________________
[5]
वेदाङ्ग — शिक्षा, कल्प, निरुक्त, ज्योतिष, व्याकरण एवं छन्द — प्रातिशाख्य एवं अनुक्रमणीग्रन्थ ), रामायण, महाभारत, गीता, पुराण, उपपुराण, स्मृतिग्रन्थ, धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र ( निबन्धमन्थ ), कामशास्त्र, संगीतशास्त्र, व्याकरण, कोश, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, ज्योतिष, दर्शनशास्त्र ( चार्वाक, बौद्ध, जैन, सांख्य, न्याय, मीमांसा, वैशेषिक, योग, वेदान्त, वैष्णव-दर्शन, पाञ्चरात्र, तन्त्र ), काव्यशास्त्र, महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतिकाव्य, मुक्तककाव्य, सन्देशकाव्य, ऐतिहासिक महाकाव्य, चम्पूकाव्य, नाट्यसाहित्य, गद्यसाहित्य, कथाकाव्य एवं प्रमुख पाश्चात्य संस्कृतज्ञों का परिचय । कोश की प्रतिपादन शैली इस प्रकार है
१ – किसी विषय का विवरण प्रस्तुत करते समय तद्विषयक अद्यावधि किये गए अनुसन्धानों एवं विवेचनों का समावेश कर यथासंभव अद्यतन सामग्री दी गयी है एवं सन्दर्भों का संकेत किया गया है ।
२ – संस्कृत साहित्य की सभी शाखाओं पर उपलब्ध अंगरेजी एवं हिन्दी के प्रामाणिक ग्रन्थों का सार - संग्रह कर, विवरण एवं टिप्पणी को पूर्ण बनाने का प्रयास किया गया है ।
३ - किसी विषय का विवरण प्रस्तुत करते समय सारे आधारग्रन्थों की सूची दी गयी है और हिन्दी अनुवादों का भी संकेत किया गया है।
४ - यथासंभव अनुवादकों एवं लेखकों के नाम दिये गए हैं और कहीं-कहीं केवल प्रकाशकों का ही नाम दे दिया गया है तथा यत्र-तत्र अँगरेजी एवं अन्य भाषाओं के अनुवादों का भी निर्देश है।
५- इसमें संस्कृत के प्रमुख ग्रन्थकारों, ग्रन्थों, प्रवृत्तियों, विचारधाराओं एवं प्रतिमानों का संक्षिप्त विवेचन है तथा गौण विषयों की टिप्पणी दी गयी है या नामोल्लेख किया गया है ।
६ - उपयोगिता की दृष्टि से ललित साहित्य का विस्तृत विवेचन किया गया है तथा दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद एवं संगीत के प्रमुख ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों का भी परिचय दिया गया है ।
७- इस कोश के माध्यम से दिखलाया गया है कि संस्कृत की सभी शाखाओं पर हिन्दी में कितने ग्रन्थ हैं और किन-किन ग्रन्थों के अनुवाद हो चुके हैं ।
इसमें मेरा अपना कुछ भी नहीं है और जो कुछ है वह संस्कृत-साहित्य की विविध शाखाओं पर लिखने वाले विद्वानों का ही है। मैंने उनके विचारों, निष्कर्षो एवं अनुसन्धानों का निचोड़ रखने का प्रयास किया है। इस कार्य में मुझे कितनी सफलता मिली है, इसका निर्णय विज्ञ जन ही कर सकते हैं। एक व्यक्ति प्रत्येक विषय का ज्ञाता नहीं हो सकता और न वह संस्कृत जैसे विशाल वाङ्मय की प्रत्येक