________________ चित्तसमाहट्ठाण 1300 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 चित्ता ता हसिअनिवो भणई , किं अप्पं करह ! गोवेसि / / 5 / / सो भणइ कयपणामो, पहु ! कीरउ भेऽवयारणं करहो। कह चिरदिट्ठो ओल-क्खिओ मि नामंच सरियं मे // 6 // भणइ निवो उवयारी, वीसरसी तुमंजमप्पिया तुमए। रम्भा दिवे विवाहे,थविय कणयपाउया मज्झ॥७॥ इसंभासिय पुट्ठो, आगमणपओअणं निवेण इमो। भणइ पहु ! अस्थि सिरिसे-णनिवइधूया रयणमाला ||8|| सा कुंदरयणमाला, सुरयणमाल व्व वरगुणसमेया। जो कुणइ राहवेहं, स मे वरो इय कयपयन्ना / / 6 / / राया तु भुयणमल्ल, इच्छइ स भयणिसुअंधरं नवरं। कुमरीगिरमवमन्नइ, जाणतो कुमरकोसल्लं / / 10 / / इअपेसिओ निव ! इहं, ता कुमरो तिचवेउयऽविलंवं। नियदसणामएणं, सिरिसेणनरिंदमणनयणे।।११। नियइ निवो गणयमुहं, तो स भणइ पवरमज्ज जुत्तदिणं / चिंतइ निवो धुवा कुम-रभद्दसेणी सविहलग्गा // 15 // यत उक्तम् - लघुस्थानान्यविघ्नानि, संभवत्साधनानि च। कथयन्ति पुरः सिद्धि, कारणान्येव कर्मणाम्।।१३।। मणपवणसउणपरियण-अणुकूलत्तेण तो भुवणमल्लो। चंपापुरीअभिमुहं, चलिओ चउरंगबलकलिओ॥१४॥ सिद्धत्थपुरसमीवे,जा पत्तो ता नरेहिं तप्पहुणा। विन्नत्तो जह कीरउ, वीर ! सरवणे इहावासो॥१५॥ तत्थावसिउ कुमारो, नियइवणं विम्हिओ समंता जा। ता पिच्छइ हयनयरह-सुहमसमूह समूहमितं / / 16 / / किमियं ति कुमरपुट्ठा, भणंति सिद्धत्थपुरनिवनरा ते। न मुणेसु परं संभा-विजइ सिरिमूलदेवनिवो।।१७।। जं तुम्हागमइत्तणं-समया समन्नइखणं पि। वरिससमं ति इमे जा, कहति ता विन्नवइ वित्ती।।१८|| सिद्धत्थपुरनिको पहु !, गयउत्तिन्नो पएहिँ एइत्ति। तो कुमरो अत्थइ जा, पत्तो ता स झ त्ति तहिं / / 16 / / अइरूवविजियमारं, दुटु कुमारं घस त्ति धराणवरो। मुच्छावसा स पडिओ, हा हा सद्दो पुणुच्छलिओ।।२०।। कुमरेण संसभममह, चंदणसेयाइणोवयारेण। संलद्धचेयणो कि, वाहइ तुम्हं तिसो पुट्ठो? // 21 / / ओणयवयणो न देइ, उत्तर नियइ बलिरदिट्ठीए। कंडूअइ स य कन्नं, पायंगुठून लिहइ भुवं / / 22 / / किमियं ति कुमरपुट्ठो, सिरिसेहरमंतिनंदणो सीहो। कुमरवयं सो साहइ, पहु ! इह न मुणिजई किं पि। नवरं इओ अदूरे, गम्मिजउ देव ! जेण वरणाणी। सिरिअभयघोससूरी,ख समागओ अत्थि इह जो उ॥२४।। मेरु व्व महियजलही, सूरो विव निहयविसमतक्खरणो। दोसुम्मूलणरसिओ, रवि व्व हारु व्य पवरगुणो।।२५।। सव्वपरिग्गहरहिओ, विरइयसारंगसंगहो सययं। विहियसयलक्खविजओ, एगसंसारभयभीओ।।२६।। तो कुमारो सो य निबो, गंतूणं तत्थ नमिय सूरिपए। उवविसइ उचियठाणे, तो सिरि कहइ इय धम्म॥२७|| लहिउंसुदुल्लहपुर-भवाइसामग्गिमित्थ भवहरए। सदसणपरिभट्ठा, मा दुहिया भमह कुम्म व्व / / 28|| हरपरिमियत्तणा अवि, लहिज्ज ससिदंसणाइ सो कुम्मो। न उ पुण विजओ बोहिं, भवऽणंतत्ता अकयसुकओ॥