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ऋग्वेद ]
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[ ऋग्वेद
' चत्वारि शतसहस्राणि द्वात्रिंशच्चाक्षरसहस्राणि' अनुवाक् का अन्त । 'ऋग्वेद' में 'ऋग्' मन्त्रों की गणना अत्यन्त जटिल समस्या है जिसका समाधान प्राचीन तथा अर्वाचीन विद्वानों ने विभिन्न ढंग से किया है ।
वंश मण्डल - पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद' में प्राचीन एवं अर्वाचीन मन्त्रों का संग्रह है । ये लोग सम्पूर्ण मण्डलों को प्राचीन नहीं स्वीकार करते। इनके अनुसार द्वितीय से लेकर सप्तम मण्डल तक का भाग प्राचीन है तथा शेष भाग अर्वाचीन है ! 'ऋग्वेद' के प्रत्येक मण्डल का सम्बन्ध किसी-न-किसी ऋषि अथवा उनके वंशजों से है । द्वितीय के ऋषि गृत्समद, तृतीय मण्डल के विश्वामित्र, चतुर्थ के वामदेव, पञ्चम के अत्रि, षष्ठ के भारद्वाज एवं सप्तम के वसिष्ठ हैं । अष्टम मण्डल का सम्बन्ध कण्व एवं अंगिरा वंश से है । नवम मण्डल के से सम्बद्ध हैं । सोम को पवमान कहा गया है, अतः सोम से को पवमान मण्डल कहा जाता है। दशम मण्डल सबसे अर्वाचीन है । इसकी नवीनता का प्रमाण इसकी भाषा, छन्द, नवीन दार्शनिक तथ्यों की कल्पना एवं नवीन देवता हैं । भारतीय दृष्टि से इन मण्डलों का संकलन एवं विभाजन एक व्यक्ति द्वारा किया गया है ।
समग्र मन्त्र 'सोम' देवता सम्बद्ध मन्त्रों के समुदाय
'ऋग्वेद' की शाखायें - इस वेद की शाखाओं के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । महाभाष्यकार पतन्जलि के अनुसार 'ऋग्वेद' की २१ बाबायें हैं- 'चत्वारो वेदाः साङ्गा सरहस्या बहुधा भिन्नाः । एकशतमध्वर्युशाखाः । सहस्रवर्त्मा सामवेद: । एकविंशतिधा बाह्वृच्यम् । नवधार्थं वर्णोवेदः । पस्पशाह्निकः । चरणव्यूह के अनुसार इनमें पाँच शाखायें प्रधान हैं- शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांख्यायन तथा माण्डू - कायन । इन शाखाओं की भी कई उपशाखायें थीं, किन्तु इस समय शाकल शाखा की एकमात्र दशैशरीय उपशाखा ही प्राप्त होती है । शाकल नामक ऋषि ही शाकल शाखा के मन्त्रपाठों के प्रवर्तक थे । इन्होंने मन्त्रों के पदों में सन्धि-विच्छेद करके स्मरण रखने की रीति चलाई थी। 'ऋग्वेद' की प्रचलित संहिता शाकलशाखा ही है । शेष शाखाएँ नहीं मिलतीं तथा उनके उल्लेख मात्र प्राप्त होते हैं । शाकलशाखा वैदिक साहित्य का शिरोरत्न है । 'सामवेद' की कौथुमशाखा के सारे मन्त्र ( केवल ७५ मन्त्रों को छोड़ कर ) शाकलशाखा के ही हैं । 'कृष्ण यजुर्वेद' की तैत्तिरीयशाखा तथा 'शुक्ल यजुर्वेद' की वाजसनेय संहिता के अधिकांश मन्त्र शाकलशाखा के ही हैं तथा 'अथर्ववेद' की शौनक संहिता के १२०० मन्त्र भी शाकलशाखा में पाये जाते हैं ।
विषय विवेचन – 'ऋग्वेद' में के स्तोत्रों का विशाल संग्रह है। इष्टसिद्धि के निमित्त देवताओं से आदि की स्तुति में अधिक मन्त्र गयी है । उषा की स्तुति में अतिरिक्त 'ऋग्वेद' के
नाना प्रकार की प्राकृतिक शक्तियों एवं देवताओं विभिन्न सुन्दर भावों से ओतप्रोत उद्गारों में अपनी प्रार्थना की है। देवताओं में अग्नि, इन्द्र, वरुण, विष्णु कहे गए हैं । देवियों में उषा की अधिक स्तुति की काव्य की सुन्दर छटा प्रदर्शित की प्रधान देवता हैं- सविता, पूषा, मित्र, विष्णु, रुद्र, मरुत्, पर्जन्य
गयी है । इनके