________________ अचित्त 187 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 अचित्तदव्वचूला यासासु एगदिणं वा, चलियरसं जत्थ जंजाइ॥६६।। निव्विगयं पक्कन्नं, असणजुयं तस्सिमेव परिमाणं। उच्छुवियारगयाणं, चलियरसं तं तहा जाण // 67 / / घयतिल्लगुडाईणं, वण्णरसगंधपमुहपञ्जासे। कालपरिमाणमुत्तं, जाणिज्जा नो तहा पायं // 68|| इत्थ य चलियरसम्मि, जीवा बेइंदिया समुच्छंति। पुप्फिए एगिदिया, वट्टति दुवे वि समगंवा // 66 // अचित्तजले सचित्ती-भवणे एगेंदिया समुच्छंति। अरणं सुज्झियमिलिए, पणिंदी समुच्छिमा हुंति / / 7 / / तिलमुग्गमसूरचवलय-मासकुलत्थयकलायतुवरीणं। यल्लाण वट्टचणयाण, पंचगवरिसप्पमाणं च // 71 / / सालिविहिजवजुगंधरि-गोहुमतिणधण्णतिलकपासाणं / वासतियं परिमाणं, तत्तो विद्धंसए जोणी // 72 // लुट्टा कंगूअयसी, सणकोडुसगवरट्टसिद्धत्था। एलयकुद्दवमेही, मूलगवीया चवड्डा य॥७३॥ पहियाणं लत्ताणं, उक्कोसट्ठिई सत्तवासाइं। होइ जहण्णेण पुणो, अंतमुहत्तं समग्गाणं // 74|| पिप्परिखजूर मिरी-मुद्दिय अभया बदाम खारिक्का। एला जाइफलं पुण, कंकोलं चारु कुलिया य / / 7 / / विखंसिज्जइ जोणी, एएसिं जलथलोवभोगेहिं। संघाडयजलफलाइ, घाणं जोणी तहा चित्ता // 76 / / जोयणसयं जलम्मि, थलम्मि सड्डीइ भंडसंकती। वायागणिधूमेहि, पविद्धजोणी हवइ तेसिं // 77 / / हरियाललवणमण सिल-पूगसेवालनालिकेरा य। एमेव अणाइण्णा, विद्धत्था अवि मुणेयव्वा / / 7 / / सीयासिंधवपासकरणीकयहिंगुलजाइवडिंगनागाई। अचित्तजोणिया कंदासणोहयमिढलमजिट्ठा // 76|| पिट्ठ मिस्समसुद्धं,पणचउतियदिणपमाणमापक्खं। सावणासोयपोसेसुजुयलम्मि वए अणुओगो||८|| पण्णचउतियजामाण, मासदुगे चित्तजुयलजिट्ठदुगे। तह भजियधण्णाणं, दालीण विपज्जए पायं / / 81 // चालियछड़ियतुसरहिय, सुक्कंजा ताव मिस्सियं नेयं / लोणजुयं जं साग, भजियतलिएण तं सुद्धं // 52 // अण्णे भणंति भजिय-धण्णाणं पक्कतलियमिव कालो। सत्त-पणदस-दसदिणं, वासाइसु मिस्सलोणस्स।।३।। अंतमुहुत्तं मोद-स्स चोवीसजाम धाउपत्तगयं। गोमुत्तं जइ केवल-महिसाइमं रसविवज्जासे // 54|| खइमितले विचासे, तिचउपण्णजामसुसिणनीरस्स। वासाइसुप्पमाणं, फासुजलस्सावि एमेव / / 5 / / उस्सेइम१ संसेइभ 2, तंदुलनीरं 3 तिलादगं 4 वा वि। तुस 5 जव६ आयामं 7, वा सोवीरं 8 सुद्धवियडं च 6 // 66 // अंब 10 कविठ्ठा 11 मनगं 12, अंबाडग 13 माउलिंग 14 खजूरं 15 / दक्खा 16 दाडिम 17 कैरं 18, चिंचा 16 नारिअर 20 कोलजलं 21 // 87| पुवतियं भत्तट्टे, छठे तिलतुसजवादेगंभणियं। आजामं सोवीरं, असे उसिणं नीरं च // 18 // मत्थमसित्थं गलियं, तियदंडुक्कलियपरिमियमलेवं। परकडजई ण कप्पइ, न कप्पई अण्णमरुदेसे।।