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________________ आर्योदय महाकाव्य ] [ आर्षेयोपनिषद् इसमें कहीं-कहीं अश्लील शृङ्गार एवं चौर्यरत का चित्रण पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, जिसकी आलोचकों ने निन्दा की है। 'आर्यासप्तशती' का एक अपना वैशिष्ट्य है अन्योक्ति का शृङ्गारपरक प्रयोग । इनके पूर्व किसी भी रचना में ऐसे उदाहरण नहीं मिलते। प्रायः अन्योक्तियों का प्रयोग नीतिविषयक कथनों में ही किया जाता रहा है, पर गोवर्धनाचार्य ने शृङ्गारात्मक सन्दों में भी इसका कुशलता के साथ प्रयोग किया है और इसमें भी कवि की कलाप्रियता एवं शब्द वैचित्र्य उसका साथ नहीं छोड़ते। आधारग्रन्थ-१. आर्या सप्तशती (हिन्दी अनुवाद )-अनु० पं० रामाकान्त त्रिपाठी (चौखम्बा प्रकाशन) २. संस्कृत गीतिकाव्य का विकास-डॉ परमानन्द शास्त्री। आर्योदय महाकाव्य-इस महाकाव्य के रचयिता पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय हैं। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के नरदई ग्राम में ६ सितम्बर १८८१ ई० को हुआ था। इन्होंने प्रयाग से अंगरेजी और दर्शन में एम० ए० किया था। 'आर्योदय महाकाव्य' भारतीय संस्कृति का काव्यात्मक इतिहास है। इसमें २१ सर्ग एवं ११६६ श्लोक हैं । इसके दो विभाग हैं-पूर्वाध तथा उत्तरार्ध । पूर्वाध का उद्देश्य है भारत को सांस्कृतिक चेतना प्रदान करना तथा उत्तराध में स्वामी दयानन्द का जीवनवृत्त है : इसका प्रारम्भ सृष्टि के वर्णन से होता है और स्वामीजी की योधपुर दुर्घटना तथा आर्यसंस्कृत्युदय में समाप्ति हो जाती है। जीवनं मरणं तात प्राप्यते सर्वजन्तुभिः । स्वाथं त्यक्त्वा परार्थाय यो जीवति स जीवति ॥ १५॥४५ उपाध्याय जी कई विषयों तथा भाषा के पण्डित हैं। इन्होंने अंगरेजी तथा हिन्दी में अनेक उत्कृष्टकोटि के ग्रन्थों की रचना की है। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं-फिलॉसफी ऑफ दयानन्द, ऐतरेय तथा शतपथ ब्राह्मण के हिन्दी अनुवाद 'मीमांसासूत्र एवं शाबर भाष्य' का हिन्दी अनुवाद आदि । उपाध्याय जी आर्यसमाजी हैं। __ आर्षेय ब्राह्मण-यह 'सामवेद' का ब्राह्मण है। इसमें तीन प्रपाठक एवं ८२ खण्ड हैं तथा सामगायन के प्रथम प्रचारक ऋषियों का वर्णन है और यही इसकी महत्ता का कारण है । सामगायन के उद्भावक ऋषियों का वर्णन होने के कारण यह ब्राह्मण 'सामवेद' के लिए आर्षानुक्रमणी का कार्य करता है । क-बर्नेल द्वारा रोमन अक्षरों में मंगलोर से १८७६ ई० में प्रकाशित । ख-जीवानन्द विद्यासागर द्वारा नागराक्षरों में सायणभाष्य सहित कलकत्ता से प्रकाशित । आयोनिषद-यह नवीन प्राप्त उपनिषद् है, जिसकी एकमात्र पाण्डुलिपि आड्यार लाइब्रेरी में है और इसका प्रकाशन उसी पाण्डुलिपि के आधार पर हुआ है। यह अल्पाकार उपनिषद् है। इसमें १० अनुच्छेद हैं तथा विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम एवं वसिष्ट प्रभृति ऋषियों के विचार-विमर्श के रूप में ब्रह्मोद्य या ब्रह्मविद्या का वर्णन है। ऋषियों द्वारा विचार-विमर्श किये जाने के कारण इसका नामकरण आर्षेय या ऋषि-सम्बद्ध है ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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