SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 665
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्यदर्पण ( ६५४ ) [साहित्यद पंच से सभी अलंकारशास्त्रविषयक ग्रन्थों में प्रमुख है। इसमें दस परिच्छेद हैं तथा श्रव्य काव्य के भेदों के साथ-ही-साथ दृश्यकाव्य का भी विस्तारपूर्वक वर्णन है। प्रथम परिच्छेद में काव्य का स्वरूप एवं भेद का वर्णन तथा द्वितीय में वाक्य, पद एवं शम्दशक्तियों का निरूपण है। तृतीय परिच्छेद में विस्तारपूर्वक रस का वर्णन है जिसके अन्तर्गत रसस्वरूप, अन्ज, भाव, नो रस, नायक-नायिकाभेद तथा रस-सम्बन्धी अन्यान्य विषयों का समावेश किया गया है। चतुर्थ परिच्छेद में ध्वनि तथा गुणीभूत व्यंग्य का एवं पंचम में व्यंजना की स्थापना की गयी है। षष्ठ परिच्छेद में विस्तार• पूर्वक अव्यकाव्य के भेदों-मुक्तक, महाकाव्य, खण्डकाव्य आदि एवं रूपक तथा उपस्पक के भेदों एवं नाव्यविषयक सभी प्रमुख तथ्यों का विवेचन है । सप्तम परिच्छेद में ७० काव्यदोषों एवं अष्टम में गुण-विवेचन है। नवम परिच्छेद में वैदर्भी, गौड़ी, लाटी तथा पांचाली वृत्तियां वर्णित हैं और दशम परिच्छेद में विस्तार के साथ धन्दालधार, अर्याललार, एवं मिमालवार का निरूपण है। इसमें वर्णित अलङ्कारों की संख्या ७७ है-शब्दालङ्कार-१ पुनरक्तवदाभास, २ अनुप्रास, ३ यमक, ४ वक्रोक्ति, ५ भाषासमक, ६ श्लेष एवं ७ चित्रालवार, । अर्यालङ्कार-१. उपमा, २ अनन्वय, ३ उपमेयोपमा, ४ स्मरण, ५ रूपक, ६ परिणाम, ७ सन्देह, ८ भ्रान्तिमान, ९ उल्लेख १० अपहृति, ११ निश्चय, १२ उत्प्रेक्षा, १३ अतिशयोक्ति, १४ तुल्ययोगिता १५ दीपक, १६ प्रतिवस्तूपमा, १७ दृष्टान्त, १८ निदर्शना, १९ व्यतिरेक, २० सहोक्ति, २१ विनोक्ति, २२ समासोक्ति, २३ परिकर, २४ श्लेष, २५ अप्रस्तुतप्रशंसा, २६ पर्यायोक्ति, २७ अर्थान्तरन्यास, २८ कायलिङ्ग, २९ अनुमान, ३० हेतु, २१ अनुकूल, ३२ आक्षिप, २३ विभावना, ३४ विशेषोक्ति, ३५ विरोध, ३६ असङ्गति, ३७ विषम, ३८ सम, ३१ विचित्र, ४० अधिक, ४१ बन्योन्य, ४२ विशेष, ४३ व्याघात, ४४ कारणमाला, ४५ मालादीपक, ४६ एकावली, ४७ सार, ४८ यथासंख्य, ४९ पर्याय, ५० परिवृत्ति, ५१ परिसंख्या, ५२ उत्तर, ५५ अर्यापत्ति, ५४ विकल्प, ५५ समुच्चय, ५६ समाधि, ५७ प्रत्यनीक, ५५ प्रतीप, ५९ मीलित, ६. सामान्य, ६१ तद्गुण, ६२ अतद्गुण, ६३ सूक्ष्म, ६४ व्याजोक्ति, ६५ स्वभावोक्ति, ६६ भाविक, ६७ उदात्त, ६८ संसृष्टि, ६९ सकुर । इनके अतिरिक्त सात रसवत् अलङ्कारों का भी वर्णन है-रसवत्, ऊर्जस्वी, प्रेयसमाहित, भावोदय, भाषसन्धि, भावशवलता। 'साहित्यदर्पण' में तीन नवीन अलङ्कारों का वर्णन है-भाषासम, अनुकूल एवं निश्चय तथा अनुप्रास के दो नये भेद वर्णित हैं-श्रुत्यनुप्रास एवं अन्त्यानुप्रास। इस पर चार टीकाएं उपलब्ध है-मथुरानाथ शुक्ल कृत टिप्पण, गोपीनाथ रचित प्रभा, अनन्तदास (विश्वनाथ कविराज के पुत्र) कृत लोचन तथा रामचरण तकंवागीश कृत विवृति । बाधुनिक युग में भी 'लक्ष्मी' नामक टीका रची गयी है जो चौखम्भा विचाभवन से प्रकाशित है। 'साहित्यदर्पण' के दो हिन्दी अनुवाद हुए है-क-पं. शालग्रामवासित विमा' टीका । स-डॉ. सत्यव्रत सिंह कृत 'वधिकला' हिन्दी वास्या पोलम्बा विधाभवन, वाराणसी।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy