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साहित्यदर्पण] ( ६५३ )
[साहित्यदर्पण mmaamaraaaaaaaaaaaaaaansaaraaaaaaaaaaaaaaaaaxi इससे ज्ञात होता है कि उपर्युक्त तीन पण्डितों ने भाष्य-लेखन में सायण को सहायता दी थी। इसी शिलालेख की साक्षी पर नरसिंहाचायं तथा डॉ० गुणे ने अन्तरंग परीक्षा के आधार पर भाष्यों का रचयिता एक व्यक्ति को नहीं माना है [दे० मैसूर भारफ्ला. जिकल रिपोर्ट १९०८ पृ० ५४ तथा इण्डियन ऐटिक्वेरी, वर्ष १९१६, पृ० १९]। डॉ. गुणे के अनुसार वेदभाष्य के विभिन्न अष्टकों की भिन्न-भिन्न व्याख्याशैली के द्वारा उन्हें एक व्यक्ति की रचना नहीं माना जा सकता [ दे० आशुतोष जुबिली काममोरेशन वालुम, भाग ५ पृ० ४३७-४७३ ] । पण्डित बलदेव उपाध्याय ने भाष्यों का रचयिता सायण को ही माना है। 'वेदों के भिन्न-भिन्न संहिता-भाष्यों के अनुशीलन करने से हम इसी सिद्धान्त पर पहुंचते हैं कि ये सब भाष्य न केवल एक ही पद्धति से लिखे गए हैं; बल्कि इनके मन्त्रों के अर्थ में भी नितान्त सामन्जस्य है। मात्र अर्थ में विरोधाभास को देखकर भले ही कतिपय आलोचक चक्कर में पड़ जाये और सायण के कर्तृत्व में अश्रद्धालु हों, परन्तु वेदभाष्यों की विशालता देखकर, मन्त्रार्थों की व्याख्या का अनुशीलन कर, वेदभाष्यों के उपोद्घातों का मनन कर, हम इसी सिद्धान्त पर पहुंचते हैं कि कतिपय बाह्य विरोधों के अस्तित्व होने पर भी इनके ऊपर एक ही विद्वान् रचयिता की कल्पना की छाप है और वह रचयिता सायणाचार्य से भिन्न कोई व्यक्ति नहीं है।' वैदिक साहित्य और संस्कृति पृ० ८६।
सायण-भाष्य वेदार्थ-अनुशीलन के लिए अत्यन्त उपयोगी है। उन्होंने पूर्ववर्ती सभी वेदभाष्यों से सहायता लेकर परम्परागत पद्धति के आधार पर अपना भाष्य निर्मित किया है। वेदों का अर्थ करते हुए उन्होंने वेदांगों की भी सहायता ग्रहण की है तथा अपने कथन की पुष्टि के लिए पुराण, इतिहास, स्मृति तथा महाभारत आदि ग्रन्यों से भी उद्धरण दिये हैं। सायण ने ऋग्वेद के प्रथम मष्टक की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण शब्दों के प्रयोग, उत्पत्ति एवं सिद्धि के लिए पाणिनि-व्याकरण के लिए अतिरिक्त प्रातिशाख्यों का भी आधार ग्रहण किया है। सूक्तों की व्याख्या करते हुए उन्होंने ऋषि, देवता आदि का निर्देश किया है तथा सूक्त-विषयक अलभ्यमान आख्यायिकाएँ भी दे दी हैं। वेद-विषयक समस्त विषयों का प्रतिपादन करते हुए सायण ने उसके रहस्य को सुलझाया है तथा प्रत्येक वेद के प्रारम्भ में उपोद्घात के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की है । उनके भाष्य में तत्कालीन याशिक पद्धति का भी समावेश है । सारांश यह कि अपने समय की आवश्यकता के अनुसार सभी आवश्यकता एवं उपयोगी विषयों का समावेश कर सायण ने अपने भाष्य को पूर्ण बनाया है, अतः वेदार्थ-अनुशीलन के इतिहास में इसकी देन अमर है। वैदिक भाषा और साहित्य के सौन्दर्योद्घाटन के लिए सायण का आज भी वही महत्व है और वही एक प्रामाणिक साधन है जिसके द्वारा वेदों का अर्थ सुगमतापूर्वक जाना जा सकता है।
आषारग्रन्थ-१. आचार्य सायण और माधव-पं. बलदेव उपाध्याय । २. वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं० बलदेव उपाध्याय ।
साहित्यदर्पण-यह महापात्र विश्वनाथ-रचित काव्य के दांगों का वर्णन करने वाला प्रौढ़ ग्रन्थ हैं [२० विश्वनाथ ] । 'साहित्यदर्पण' लोकप्रियता की दृष्टि