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वेणीसंहार ]
( ५१८ )
| वेणीसंहार
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सत्त्व, अति गम्भीर, क्षमावान्, अविकत्थन, स्थिर, निगूढ़ाहंकार और दृढ़त होता है । दुर्योधन में उपर्युक गुण नहीं पाये जाते, अतः भारतीय परम्परा के अनुसार वह नायक नहीं हो सकता । भीमसेन की वीरता संग्रामस्थल में दिखाई पड़ती है, किन्तु दुर्योधन का वीरत्व वचनों में ही अभिव्यक्त होता है । द्वितीय अङ्क में अपनी पत्नी के साथ उसकी शृङ्गारिक भंगिमाओं का निदर्शन अनुपयुक्त है । जब युद्ध की तैयारी हो रही है वह भानुमती को आलिंगन पाश में बांधे हुए है। इस नाटक में कवि का लक्ष्य दुर्योधन का विनाश दिखाना ही है । "ऐसे समृद्धिशाली व्यक्ति का विनाश चित्रित कर कवि ने देव की परिवर्तनशील गति को प्रस्तुत करने का सफल प्रयत्न किया है । अधःपतन की ओर जाता हुआ दुर्योधन वोररस की उक्तियों में यद्यपि किसी प्रकार भी कम नहीं है, पर जीवन के अन्तिम दिनों में किचिदपि चमत्कार एवं पुरुषत्व न दिखाने से उसे आत्मसम्मान एवं वीरता की जाग्रत मूत्ति समझना उचित प्रतीत नहीं होता !" संस्कृत नाटककार पृष्ठ १७६ ।
'वेणीसंहार' के नायकत्व का दूसरा प्रत्याशी भीमसेन है। इस नाटक को प्रमुख घटना एवं शीर्षक का सम्बन्ध भीमसेन से ही है । इसकी प्रमुख घटना है द्रोपदी की वेणी का संहार ( संवारना ), जिसे भीम ही दुर्योधन की जांघों को तोड़कर, उसके रक्त से ही, सम्पन्न करता है । अपने रक्तरंजित हाथों से, द्रोपदी की बेणी गूंथकर वह अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करता है। यदि इसे ही नाटक का फल मान लिया जाय तो नाटक के फल का भोक्ता भीमसेन सिद्ध होता है । अपने लक्ष्य की पूर्ति में वह सतत प्रयत्नशील दिखाई पड़ता है और आरम्भ से अन्त तक उसी की दर्पोक्तियां सुनाई पड़ती हैं ( द्वितीय अंक
से
दुर्योधन का यह कार्य
कंचुकी दुर्योधन की जंघा के प्रसंग में 'भनं भीमेन' कह कर सबका ध्यान आकृष्ट कर देता है । दुर्योधन की भांति भीम का भी प्रभाव सम्पूर्ण नाटक पर छाया रहता है, अतः उपर्युक्त कारणों से कतिपय आलोचक भीम को ही 'वेणोसंहार' का नायक स्वीकार करते हैं (दे० वेणीसंहार : ए क्रिटिकल स्टडी प्रो० ए० बी० गजेन्द्रगडकर ), आरम्भ से अन्त तक भीमसेन अपनी वीरता प्रदर्शित करता है ओर छठे अंक में यह भी सूचना प्राप्त होती है कि दुर्योधन बांधवों एवं सहायकों के मारे जाने के पश्चात् प्राणों के भय से, किसी सरोवर में छिपा हुआ है। क्षत्रियोचित कर्म की दृष्टि लाघनीय नहीं है । यद्यपि भीमसैन का चरित्र प्रारम्भ से वीरता से पूर्ण है, तथापि भारतीय परम्परा उसे नायकत्व नहीं है । भीम धीरोदात्त नायक न होकर प्रतिपक्षी नायक करता है । वह क्रोधी, आत्मप्रशंखी तथा अहंकारी होने से नहीं बैठता तथा धृतराष्ट्र एवं गान्धारी को कटुक्तियों से हिचकता । वह अपनी वाणी पर संयम नहीं रखता, अतः नायक पद के लिए अनुपयुक्त सिद्ध होता है ।
अन्त तक उज्ज्वल तथा प्रदान करने को प्रस्तुत
धीरोद्धत का प्रतिनिधित्व
नायकत्व के तृतीय प्रत्याशी धीरोदात्त नायक हैं, अत: इनमें
नायक पद के लिए उपयुक्त
मर्माहत करने में भी नहीं
युधिष्ठिर हैं, ये भारतीय परम्परा के अनुसार नायकत्व की पूरी क्षमता है । वे धीर, शान्त तथा अविकत्थन हैं । युधिष्ठिर के पक्ष में अन्य अनेक तथ्य भी हैं जिनसे इनका