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________________ ऋग्वेद ] ( ८७ ) [ऋग्वेद आदि । पास्क ने 'निरुक्त' में वैदिक देवताओं के तीन प्रकार माने हैं-[दे० निरुक्त] पृथ्वीस्थानीय, अन्तरिक्षस्थानीय तथा धुस्थानीय । [ दे. वैदिक देवता] पृथ्वीस्थानीय प्रधान देवता हैं-अग्नि, अन्तरिक्षस्थानीय प्रधान देवता वायु एवं इन्द्र हैं तथा धुस्थानीय सूर्य हैं। 'ऋग्वेद' के एक मन्त्र में बताया गया है कि पृथ्वीस्थानीय ११, अन्तरिक्षस्थानीय ११ तथा घुस्थानीय ११ मिलकर देवताओं की संख्या ३३ है। [ १.१३९।११ ] इसमें दो स्थानों पर देवताओं की संख्या ३३६९ दी गयी हैत्रीणि शतानीसहस्रायग्नि त्रिशच्च देवा नव चासपर्यन् । ३।९।९ तथा १०१५२।६ सायण के अनुसार देवता तो ३३ हैं पर उनकी महिमा बतलाने के लिए ३३३९ देवों का उल्लेख है। [ दे० सायण ] 'ऋग्वेद' में श्रद्धा, मन्यु, धातृ, अदिति तथा ऋभु, अप्सरा, गन्धर्व, गौ, औषधि आदि की भी प्रार्थनाएं की गयी हैं। "जिस सूक्त के ऊपर जिस देवता का नाम लिखा रहता है उस सूक्त में उसी देवता का प्रतिपादन और स्तवन है । किन्तु जहां जल, औषधि आदि की स्तुति की गयी है वहाँ जलादि वर्णनीय हैं और उनके अधिष्ठाता देवतास्तवनीय हैं। आर्य लोग प्रत्येक जड़ पदार्थ का एक अधिष्ठाता देवता मानते थे। इसीलिए उन्होंने जड़ की स्तुति चेतन की भाँति की है। वैदिकसाहित्य पृ० ८ पब्लिकेशन डिवीजन । ऋग्वेद में अनेक देवताओं की पृथक-पृथक् स्तुति की गयी है, जिसे देख कर अनेक आधुनिक विद्वानों ने यह सन्देह प्रकट किया है कि तत्कालीन ऋषियों को ईश्वर का ज्ञान नहीं था। पर यह धारणा आधारहीन है । एक मन्त्र में कहा गया है कि देवों की शक्ति एक है, दो नहीं-महद्देवानामसुरत्वमेकम् । दानस्तुति-'ऋग्वेद' में कतिपय ऐसे मन्त्र हैं, जिन्हें 'दानस्तुति' कहते हैं । कात्यायन की 'ऋक् सर्वानुक्रमणी' में केवल २२ सूक्तों का कथन है, पर आधुनिक विद्वानों के अनुसार ६८ दानस्तुतियां हैं। डॉ. मैकडोनल का कथन है कि 'ऋग्वेद में कुछ लौकिक मन्त्र ऐसे हैं जिनमें ऐतिहासिक सन्दर्भ निहित हैं। इन्हें दानस्तुति कहते हैं। ये स्तुतियां ऋत्विजों के द्वारा अपने राजाओं के उन उदार दानों के प्रशंसात्मक कथन हैं जो यज्ञ के अवसर पर दिये गए थे। उनमें काव्यशैली की दृष्टि से चमत्कार कम है। ऐसा लगता है कि वे कुछ बाद की रचना हो; कारण, ऐसे सूक्त केवल संहिता के प्रथम और दशम मण्डल में तथा अष्टम मण्डल के बालखिल्य भाग में ही मिलते हैं। इस प्रकार की स्तुतियों में दो या तीन ही मन्त्र, और ये आठवें मण्डल के इतर विषय पर दिये हुए सूक्तों के परिशिष्ट रूप में पाये जाते हैं। यद्यपि इन सूक्तों का मुख्य विषय दानीय वस्तु तथा प्रदत्त राशि का उल्लेख मात्र है तथापि प्रसंगवश उसमें दाताओं के कुल एवं वंश-परम्परा सम्बन्धी तथा वैदिक जातियों के नाम और घर का भी वर्णन मिलता है, जो ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत करता है। दान की राशि कहीं-कहीं पर अत्युक्तिपूर्ण है; जैसे, एक दाता ने षष्टि राहल गोदान किया था। तथापि हम मान सकते हैं कि दान बहुत अधिक होता था और वैदिक युग के राजाओं के पास अतुल धन सम्पत्ति होती थी।' संस्कृत साहित्य का इतिहास पृ. ११८-११९ 1. 'दानस्तुति' में दान की महिमा का भोजस्वी र्णन है। ऋग्वेद
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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