________________ कयणू कयणू 350- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 तं पुण मज्झं सिरिरिसहनाहपडिमाइदसणवसेणं। धारण 10 आसीविस 11 केवली य 12 मणनाणिणो य 13 सद्धम्मलंभणेणं, फुडं गुरू होसि जं भणियं / / 76 // पुव्वधरा 14 जो जेण सुद्धधम्मम्मि, ठाविओ संजएण गिहिणा वा। अरहंत 15 चक्कयट्टी 16 बलदेवा 17 वासुदेवाय 18 // 104 / / सो चेव तस्स जायइ.धम्मगरूधम्मदाणाओ॥५०॥ खीरमहुसप्पिआसव 16 कोट्ठयबुद्धी 20 पयाणुसारी य 21 / उचियं च सुपुरिसाणं, काउं विणयाअयं सुहगुरुम्मि। तह वीयबुद्धि 22 तेयय 23 आहारग 24 सीयलेसा य 25||10|| साहम्मियमित्तस्स वि, भणियं किर वंदणाईयं / / 1 / / वेउव्वी देहलद्धी 26 अखीणमहाणसी 27 पुलाया य 28 खयरोजंपइ नेवं वुत्तुं अरिहेइ नरवरंगरुहो। परिणामतववसेणं, एमाई हुंति लद्धीओ।।१०६।। जं गुणपगरिसरूवो,तं चिय सव्वेसि होसि गुरू॥२॥ सफरिसणमानोसो, मुत्तुपुरिसाण विप्पुसो वावि। भणइ कुमारो गुणगण घमियाण कयं तुयाणसु नराणं। अन्ने विडत्ति विट्ठ, भासंति पइति पासवणं / / 107 // एयं चिय इह लिगे, जं गुरूणो पूयणं नियं / / 3 / / एए अन्नेवि बहू, जेसिं सव्वे वि सुरहिणो वथवा। स महप्पा सो धन्नो, स कयन्नू सो कुलुब्भवो धीरो। रोगावसमसमत्था, ते हंति तओसहिप्पत्ता / / 108|| सो भुवणवंदणिज्जो, सो तवसी पंडिओ सो उ॥८४|| जो सुणइ सव्वओ मुणइ सब्यविसएय सव्यसोएहिं। दासत्तं पेसत्तं सेवगभावंच किंकरत्त च। सुणइबहु एव सद्दे, भिन्ने संभिन्नसोओ सो॥१०॥ अणवरयं कुव्वंतो, जो सुगुरूणं नलज्जेइ॥८॥ रिउसामन्नं समत्तगाहिणी रिउमई मणोनाणं / पापं विससयविमुहं, घममित्तं चिंतियं सुणइ॥११०।। तिश्चियमणवयणतणू, सुकयत्था गुणगुरूण सुगुरूण। विउलं वत्थुविसेसण नाणं तग्गाहिणी मई विउला। जे निरुचिंतणसंधुणण विणयकरणुज्जुया सययं // 86 / / चिंतयमणुसरइधर्म पसंगओपज्जवसएहिं / / 111 / / समत्तदायगाणं, दुप्पडियारं भवेसु बहुएसु। अइसयचरणसमत्था,जंघाविजाहिं चारणमणीओ। सव्वगुणमेलियाहि वि, उवयारसहस्सकोमीहिं॥८७| जंघाहिं जाइ पइमो, निस्संकाउं रविकरे वि।।११।। भो सुपुरिस ! बुद्धो हं तुभ पसाएण गिहिहं दिक्खं। एगुप्पाएण गओ,रुयगवरम्मि तो पडिनियतो। किं तु मह तायपमुहा, बहवे इह बंधवा संति।।८।। बीएण नंदिसरमेइ, इह तइयएण पुणो उडु॥११३|| जइ तेसिं पडिबोहो, जायइ तो हं भवामि कयकियो। पढमेण पडगवण, वीउप्पाएणनदणं एइ।। ता उवइस सुगुरुं मे अह हिट्ठो भणइखयरिंदो॥८६॥ तइउप्पारण तओ, इह जंधाचारणो एइ॥११४॥ अत्थिबुहनामसूरी,जलभरभरियंबुवाहसमघोसो। पढमेण माणसुत्तर, नगसुनंदीसरंतु बीएणं। जइ एह कह विसो इह, तो पडिवोहिन्ज तहंध // 10 // एइतओ तइएणं,कयचेइयवंदणो इहयं / / 11 / / कुमरेण तओ भणियं, सो दिट्ठो कत्थ ते महाभागे ! पढमेण नंदणवणे, बीउप्पारण पंडगवणम्मि। सो आह इहजाणे, जिणभवणासन्नभूभागे।।