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________________ योग-दर्शन ] ( ४४८ ) [योगरत्नाकर ईश्वर-योग-दर्शन के प्राचीन आचार्य ईश्वर को अधिक महत्व नहीं देते। स्वयं पतन्जलि ने ईश्वर का जितना अधिक व्यावहारिक महत्व माना है-उतना सैदान्तिक नहीं। चित्त की एकाग्रता के लिए ईश्वर के ध्यान का महत्त्व अवश्य है, पर परवर्ती लेखकों ने ईश्वर-सिद्धि पर अधिक बल देकर योग-दर्शन में उसके महत्त्व की स्थापना की। इसमें ईश्वर को सभी दोषों से परे तथा परमपुरुष माना गया है। वह नित्य, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् तथा परमात्मा है। जीव सभी प्रकार के क्लेशों को भोगता है तथा अविद्या, अहंकार, राग-द्वेष और वासना आदि से अपने को मुक्त नहीं कर पाता। भांति-भांति के कर्म करते हुए उसे सुख-दुःख भोगना पड़ता है। योगदर्शन में ईश्वर-सिद्धि के लिए निम्नांकित प्रमाण उपस्थित किये गए हैं- क. श्रुति एवं शास्त्र एक स्वर से ईश्वर की सत्ता स्वीकार करते हैं तथा उसके साक्षात्कार को ही एकमात्र जीवन का लक्ष्य मानते हैं। ख. न्यूनाधिक मात्रावाली वस्तुओं की दो कोटियां होती हैं-अल्पतम एवं उच्चतम कोटि । वस्तु का अल्पतम रूप परमाणु एवं उच्चतम रूप आकाश है। इसी प्रकार ज्ञान तथा शक्ति की भी विभिन्न सीमायें दिखाई पड़ती हैं । अतः उनकी भी एक उच्चतम सीमा होनी चाहिए। यह अधिकतम सीमा ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं है। ईश्वर के रूप में सर्वाधिक ज्ञान-सम्पन्न पुरुष की आवश्यकता है मीर उसके समान अन्य कोई नहीं है। यदि और कोई होता तो दोनों में संघर्ष हो जाता जिसके कारण संसार में अव्यवस्था हो जाती। ग. ईश्वर की सत्ता की सिद्धि प्रकृति और पुरुष के संयोजक तथा वियोजक तत्व के रूप में होती है । प्रकृति तथा पुरुष के संयोग से सृष्टि होती है और उनके विच्छेद से प्रलय होता है। दोनों का संयोग तथा वियोग स्वभावतः न होकर किसी सर्वशक्तिमान् पुरुष के ही द्वारा होता है, और वह ईश्वर के अतिरिक्त दूसरा नहीं है। वही दोनों का सम्बन्ध घटित कर सृष्टि और प्रलय की स्थिति उत्पन्न करता है । अतः उसका ( ईश्वर का ) अस्तित्व निर्विवाद है। योग-दर्शन का सांस्य के साथ अनेक दृष्टियों से साम्य है, पर जहां तक ईश्वरसिद्धि का प्रश्न है, वह सांख्य की भांति निरीश्वरवादी न होकर ईश्वरवादी है एवं साधना और सिद्धान्त दोनों ही दृष्टियों से ईश्वर की उपयोगिता सिद्ध करता है। आधारग्रन्थ-१. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन फिलॉसफी भाग २-डॉ० दासगुप्त । २. भारतीय दर्शन-चटर्जी और बत्त ( हिन्दी अनुवाद)। ३. भारतीय-दर्शन-६० बलदेव उपाध्याय । ४. योग-दर्शन-डॉ० सम्पूर्णानन्द । ५. योगसूत्रम्-(हिन्दी अनुवाद) पं० श्रीराम शर्मा । ६. योगभाष्य (हिन्दी अनुवाद) श्री हरिहरानन्द । ७. योगसूत्र (हिन्दी अनुवाद)-गीता प्रेस, गोरखपुर । ८. वैदिक योगसूत्र-पं० हरिशंकर जोशी। ९. अध्यात्म योग और चित्तविकलन-श्री वेंकट शर्मा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् पटना)। योगरत्नाकर-आयुर्वेदशास्त्र का ग्रन्थ । यह अन्य किसी अज्ञात लेखक की रचना है जो १७४६ ई. के आसपास लिखा गया है। इसका एक प्राचीन हस्तलेख १६६८ शकाग्द का प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ का प्रभार महाराष्ट्र में अधिक है। इसमें
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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