकओएवं। जं इमिणा पावेणं सरलो वि पवंचिओ विमलो // 173 / इयरइयमालजालं, तं रयणं विणिहियं अमुगदेसे। ताचूरिस्स सज्जण-जणवामं वामदेवं ति॥१७४|| तो विमलेण देविं, अब्भत्थिय मोइओ निययमित्तो। सो धिद्धिकारइओ, जाओ बहुओ तणाओ वि / / 175 / / तह वि हु विमलकुमारो, गंभीरिमविजियअंतिमसमुद्दो। पुव्वं पिवतं पिच्छइ, न हुदंसइ कत्थइ वियारं / / 176 / / अन्नदिणम्मि समित्तो, कुमरो पत्तो जिणिंदभवणम्मि। पूइतुं रिसहनाह, एवं थुणिउं समाढत्तो।।१७७।। सिरिरिसहनाह! तुह पय-नहकंतीओ जयंतु तिजयस्स! जंती उवज्ञपिंजर, भावं भावारिभीयस्स / / 178||
SR No.016145
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1388
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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