६।। उस्सेइम संसेइम, तंदुलतिलतुसजवाण नीरंच। आ जामं सोवीरं, सुद्ध वियर्ड जलं भवहा / / 60|| तिहला तमालपत्तं, मुत्थयकुटुं च खयरमाईहिं। फासुकयं खज्जाइहि, कारणओ कप्पणिज्जं तु ||1|| जिट्ट तवे भत्तट्टे, पडिमुवहासु अभिग्गहायामे। सट्ठाणं जियकप्पइ, उण्हजले अणसणे वि तहा / / 2 / / फलचिंचोदगमिगजाममाजामं धण्णनीर मुहुत्ततिग। उच्छुरसे सोवीरे जामदुर्ग घोयणं तिमुहू६३॥ वण्णरसगंधपञ्जव-भेयविमिस्संखु हवइ फासुजलं। सक्करगुडखंडाई, वत्थुविभेएहि परिणमियं / / 64|| गोएलगमहिसीणं, खीरं पण अट्ठदसदिणाणुवरि सुद्धं / तिदिणाणुवरि वलद्धी, नवप्पसूयाण एमेव / / 65|| चउपहरोवरि जायं, दहि सुद्धं हवइ कप्पणिज्जंच। तक्करजुयखीरेयी, बीयदिणे होइया कप्पा 196|| निण्णीरं तिलमिस्सं, संधाणं तह वियारियफलाणं / अचित्तभोइणो पुण, कप्पइ तक्करमणुग्गलियं / / 67|| निव्यल्लिनिच्छियफलं, जामगमामुत्तमुवरि कयं / वियलं तक्करमिस्सं, न कप्पमुसिणीकएण विणा / / 68|| मोयाफलं पडोली, धोसामोलं च रुक्खगुंदाई। तणडित्तद्धं जं नो, हवइ तं देवडीचिट्ठी // 66 // उकिट्ठजहण्णमज्झिम-भेएहिं होइ तिविहमभत्तट्ठ। चउहा सचित्तपरि-याएणुकिट्ट भेएण।।१००|| तिविहम्मि अभिगहे खलु, न कप्पइ सचित्तवावारो। तत्थाणाहारयत्थू, कप्पइ सव्वावि रयणीए / / 101 / / आयंबिलमवि तिविहं, उक्किट्ठजहण्णमज्झिमवएहिं। तिविहं जं वियलं पूयाई पकप्पए वितत्थ / / 10 / / सियसिंधवसुंठिमिरी, मेही सोवचलं च विडलवणं / हिंगुसुगंधिसुयाइय, पकप्पए साइमं वत्थु // 103 // कारणजाएण जइण, असणे सिद्ध हविज ठिमियं वा। पिटुंजलेण रद्धं, घुग्घेरिट्ठाइ सिद्धेणं / / 104!! पप्पडवडया रुक्खा, सिद्धा तिगपीकया हवइ कप्पा। भञ्जियधणं तिणधण्ण, कट्टदलं सिणेहवियलं जं / / 10 / / सव्वाणं धण्णाणं, पिहु या दुद्धेण सिद्धिसाइमयं। वेसण्णत्थाए इह, लिट्टया तीइ अकप्पं च // 106aa ल०प्र० *अचित्र-त्रि०अकबुरे, बृ०५ उ०।। अचित्तदवियकप्प-पुं०(अचित्तद्रव्यकल्प) अचित्तद्रव्याणामाहारादीनामुपयोगविधिविशेषे, "अचित्तदवियकप्पं, एत्तो वोच्छं समासेणं / आहारे उवहिम्मिय, ओवसणे तहयपस्सवणे॥१॥ पयसं निसजठाणे, दंडे वंडे चिलमिलिणी। अवलेहणिया वन्नाणं, सोचणे दंतसोहणे चेव / / 2 / / पिप्पलगसूतिणक्खाणछेदणे व सोलसं मज्झा। हारो खलु द्विविहो लोइयलोउत्तरेणायव्यो॥३॥ तिविहोतु लोइओखलु, तत्थ इमो होति णायव्वो" पिं०भा०ा पं०चू०('आहार' प्रभृतिशब्देषु विवृतिः) अचित्तदव्वखंध-पुं०(अचित्तद्रव्यस्कन्ध) अविद्यमानचित्तो-ऽचित्तः, स चाऽसौ द्रव्यस्कन्धः / द्विप्रदेशिकादिपुद्गलस्कन्धरूपे अचेतने द्रव्यस्कन्धभेदे, अनु०॥ अचित्तदव्वचूला-स्त्री०(अचित्तद्रव्यचूला) चूडामणिकुन्ताग्रसिंहकर्णप्रासादपादपाद्यग्रे, नि०चू०१ उ०।