________________ कम्म २९३-अमिधानराजेन्द्रः - भाग 3 कम्म यथा च ज्ञानावरणीयं चिन्तितं तथा दर्शनावरणीयमपि चिन्तयितव्यम्।। वेयणिजं बंधमाणे जीवे कइ कम्म? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छविहबंधए वा एगविहबंधए वा एवं मणूसे वि सेसा नारगादीया सत्तविह अट्ठविहबंधगा जाव वेमाणिए ! जीवार्ण मंते ! वेयणिज्जं कम्मंबंधइ पुच्छ, सय्वे विताव होजा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबन्धगा य छविहबन्धगा य अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबन्धगा य / अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबन्धगा य / छव्विहबंए य / अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबन्धगा य छविहबंगा य अवसेसा नारगादिया जाव देमाणिया जाहिं नाणावरणं बंधमाणा वंधंति तीहिंह, माणियध्वा नवरं मणूसाणं भंते ! वेदणिज्जं कम्म बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधंति गोयमा ! सवे ति ताव होजा सप्तविधबंधगा य एगविहबन्धगाय १अहवा सत्तविहबंधगा य एगविह बन्धगाय अट्ठविहबंधएयर अहवा सत्तविहबंधगाय एगविहबन्धगा य अट्ठविहबंधगाय 3 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबन्धगा य छव्विहबंधए य 5 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबन्धगाय छविहबंधगाय 5 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबन्धगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य 6 / अहवा सत्तविहबंधगाय एगविहबन्धगाय अट्ठविहबंधगाय छव्विहबंधगा य७। अहवा सत्तविहबंधगाय एगविहबन्धगाय अट्ठविहबंधएय छविहबंधए य 8 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबन्धगा य अट्ठविहबंधगाय छवि हबंधगा या एए नव भंगा। मोहणिज्ज बंधमाणे जीवे कइ कम्मपयडीओ बंधइ ? गोयमा ! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो जीवे गिंदिया सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि जीवे णं मंते ! आउयं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! नियमा अट्ट एवं नेरइए जाव वेमाणिए / एवं पुहत्तेण वि। नामगोयंतराई बंधमाणे जीवे कइ कम्मपयडीओ बंधए? गोयमा ! जाहिं नाणावरणिचं बंधमाणे बंधइ ताहिं भाणियव्वो एवं नेरहए जाव वेमाणिए / एवं पुहत्तेण वि माणियध्वं // वेदनीयचिन्तायाम् "एकविधबंधए वा इति" उपशान्तमोहादि शेष | प्राग्वत् / मनुष्यपदविषयचिन्तायामपि त एव प्रागुक्ता नव भङ्गाः सप्तविधबन्धकानां च सदैव बहुत्वेनावस्थिततया भङ्गान्तरासम्भवान्मोहचिन्तायां जीवपदे पृथिव्यादिषु पदेषु च प्रत्येकमेक एव भङ्गः। सप्तविधबन्धका अपि अष्टविधबन्धका अपि उभयेषामपि सदैव बहुत्वेन लभ्यमानत्वात्। षड्विधबन्धस्तु मोहनीयबन्धको न भवति मोहनीयबन्धो ह्यनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थानकं यावत् षडविधबन्धकास्तु सूक्ष्मसंपराय इति आयुर्बन्धकस्तु नियमादष्टविधबन्धक इति तश्चिन्तयतितचिन्तायामेकवचनबहुवचने च सर्वत्राभङ्गक नामगोत्रान्तरायसूत्राणि ज्ञानावरणीयसूत्रवत् प्रज्ञा०२५ पद। बन्धवेदौ सम्प्रति किं कर्म वेदयेते का: कर्मप्रकृतीर्वध्नीतइत्युदयेन सह सम्बन्धस्य सम्बन्धं चिन्तयिषुरिदमाह।। जीवे णं भंते ! नाणावरणिजं कम्मं वेदेमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा.अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा॥ "जीवे णं भंते'' इत्यादि सुगम नवरं ज्ञानावरणीयं कर्म वेददयमान एकविधबन्धक उपशान्तमोहः क्षीणमोहो वा न तु स योगिकेवली तस्य ज्ञानावरणीयोदयाभावात्। जीवा णं भंते ! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सटवे ति जाव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा या अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगाय छव्विइबंधए या अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविइबंधगा य / 3 / अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगे या अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबंधगा य / / अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविहबंधगे य एगविहबंधगे य / 6 / अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविहबंधगा य एगविहबंधगा य 171 अहवा सत्तविहबंधगा य अहविहबंधगाय छविहबंधगा य एगविहबंधगे या। अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य एवं एते नव भंगा अवसेस्साणं एगिदियमणुस्सवाणं तियभंगो जाव वेमाणियाणं एगिदियाणं सत्तविहबंधगा य अट्ठविहगंधगा य॥ बहुवचनचिन्तायां षड्विधबन्धका: सूक्ष्मसम्पराया एकविधबन्धका उपशान्तमोहक्षीणमोहा: कादाचित्का एकत्वादिना च भाज्या इत्युभयेषामप्यभावे सप्तविधबन्धका अपि अष्टविधवन्धका अपित्वेको भङ्गो द्वयानामपि सदैव बहुत्वेन लभ्यमानत्वात् ततः :षड्विधबन्धक पदप्रक्षेपे एकवचनबहुवचनाभ्यां द्वौ भनौ एवमेव द्वौ भङ्गावेक विधबन्धकप्रक्षेपेऽपि उभयोरपि युगपत् प्रापे पूर्ववच्चत्वार इति संख्यया नव नैरयिकादिषु तु पदेष्वे के न्द्रियमनुष्यवर्जेषु बहुवचनचिन्तायां भङ्गत्रिकमष्ट विधबन्ध-कानां कादाचित्कतया एकत्वादिना भाज्यतया चलभ्यमानत्वात्। एकेन्द्रियेषु त्वभङ्गक सप्तविधबन्धकाष्ट विधबन्धका अपीति उभयेषामपि सदा बहुत्वेन प्राप्यमाणत्वात्। मणुस्साणं पुच्छा ? गोयमा ! सव्वे विताव होज्जा सत्तविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य एवं छविहबधएण वि समं दो भंगाएगविहबंधएण वि समं दो भंगा अहवा सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधए यछव्हिबंधएय चउभंगा