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________________ रसरत्नाकर] ( ४५९ ) [रसरत्नसमुच्चय पड़ता है। राजा को बिना उसे मनाये चैन नहीं पड़ता, क्योंकि उनका विश्वास है कि उनके प्रेम में किंचित् अन्तर आने पर भी वह जीवित नहीं रह सकती-'प्रिया मुन्च. त्यद्य स्फुटमसहना जीवितमसो प्रकृष्टस्य प्रेम्णः स्खलितमविषां हि भवति ।' वासवदत्ता राजा की रूपलिप्सा से परिचित है, अतः वह सागरिका को राजा के नेत्रों के सम्मुख नहीं होने देती, और असावधानी से वह राजा के सामने आने लगती है तो वह अपनी दासियों पर बिगड़ने लगती है-'अहो ? प्रमादः परिजनस्य ।' राजा के प्रति प्रगाढ़ स्नेह होने के कारण वह उनके ऊपर एकाधिकार चाहती है। वह उदयन को सागरिका से प्रेम करते देखना नहीं चाहती। उदयन के साथ सागरिका का चित्र चित्रित देखखर वह सिर की पीड़ा का बहाना बनाकर मान करती है, तथा सागरिका के अभिसार के रहस्य को जानकर उदयन के पाद-पतन पर भी नहीं मानती। उसमें सपत्नी की ईर्ष्या की भावना भरी हुई है। राजा के प्रति अनुराग होने के कारण वह अधिक देर तक रुष्ट नहीं रह पाती। राजा की दीनता और अपनी कठोरता के प्रति उसे पश्चात्ताप होता है और राजा को प्रसन्न करने के लिए कहती है-'मैंने राजा को उस स्थिति में छोड़कर अच्छा नहीं किया, चलूं, उनके पीछे जाकर उनके गले से लिपट कर उनको मना लूं।' वह सरल एवं दयालु हृदय की नारी है, पर उसमें कठोरता का भाव परिस्थितिजन्य है । वह सागरिका के अविनय के कारण उसे कारागार में बन्द कर अन्तःपुर के किसी निभृत स्थान पर रख देती है, पर अग्निकाण्ड के कारण उसके जीवन के अनर्थ की आशंका से उसको बचाने के लिए राजा से प्रार्थना करती है । सागरिका का रहस्योद्घाटन होने पर अपने प्राचीन भावों को भुलाकर उसे गले से लगा लेती है। सागरिका के प्रति अपने व्यवहार से उसे पश्चात्ताप होता है, पर वह उसे अपने वस्त्राभूषणों से अलंकृत कर राजा से पत्नी के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना करती हुई समस्त वातावरण को मधुर बना देती है। आधारग्रन्थ-१. रत्नावलो (हिन्दी अनुवाद सहित )-चौखम्बा प्रकाशन । २. संस्कृत नाटक-(हिन्दी अनुवाद ) श्री कीथ । ३. संस्कृत नाटक-समीक्षा-श्री इन्द्रपाल सिंह 'इन्द्र' । ४. संस्कृत काव्यकार-डॉ० हरिदत्त शास्त्री। रसरताकर-आयुर्वेद का ग्रन्थ । यह रसशास्त्र का विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें पांच खण्ड हैं-रसखण्ड, रसेन्द्रखण्ड, वादिखण्ड, रसायनखण्ड एवं मन्त्रखण्ड । इसके सभी खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं। इसके लेखक का नाम नित्यनाथ सिद्ध है। इनका समय १३ वीं शती है। ग्रन्थ में औषधियोग का भी वर्णन है पर रसयोग पर विशेष बल दिया गया है । इसमें यत्रतत्र तांत्रिक योग का भी वर्णन है। 'रसरत्नाकर' मुख्मतः शोधन, मारण आदि रसविद्या के विषयों से पूर्ण है और इसके आरम्भ में ज्वरादि की भी चिकित्सा वर्णित है। आधारग्रन्थ-आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार । रसरत्नसमुच्चय-आयुर्वेदशास्त्र का ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के रचयिता का नाम वाग्भट है तो सिंहगुप्त के पुत्र थे। लेखक का समय १३ वीं शताब्दी है। यह रसशास्त्र
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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