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________________ राजानक रुय्यक] [राजानक रुय्यक प्रत्यावर्तन का वर्णन किया है, जो किसी भी नाट्य कृति के लिए अनुपयुक्त माना जा सकता है। राजशेखर शार्दूलविक्रीडित छन्द के सिद्धहस्त कवि हैं जिसकी प्रशंसा क्षेमेन्द्र ने अपने 'सुवृत्ततिश्रक' में की है-शादूल-विक्रोडितैरेव प्रख्यातो राजशेखरः । शिखरीव परं वः सोल्लेखैरुच्चशेखरः ॥ राजशेखर ने अपने नाटकों के 'भणितिगुण' स्वयं प्रशंसा की है। 'भणितिगुण' से इनका तात्पर्य है उस गुण से जिसके कारण उक्ति सरस, सुन्दर एवं सुबोध बनती है। इन्होंने 'बालरामायण' के 'नाट्यगुण' को महत्व न देकर उसे पाट्य एवं गेय माना है । ये अपने नाटकों की सार्थकता अभिनेय में न मानकर पढ़ने में स्वीकार करते हैं। ब्रूते यः कोऽपि दोषः महदिति सुमतिर्बालरामायणेऽस्मिन् प्रष्टव्योऽसौ पटीयान् इह भणितिगुणो विद्यते वा न वेति । यद्यस्ति स्वस्ति तुभ्यं भव पठनरुचिः ।। १।१२ बालरामायण । आचार्यों ने राजशेखर को 'शब्द-कवि' कहा है। सीता के रूप का वर्णन अत्यन्त मोहक है-सीता के मुख के समक्ष चन्द्रमा ऐसा लगता है मानों उसे अंजन से लीप दिया गया हो। मृगियों के नेत्रों में मानों जड़ता प्रविष्ट कर गयी है तथा मूंगे की लता की लालिमा फीकी पड़ गयी है। सोने की कान्ति काली हो गयी है तथा कोकिलाओं के कलकण्ठ में मानों कला के रूखेपन का अभ्यास कराया गया है। मोरों के चित्र-विचित्र पंख मानों निन्दा के भार से दबे हुए हैं। इन्दुलिप्त इवाजनेन जडिता दृष्टिमंगीणामिव, प्रम्लानारुणिमेव विद्रुमलता श्यामेव हेमद्युतिः । पारुष्यं कलया च कोकिलावधू-कण्ठेष्विव प्रस्तुतं, सीतायाः पुरतश्च हन्त शिखिनां बर्हा सगीं इव ॥ बालरायायण ११४२। राजशेखर में प्रथमकोटि की काव्यप्रतिभा थी। वर्णन की निपुणता तथा अलंकारों का रमणीय प्रयोग इन्हें उच्चकोटि के कवि सिद्ध करते हैं। इनमें कल्पना का अपूर्व प्रवाह दिखाई पड़ता है तथा शब्द-चमत्कार पद-पद पर प्रदर्शित होता है। इन्होंने अपनी रचना में लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी चमत्कारपूर्ण विन्यास किया है । 'नव नगद न तेरह उधार' का सुन्दर प्रयोग किया गया है-'वरं तत्कालोपनतां तित्तिरी न पुनः दिवसां तरिता मयूरी'। [दे० काव्यमीमांस ।] ___ आधारग्रन्थ-१. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं. बलदेव उपाध्याय । २. संस्कृत नाटक-कीथ। राजानक रुय्यक-साहित्यशास्त्र (काव्यशास्त्र) के आचार्य । इनका समय बारहवीं शताब्दी का मध्य है। ये काश्मीरक बताये जाते हैं और राजानक इनकी उपाधि थी। इनका दूसरा नाम रुचक था। 'काव्यप्रकाशसंकेत' नामक ग्रन्थ में (प्रारम्भिक द्वितीय पद्य ) लेखक ने अपना नाम रुचक दिया है-काव्यप्रकाशसंकेतो रुचनेनेह लिख्यते । इसके अतिरिक्त अलंकारसर्वस्व के टीकाकार चक्रवर्ती ने भी रुचक नाम दिया हैऔर कुमारस्वामी ( रत्नापणटीका, प्रतापरुद्रीय ) अप्पय दीक्षित आदि ने भी रुचक नाम दिया है। मंखक के 'श्रीकण्ठचरित' महाकाव्य में [ दे० मंखक ] रुय्यक अभिधा दी गयी है । अतः इनका दोनों ही नाम प्रामाणिक है और दोनों ही नामधारी एक ही व्यक्ति थे। रुय्यक के पिता का नाम राजानक तिलक था जिन्होंने 'काव्यालंकारसारसंग्रह' पर उदटविवेक या विचार नामक टीका लिखी थी। ये रूपक के गुरु भी थे। ३० सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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