SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकप्पिय 119 - अभिवानराजेन्द्रः - भाग 1 अकम्म कुद्ध न तंदुलउदगं, कूरो जो होइ रत्तिपरिखुच्छो। एगंतेण अपेयं, बहुविहसत्ताण साजोणी / / 30 / / गुलपाणियं तु पेयं, मज्झण्हे विच्छुपाणियं चेव / सेसं कालं न पेयं, तेसु वि जीवा अणेगविहा॥३१॥ आभारसरट्ठीए, करंबगे छगलतकसिद्धो अ। एगतेण अभक्खो, सो ऊ उण्हो असलिलेणं // 3 // समुच्छंति निगोया, तसा पंचिंदिया अणेगविहा। सुहुमा जईहिं दिट्टा,तज्जोणीया बहू जीवा / / 33 / / सूरणकंदो मीसे-हिं सीतिओ? एगरत्तिपरिवुच्छो। एगंतेण अभक्खो, तेसि निगोया य मंडूका // 34|| छागलतक्के सिद्धो, छगणेहिं किण्हकंगुओ जीओ। घूलं करिहिं मासो, परिवुच्छो तत्थ बहुयरया / / 3 / / पंचलवमुहुत्तकंदा, अकप्पिया सिद्धयारिनिचं पी। पत्ता कसाणवचयं, सोरहा भारदेसंम्मि॥३६|| चउहिं पयारेहिं सया, न कप्पए कंगुओ तहिं देसे। जो अंबलंमि सद्धो, तत्थयमावन्निया जीवा // 37 / / उण्हे संमुच्छम्मिय, अणेगजीवा निगोयसंठाणा। सीयलयंमि य मच्छा, रहरेणू संठिया बहवे // 38|| छागलतके सिद्धो कंगुओ खायरे हि कठेहिं। उण्हे निगोयजीवा, सीयलए तंतुया हुंति // 36|| तकं बिलंमि सिद्धो, मासो लणएयरएलमासम्मि। उण्हमि तसा जीवा, सीयलए हुंति य निगोया Vol माहिसत्तक्के छगलेहिं, सिद्धओ जइति कंगुओ होइ। समुच्छंति अणेगा, सीयलए तंतुआजीवा / / 4 / / चल्लापत्तंतिल्लंमि सिद्धयं उण्हियं च अगिणीए। उप्पज्जति अणेगा, सीयलए किण्हया जीवा ||2|| अंबिलसिद्धविराली, एगंतेणं च सा विपडिसिद्धा। उण्हम्मितसा जीवा, निगोयजीवायसीयलए||३|| सालासरसाकंगुअ, एए तिन्नि च उण्हया कूरा। परिहरियव्वा निचं सीयलए तंतुआ जीवा ||4|| छागलतक्के सिद्धो, कंगुओ खायरेहिं कटेहिं। तिल्लयसलूणमिस्सो, निगोयपंचिंदिया हुंति ||4|| निग्गंथाण अभक्खं, मूलगसांग तिरत्ति परिच्छं। कुंथुतसाय निगोया, उप्पजंति य बहुय जीवा।।४६|| मासा विहु परिवुच्छा,एगतेण वि हुंति अभक्खा। हुति य निगोयजीवा, तंतुअ पंचिंदिया तत्थ / / 47 / / सतु अभक्खा भक्खा, मक्खा परितुच्छजेसुरहदेसम्मि। पेलामुहुकुक्कुडिया, पंचिंदियजीवजोणी सा ||4|| एगं जामं भक्खा, पूखरिया कुंथुआ भवे पच्छा। एगंतेण अभक्खा, परिवुच्छामासपोलीया।।४।। उप्पज्जति निगोया, जीवा पंचिंदिया बहुविहाय। दुविहेसु मोयगेसुं, परिवुच्छाइसु तहिं देसे // 50 // गोसत्तखाइयाणं, गोणीणं गोरसेण जं मिस्सं। संसप्पइरसएहिं,खणेण वालग्गसरिसेहिं॥५१॥ सव्वेसु विदेसेसुं,परिखुसियाई अकप्पणिजाई। असणंपाणमभक्खं,नाणाजीवाणसाजोणी।।१२।। जा परिवुच्छं मुंजइ, एगरसं चउविहं पि आहारं। सा बहुविहजीवाणं, करेइ अंतं अयाणंतो // 53 / / जो नाही पडिवत्तिं, णाणादेसेसु सत्तभणिएणं। सो संजमं अविकलं, करेइ साहु य परिहरंतो // 5 // अंकुल्लघाणियाए, बायालट्ठीइ जो य इक्खुरसो। मच्छासमुच्छति अ, तक्कालं सव्वदेसेसु // 55 // संसत्तयणिझुत्ती,एसा साहुहिं चेव पढिअव्वा / अत्थो पुण सव्वेहि वि,सोयव्वो साहु पासाओ।।।६।। सं०नि०। आचा०। *अकल्पित-त्रि०।अयोग्ये। ग०१ अधि०। अकबर-पुं०। पारसीकोऽयं शब्दः दिल्लीनगराधिपतौ, म्लेच्छराजे / स हीरविजयप्रतिबोधितः / 'यो जीवाभयदानडिंडिममिषात् स्वीयं यशोडिंडिमम,षण्मासान्प्रतिवर्षमुग्रमखिलेभूमण्डले-ऽवीवदत् / / 1 // भेजे धार्मिकतामधर्मरसिको म्लेच्छाग्रिमोऽकब्बरः / श्रुत्वा यद्वदनादनाविलमतिर्धर्मोपदेशं शुभम् / / 1 / / कल्प०। अकम्म-न० न०त०। (अकर्मन्) कर्मकरणाभावे,बृ० 1 उ० / आश्रवनिरोधे, सूत्र०१ श्रु०१२ अ० / न विद्यते कर्मास्येति / (क्षीणकर्मणि)। पुं०। आचा० १श्रु०५ अ०६ उ०। अकर्मणो गतिःअत्थिणं भंते ! अकम्मस्सगई पण्णायइ? हंता अस्थि कण्हं भंते ! अकम्मस्स गई पण्णायइ ? गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरिणामेणं बंधणछेयणयाए निरिंधणयाए पुय्वप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ / कहण्हं भंते ! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरिणामेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ ? गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिदं निरुवहयं आणुपुवीए परिकम्ममाणे 2 दन्भेहि य कुसेहि य वेढेई अहहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ उण्हं दलयइ भूई भूइं सुकं समाणं अत्थाहमतारमपोरुसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूर्ण गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुयसंभारियत्ताएसलिलतलमइवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ? हंता! हवइ / अहे णं ते तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं परिक्खएणं धरणि-तलमइवइत्ता उप्पिं सलिलपइट्ठाणे भवइ ? हंता ! भवइ एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गति- परिणामेणं अकम्मस्स गईपण्णायइ / कण्हं भंते ! बंधनछेयणयाए अकम्मस्स गई पण्णत्ता? गोयमा! से जहा नामए कलसिंवलियाइ वा
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy