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________________ अक्खुद्द 151 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 अक्खुद्द तो खलभलिओ जोई, भणइ परित्थीपसंगवारणओ। निवडतो हं नरए, साहु तए रक्खिओ कुमर ! ||38|| उवयारओ त्ति दाउं, रूवपरावित्तिकारिणिं विझं / पभणइ जोगी मन्ने, गुरुविक्षमसाहसगुणेहिं / / 3 / / तुम पइ इमीइ दिट्ठी,वलणेणं तंयि विक्कमकुमारो। इयरो वि साहइ अहो, तुहिंगियागारकुसलत्तं // 40|| तो जोगि पत्थिओ तं, बालं परिणित्तु तं विसज्जेउं / तीए जुओ कुमारो, नियमवणुजाणमणुपत्तो॥४१।। ता किं जायं तस्सग्गओ त्ति पुट्ठम्मि कमलसेणाए। ओलग्गाए वेल त्ति, जंपिउं निग्गओ खुओ॥४२॥ अथ तइयवासरम्मि,आगंतुं कहइ तत्थ पुण एवं / कुमरो जावुजाणे, कीलइ सह कमलसेणाए // 43 // परकजसज्ज ! मह कज्ज-मज कुणसुति ताव तं कोइ। आह कुमारो वि भणइ, करेमि जीवियफलं एअं॥४४॥ तयणु विमाणारूढो, कुमरो वेयड्डिकणयपुरपहुणो। विजयनिवस्स समीवे, नीओ सो तेण इय भणिओ॥४५॥ कुमर ! मह अस्थि सत्तु, भघिलपुरसामिधूमकेउनिवो। तं अक्षमिउं आरा-हियाइ कुलदेवयाइमए // 46 // तविजयक्खमो तं, कुमर ! पमणिओ गिण्ह ता इमा विज्जा / आगासगामिणीमाइयाउ तह चेव सो कुणइ // 47|| अह साहियबहुविजं, हयगयघडसुहडकोडिसंघडियं / कुमरं इंतं निसुणिय, संखुद्दो धूमकेउनियो॥४८॥ अतुच्छलच्छिविच्छदु-मंडियं छंडिउंगओरज्ज। तं गहिय महियसत्तु, पत्तो कुमरो वि सट्ठाणं // 46 / / हरिसुक्करिसपरेणं, रन्ना विसुलोयणं निययधूयं / परिणाविओ कुमारो, चिट्ठइ तत्थेव कइ वि दिणे // 50 // दट्टुं पुण्यपियाओ, कया वि कुमरो सुलोयणासहिओ / इत्येव पुणो नयरे, नियभवणुजाणमोइन्नो // 51 // सो कत्थ गओ त्ति सुलो-यणाई पुट्टम्मि वामणो हसिरो / नो तुम्हे विव अम्हे, खणिया इय वुत्तु नीहरिओ // 52 / / नियनियचरियसवणओ, नियनियतणुनिउणफुरणओ ताहिं। कयरूवपरायत्तो, नियभत्ता तक्किओ खुजो // 53 // अह रायपहे खुजो, गच्छंतो सुणिय कम्मि विगिहम्मि। करुणसरं तो कंपि हु, पुच्छइ रोइज्जए किमिह ? // 54|| सो भणइ तिलयमंति-स्स पुत्तिया सरसइ ति नामेण। भवणोवरि कीलंती, डक्का कसिणेण उरगेण // 55 // चत्ता नरिंदविंदा-रएहिं तो तीइ मायपियसयणा। उम्मुझकंठमुझं-ठवजिया इय रुयंति बहुं!।५६।। तं सोउ भणइ खुजो, गच्छामो भद्द मंतिगेहम्मि। पिच्छामि तयं बालं, अहमवि उंजेमि तह किंपि।।५७।। इय वुत्तु मंतिभवण-म्मि वामणो तयणु तेण सह पत्तो। पउणेइ पोढमंत-प्पभावओ झत्ति तं बालं / / 58|| नियविनाणं व तुम, सरूवमवि दंससु तिसचिवेण। सो पत्थिओखणेणं, नडुव्व जाओ सहावत्थो।