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________________ आणंद 127 अभिधानराजेन्द्रः भाग 2 आणंद सुणेइ / तए णं से आणंदे समणोवासए तस्सेव मित्त / जाव पुरओ जेहपुत्तं कुडुंबे ठवेइ २त्ता / एवं वयासी- मा णं देवाणुप्पिया! तुन्भे अज्जप्पमिई केइममं बहुसु कज्जेसुजाव आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा ममं अट्ठाए असणं वा पाणं व खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेउ वा उवकरेउ वा / तए णं से आणंदे / समणोवासए जेहपुत्तं मित्तणाइं आपुच्छइत्ता सयाओ गिहाओ पहिणिक्खमइत्ता वाणियग्गामणयरं मज्जमज्जेणं णिग्गच्छइ 2 त्ता जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे जेणेव नायकुले जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइत्ता पोसहसालं पमज्जइ२त्ता उच्चारपास-वणभूमि पडिलेहइ 2 त्ता दन्भसंथारं संथरइ २त्ता दध्वसंथा-रयं दूरू हइ 2 त्ता पोसहसालाते पोसहिते दब्भसंथारोवगये समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं / धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। (सूत्र-१२) तए णं से आणंदे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ / पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं कारणं फासेइ०जाव आराहेइ। तए णं से आणंदे समणोवासए दोचं उवासगपडिम, अहासु। एवं-तचं उवा, चउत्थं उ. पंचमं उछटुं उ. सत्तमं उ. अट्ठमं उ नवमं उ. दशमं उ एक्कारसमं ऊ जाव आराहेइ (सूत्र-१३)। तए णं से आणंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पयाहित्तेणं तवोकम्मेणं सुक्के० ०जाव किसे धमणिसतते जाए / तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्ताजाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्जत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्ने एवं खलु अहं इमेणंजाव धमणिसंतए जाएतं अत्थिता मे उठाणे कम्मबल-वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे सद्धा धिई संवेगे / तं जाव तामे अस्थि उट्ठाणे सद्धा धिई संवेगे जाव मे धममायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कल्लं जाव जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणाजूसितस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए। एवं संपेहेइ संपेहित्ता कल्लं पाउ जाव अपच्छिम जाव कालं अणवकंखमाणे विहरहा तए णं | तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णया कय इ सुभेणं अज्जवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं वि सुज्जमाणीहिं णाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने पुरच्छिमे णं लवणसमुद्दे पंचोजयणसइयं खेत्तं जाणइ पासइ / एवं दक्खिणेणं पञ्चत्थिमेण य उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवंतं वासघरपव्वतं जाणइ पासइ। उबंजाव सोहम्म कप्पं जाणइ पासइ अहे जाव इमी से रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयं अचुयं णरयं चउरासीइवाससहस्सद्वितियं जाणइपासइ (सूत्र-१४) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए परिसा निग्गया जाव पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूईणामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचतुरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कण-गपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गवते दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे महातवे उराले घोरगुणे घोरतवस्सी घोरवंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोभे जाइसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे जाव तेयंसी छटुं छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / तए णं से भगवं गोयमे छडक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्जायं करेइ वीआए पोर (स) सीए जाणं जियाइ, तईयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभताए मुहपत्तियं पडिलेहेइ २त्ता। भायणवत्थाई पडिलेहेइ२त्ता। भायणवत्थाई पमज्जइ २त्ता भायणाई उग्गाहेइत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ 2 ता एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुम्भेहिं अन्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियग्गामे णयरे उचनीयमज्जिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए अहासुहं देवाणुप्पिया?मापडिबंधं करेह।तएणंगोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ 2 त्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपरिलोयणाए दिट्ठीए पुरओइरियं सोहमाणे जेणेव वाणियग्गामे णयरे तेणेव उवागच्छह 2 त्ता वाणियग्गामे णगरे उच्चनीयमज्जिमाई कुलाइंघरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ / तए णं से भगवं गोयमे वाणियग्गामे नगरे जहा पण्णत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए / जाव अडमाणे अहापज्जत्तं भत्तपाणं संमं पडिगाहेइ 2 त्ता वाणियगामाओ पडिनिग्गच्छह र त्ता कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अदूरसामंते णं वीतीवयमाणे बहुजणसह णिसामेइ बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ.४ एवं खलु - देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासा
SR No.016144
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1224
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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