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________________ रत्नावली] ( ४५८ ) [रत्नावली यह उसकी भावुकता नहीं तो क्या है ? उसकी भाव-प्रवणता का दूसरा उदाहरण प्राणत्यागने के लिए उतारू हो जाना भी है। राजा को देखते ही उसकी काम-व्यथा इस प्रकार बढ़ जाती है कि वह यह कहने को भी उतारू हो गयी-'सर्वथा मम मन्दभागिन्या मरणमेवानेन दुनिमित्तेनोपस्थितम् । राजा के हाथ चित्र-फलक पड़ने पर जब विदूषक राजा से पूछता है कि यह उन्हें कैसी लग रही है, तब रत्नावली अपने सम्बन्ध में राजा की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक होती है। वह लता-कुन्ज में छिप कर उनका वार्तालाप सुनती है। यदि राजा ने हां कह दिया तो अच्छा, अन्यथा नहीं कहने पर वह अपना प्राण त्याग देगी । ( आत्मगत) किमेष भणिष्यतीति यत्सत्यं जीवितमरणयोरन्तराले वर्ते' । वह दुर्बल हृदय की नारी है। संकेत स्थान पर आकर जब वह राजा को नहीं पाती, तब जान जाती है कि उसकी अभिसार-चेष्टा का परिज्ञान रानी को हो गया है, अतः वह मृत्यु का ही वरण करना श्रेष्ठ समझती है-'वरमिदानी' स्वयमेवात्मानमुदबध्योपरता न पुनर्जातसंकेतवृत्तान्ततया देव्या परिभूता।' रत्नावली कला-प्रेमिका है और उसे चित्र-कला की विशेष पटुता प्राप्त है। वह उदयन के प्रति आसक्त होकर चित्र द्वारा ही अपना मनोरंजन करती है । उसकी चित्रकला की प्रशंसा सुसंगता भी करती है । उसमें वंशाभिमान एवं आत्मसम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। दासी के रूप में जीवन-यापन करते हुए अपनी अभिन्नहृदया सखी सुसंगता से अपने वंश का परिचय नहीं देती। इसमें वह अपने सदंश की अप्रतिष्ठा मानती है। परिस्थितिवश राजकुमारी होकर भी उसे दासी का घृणित कार्य करना पड़ता है, जिससे उसके मन में आत्मग्लानि का भाव आता है और वह जीवित रहना भी नहीं चाहती, पर राजा के प्रेम को प्राप्त कर उसे जीने की लालसा हो जाती है। उसमें आत्मसम्मान का भाव इस प्रकार भरा हुआ है, कि उसका वंशाभिमान समय-समय पर जागरूक हो जाता है और किसी प्रकार का अपना अपमान होने पर वह निलंज्ज जीवन व्यतीत करने से मरण को उपयुक्त मान लेती है। उदयन के प्रति उसका प्रेम वासनाजन्य न होकर, वास्तविक है तथा उसमें अन्धत्व का अभाव एवं मर्यादा की भी भावना है। वह उदयन के रूप की प्रशंसक है, पर सहसा उनकी ओर आकृष्ट नहीं होती। जब उसे यह ज्ञात हो जाता है कि यह वही उदयन है जिसके लिए उसके पिता ने उसको भेजा था, तो राजा के सौन्दर्य का आकर्षण प्रेम में परिणत हो जाता है। वह औचित्यपूर्ण प्रेम का समर्थन करती है'न कमलाकरं वर्जयित्वा राजहंस्यन्यत्राभिरमते ।' 'उसके हृदय में उदयन के प्रति प्रेम, वासवदत्ता से भय, सुसंगता के प्रति भगिनीवत स्नेह और अपने जीवन के प्रति ग्लानि और मोह एक साथ है।' ____ वासवदत्ता-वासवदत्ता उदयन को प्रधान महिषी है। वह अत्यन्त प्रीति-प्रवण एवं स्वभाव से मृदु है। राजा के प्रति उसके मन में सम्मान एवं प्रेम का भाव है। वह प्रेमिल प्रतिमा के रूप में चित्रित हुई है। वह राजा के प्रति इस प्रकार अनुरक्त है कि उसे अपनी जान की भी सुधि नहीं रहती। राजा के मन में भी उसके। ति हद विश्वास है। इसी कारण जब वह मान करती है तो. राजा उसके चरणों पर गिर
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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