६१|| एइ इह तइएणं, जो विजाचारणो होइ॥११६॥ जं अइय अट्ठमीए, सपरियणेणागएण मे इत्थ। आसीदाढा तग्गय महाविसा सीविसा भवे दुविहा। पविसंतेणं जिणमंदिरम्मि दिट्ठ सुमुणिविंद / / 6 / / तेवम्मजाइभेएण, अणेगहा चउविहविगप्पा / / 117 / / तस्स य मज्झे एगो, साहु मसिअसियलाकसिणदेहो। खीरमहसप्पिसाओ, वमाणवयणा तया सवा हुति। पिंगलसिरचिहुरभरो, सेलु व्व जलंतदवजलणो॥६३|| कुट्ठयधन्नसुनिग्गल सुत्तत्था कुट्ठबुद्धी य॥११८।। आखुव्व लहुयकन्नो, दुट्ठविरालु व्व पिंगनयणजुओ। जो सुत्तपएणं बहु, सुयमणुधारइपयाणुसारी सो। पवग व्व चिविडनासो, मिय व्व अइदीह्रोहहकंठो // 64|| जो अत्थपएणत्थं, अणुसरइसबीयबुद्धी उ॥११६॥ लंबोयरो यथूलोयरो य उव्वेगजणगरूवधरो। समओ जहन्नमंतर मुक्कोसेणं तुजाव छम्मासा। धम्मं वागरमाणो, दिह्रो महुमहुरसहेणं / / 6 / / आहारसरीराणां, उक्कोसेणं नव सहस्सा // 120 / / तं असरिसगुणजुत्तं, द8 मे चिंतियं इमं हियए। चत्तारि य वारा उ, चउदसपुव्वी करेइ आहारं। जह एयरस भगवओ, गुणाणुरूवं नरूवं ति।।६६|| संसारम्मि वसंतो, एगभवे दुण्णिवाराओ।।१२१।। तो पविसिय जिणभवणं, जिणपडिमण्हविय पूइऊणं च। तित्थयररिद्धिसंदं-सणत्थ(१)मत्थोवगहणहेउवा (2) खणमित्तेणं साहूण वंदणत्थं विणिक्खंतो।।६७|| संसयवुच्छेयत्थं (3) गमण (४)जिणपायमूलम्मि॥१२२।। ता सो चेव वरमुणी, उवविठ्ठो विमलकणयकमलम्मि। रसमणी(१)मवगयवेयं(२)परिहार(३)पुलाय(४)मप्पमत्तं च (5) सा मुक्त व्व अणगो, ससहर इव रोहिणीरहिओ||८|| चउद्दसपुट्विं(६) आहारगंच(७)नन कयाइसंहरइ।।१२३॥ भासुरसुवन्नवनो, तणुप्पहा पडलहणियतमपसरो। वेउव्यियलद्वीए, अणु व्व सुहमा खगेण जायंति। अलिउलकजलकेसो, सुसिलिट्टपलबसवणजुगो।।६६| कंचणगिरि व्व गुरुणो, लहुदेहा अक्कतूलं व // 124|| नीलुप्पलदलनयणी, अइउन्नयसरलनासियावंसो। पडओ पडकोडीओ, पकुणंतिघडा उ घमसहस्साई। कंबविडंबिक्खंतो, नवपल्लवअरूणअहरुट्ठो॥१०॥ चिंतयमित्तं रूवं, कुणंति भणिएण किं बहुणा / / 125 / / केसरिकिसोरउयरो, विसालवच्छयलजणियकणयसिलो। अंतमुहत्तं नरए, सुहृति चत्तारि तिरियमणुएसु। सुरकिंनरपरियरिओ, दिह्रो दिट्ठीइ सुहहेऊ।।१०१॥ देवेसु अद्धमासो, उक्कोसविउव्वणा कालो।।१२६|| तो चिंतियीमए कह, एस खणेणं अणेरिसो जाओ। अक्खीणमहाणसिया, भिक्खं जेणाणियं पुणो तेण / अहवा चंदणगुरुणा, कहिया से विविहलद्धीओ।।१०२।। परिभुत्तं चिय खिज्जइ, बहुएहिं विन उण अन्नकहिं॥१२७|| तथाहि। भवसिद्धियपुरिसाणं, एया ऊ हवंति भणियलद्धीओ। आमोसहि 1 विप्पोसहि 2 खेलोसहि ३जल्लओसही चेव 4 सयोसहि भवसिद्धियमहिलाण वि, जत्ति य जायंति तु बुच्छं।।१२८ 5 संभिन्ने 6 ओहि ७रिओ८ विउलमइलद्धी // 103 // अरिहंत१चक्किर केसव३बल४सभिन्नाय५चारणा६पुवा७