५६|| तस्स पहाणं रूवं,दर्छ अइविम्हिओ तिलयमंती। जा चिट्ठइ ता पढियं, मागहविंदेण पयडमिमं // 60 / / मणिरहनिवकुलससहर!, हरहारकरेणुधवलजसप्पसर!। पसरियतिहुयणविक्कम !, विक्कमवर ! कुमर ! जय सुचिरं // 61 / / तो मंती वरकुलरू-वविक्कम विक्कम निएऊण। कुमरीइ पाणिगहणं, कारावइ हट्टतुट्ठमणो // 62 / / तं सुणिय जाणिउं निय-सुयाइ कमलाइ पिययम हिट्ठो। वासवराया कारइ, महुसवं सव्वनयरम्मि // 63 / / तत्तो मंतिगिहाओ, नीओ नियमंदिरे विभूईए। सो सव्यपियाहि जुओ, सुहेण चिट्ठइ सुरु व्य तहिं॥६४।। कइया विजणयलेहेण पेरिओ पुच्छिउं ससुररायं। चउहि वि भजाहि समं, कुमरो पत्तो तिलयनयरे // 65 / / पणओ य जणणिजणए, इत्तो उजाणपालएण निवो। विन्नत्तो सिरिअकलं-कसुरिआगमणकहणेण // 66|| तो भासुरभूइजुओ, सकुमारो मारसासणु व्व निवो। चलिओ गुरुनमणत्थं, रायपहे नियइ नरमेगं / / 67 / / अइसलवलंतकिमिबहुलजालमच्छिन्नमच्छ्यिाच्छन्नं / निक्किलकुट्ठसल्लिर-सिरहरमइदीणहीणसरं // 68|| तंदठुमणिट्टमरिठ्ठ-मंडलम्मि व विसायमलिणमुहो। पत्तो गुरूवपासे, नमिउं निसुणेइ धम्मकहं॥६६॥ जीवो अणाइतणुकम्मबंधसंजोगओसया दुहिओ। भभइ अणाइवणस्सइ-मज्झगओऽणंतपरियट्टे७॥ तो बायरेसु तत्तो, तसत्तणं कह वि पावए जीवो। लहुकम्मो य तओ जइ, पावइ पंचिंदियत्तं च / / 71 / / पुन्नविहूणो य तओ, न अञ्जखित्ते लहेइ मणुयत्तं / लद्धे वि अज्जखित्ते, न कुलं जाइं बलं रूवं // 72 / / एयं पिकहवि पावइ, अप्पाऊ या हविज्ज वाहिल्लो। दीहाउओ निरोगो हविज जइ पुन्नजोएण // 73|| पत्ते नीरोगत्ते, दंसणनाणस्स आवरणओय। नय पावइ जिणधम्म, विवेयपरिवजिओ जीवो // 74|| लखूण वि जिणधम्म, दंसणमोहणियकम्मउदएणं। संकाइकलुसियमणो, गुरुवयणं नेव सद्दहइ // 7 // अह निम्मलसंमत्तो,जहट्टियं सहेइगुरुवयणं / नाणावरणस्सुदए, संसिज्जं तं न बुज्झेइ // 76 / / कह संसियं पिबुज्झइ, सयं पि सद्दहइ बोहए अन्नं। चारित्तमोहदोसेण, संजमं न य सयं कुणइ / / 77|| खीणे चरित्तमोहे, विमलतवं संजमं च जो कुणइ। सो पावइ मुत्तिसुहं इय भणियं खीणरागेहिं // 78|| चुल्लगपासगधन्ने, जुए रयणे य सुमिणचक्के य। चम्मजुगे परमाणू, दस दिढता सुयपसिद्धा 76 एएहिं इमं सव्वं, मणुयत्ताई कमेण दुल्लब्भ। लढुं करेह सहलं, काऊण जिणिंदवरधम्म ||8|| अह समए भणइ निवो, भयवं! किं दुक्कयं कयं तेण? उक्किट्ठकुटिएणं, तो इह जंपेइ मुनिनाहो / / 81|| मणिसुंदरमंदिररेहिरम्मि मणिमंदिरम्मि नयरम्मि। दो सोमभीमनामा, कुलपुत्ता नियमविउत्ता // 2 // पढमोऽणुत्ताणमई, अक्खुद्दो भद्दओ विणीओ य। तविवरीओ बीओ, परपेसणजीविणो दो वि।।३।। अन्नदिणे दिनमणिकिरणभासुरं सुरगिरि व उत्तुंगं। कत्थ वि वचंतेहि, तेहिं जिणमंदिरं दिल॥४॥ सुहममई सोमो भणइ, भीम ! सुकयं कयं न किं पिपुरा। अम्हेहि तेण नूणं, परपेसत्तणमिणं पत्तं / / 8 / / जंतुल्ले विनरत्ते, एगे पहुणोपयाइणो अन्ने। तं सुकयदुक्कयफलं, अकारणं हवइ किं कज्जं / / 86||
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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