२६॥ ता सोतुमिम सम्म, अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुणो। जिणपण्णत्तं तत्तं, इत्थ पहाण ति कुणइ मई॥३०॥ भणियं चमुत्तूण जिणं मुत्तू-ण जिणमयं जिणमए वि ए मुत्तुं / संसारकन्नधारं, चिंतिज तं जग सेसं / / 31 / / सहसणसुद्धिकए, कायव्वा वंदणा जिणाण सया। तिनिसीहाईदसगं, तत्थ य नेयं जहा विहिणा // 32|| अह भणइ भुवणमल्लो, भयवं ! कह मुच्छिओ ममं ददु / समयणरमणिवियारे, कहं व पुरिसो वि कुणइ इमो? ||32|| भणइ गुरू भद्द ! पुरा, सीहपुरे आसि रयणसारनिवो। गंग व्व सुई सुदया, तस्स पिया मयणरेह त्ति / / 34 / / अलियविलीयविरत्ते, कइआइ निवम्मि साऽणुरत्ता वि। उव्वंधेऊण मया, अवमाणदुहं असहमाणा।।३।। जओअलियाववायअभिदू-मीययजीवस्स सुद्धहिययस्स। होइ वह तस्स पुणो, चंदणरससीयलोऽग्गी वि॥३६|| देवचणदाणदया-इसुद्धभावा उ सा इहुप्पण्णा। सिद्धत्थपुरे सुंदर-निवधूआ मूलनक्खत्ते / / 37 / / अह सहसा कालगओ, राया जं मे इमीइ तो कुणई। सुमइअमचो पयडिय-पुत्तत्तं रजअभिसेयं / / 3 / / मरिऊण रयणसारो, जाओ सि तुम इहागए दिह्र। पइपुब्बभवब्भासा, एई एए सरिउ नेहो॥३६।। किं मह इमम्मि पीई, एवं ति इमेइ विमरिसंतीए। जाए जाईसरणे, तं जायं जं तए पुढें // 40 // भुत्तं संसारसुह, नाउंदइयस्स नेहपरिणामो। दिट्ठो मालवदेसो, खद्धा मंडा य अग्घाणा / / 4 / / इह भणइ मूलदेवा, मुणिवइवयणा उ जायवेरग्गो। पडिवज्जइ पव्वजं, रजं दाउं कुमारस्स // 42 // कुमरो पुण संमत्तं, गिण्हइ चिइवंदणाइनियमजुय / अह गुरुणा गुरुकरुणा-परेण एवं स अणुसिट्ठो॥४३।। लब्भंति सुरसुहाई, लब्भंति नरिदपवररिद्धीओ। न उणो सुबोहिरयणं, लडभइ मिच्छत्ततमहरणं / / 44 / / जह गहणाण गवनां, आहारो रोहणो य रयणाणं सिंधूण जहा जलही, चाउम्विहविणयसीलमित्थीणं / तह सम्मत्तं गिहिणो, जइणो वि विभूसणं परमं / / 46 / / ता मा कासि पमायं, सम्मत्ते सव्वदुक्खनासणए। जं सम्मत्तपइहा-इँ नाणतवविरियचरणाइं॥४७।। इत्थं ति भणिय कुमरो, तो भन्नतो कयत्थमप्पाणं। बहु बहुमाणं नमिउं, गुरुपयपउमंगओ सिबिरं / / 48|| सिद्धत्थपुरे गंतुं, सुमइअमचं तहिं ठविय रज्जे। चलिओ पुरओ पत्तो, अडविं कालिंजरं जाओ // 46 / / खग्गाभिधायभञ्ज-तमत्तमायंगवियड कुंभयडा। विलसिरसकुंतसरच-क्कवायया सगरधर व्व।।५०|| तत्थ दसजोअणते,आवासीय जाव वरुणनइतीरे। कुमरो नियइ यणाई, ता पिच्छइ रिसहजिणभवणं / / 51 / / तो तत्थ निसीहितिगं, काउंजा पविसइ नियइ ताव। जिणपूयवावडाओ, अमरीओ भत्तिनमिराओ ||5|| अह दटुं निप्पडिम, कणगमयं रिसहसामिणो पडिमं / कुमरो वियसियवयणो, वदिअ विहिणा थुणइ एवं // 53 / /