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शाखा पर साधिकार कुछ कह सकता है। मैं इस कार्य में अनधिकार चेष्टा करने के लिए ही प्रवृत्त हुआ हूँ, अतः त्रुटियों का रह जाना सहज संभाव्य है । यदि विद्वान् उनकी ओर संकेत करेंगे तो आगामी संस्करण में उनका मार्जन कर दिया जायगा । ग्रन्थ की सूची प्रस्तुत करने एवं विवरण तथा टिप्पणी देने में संस्कृत के हस्तलेखसम्बन्धी विवरणग्रन्थों, इतिहासों एवं शोधग्रन्थों से सहायता ली गयी है तथा देश-विदेश के अनेक लेखकों की रचनाओं का उपयोग किया गया है ! चूँकि ऐसे लेखकों की नामावली अत्यन्त विस्तृत है, अतः सबके प्रति अपनी मौन प्रणामाअलि अर्पित करता हूँ ।
मैं उन (हिन्दी) अनुवादकों का भी कृतज्ञ हूँ जिनके अनुवादों एवं भूमिकाओं की सहायता से यह कोश पूर्ण हुआ है। मैंने इसमें कतिपय नवीन सामग्री का सचिवेश किया है और कई अज्ञात ग्रन्थों का भी परिचय दिया है। ऐसे ग्रन्थों की प्राप्ति अनेक व्यक्तियों द्वारा हुई है, अतः वे धन्यवाद के पात्र हैं । इस कोश के निर्माण में मेरे पाँच (संस्कृत) गुरुओं का महत्त्वपूर्ण योग है जिनके चरणों में बैठकर मैंने संस्कृत-साहित्य का अध्ययन किया है । वे हैं -आ० नित्यानन्द पाठक, आ० जगन्नाथराय शर्मा, आ० चन्द्रशेखर पाठक, आ० रामदीन मिश्र एवं आ० सिद्धनाथ मिश्र । इनके आशीर्वाद एवं शुभकामना से यह कोश पूर्ण हुआ है । मैं इसे गुरुओं को समर्पित कर संतोष का अनुभव करता हूँ और कोश के माध्यम से गुरु-चरणों पर सुमन चढ़ाता हूँ ।
कोश - लेखन - काल में मेरे परिवार के सदस्यों ने मेरे साथ जिस रूप में सहयोग दिया है उसके लिए उनका आभारी हूँ । धर्मपत्नी लीला, बहिन जलपति देवी, बेटी गीता, कविता तथा चि० गोलोक बिहारी ' चुन्नू' आलोक, विष्णुलोक सभी का सहयोग अभिनन्दनीय है । मेरे भाई साहब ठाकुर इन्द्रनाथ प्रसाद सिन्हा, भागिनेय ठाकुर सुधीरनाथ 'लल्लन' एवं उनकी पत्नी सौभाग्यवती उर्मिला ठाकुर ने इस ग्रन्थ को देख कर हर्ष प्रकट किया है, अतः उनका अभिनन्दन करता हूँ । पूज्य भैया श्री स्व० अशर्फीलाल एवं मनोहरलाल तथा चाचा स्व० ठाकुरलाल, अखौरी केसरी लाल, भाई श्री मासनलाल एवं श्री सूरजलाल ने मेरे प्रयास पर आशीर्वाद दिया है, इसके लिए उनका आभारी हूँ । मेरे बचपन के दो मित्रों - पं० ( स्व ० ) बाबूराम दूबे एवं पं० लालमणि दूबे ने इस कोश की प्रगति पर संतोष प्रकट किया है, एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं । प्रिय शिष्य पं० निर्मलकुमार
( मुखिया, नवहट्टा ) तथा प्रो० नवल किशोर दूबे, श्री रामेश्वर सिंह 'मानव' मेरे कार्य में रुचि ली है, इसके लिए उन्हें धन्यवाद देता हूँ । इस अवसर पर मैं अपने तीन ( स्वर्गीय ) गुरुओं का अत्यधिक अभाव अनुभव करता हूँ यदि वे जीवित रहते तो उन्हें अधिक प्रसन्नता होती; वे हैं—पं० विश्वनाथ द्विवेदी, पं० चन्द्रशेखर शर्मा बी० ए०, एल० एल० बी० तथा पं० मंगलेश्वर तिवारी |