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________________ यामुनाचार्य] ( ४४३) [यूरोपीय विद्वान् और संस्कृत परिषद्-गठन, गर्भाधान से विवाह पर्यन्त सभी संस्कार, उपनयनविधि, ब्रह्मचारी के कर्तव्य तथा वर्जित पदार्थ एवं कर्म, विवाह एवं विवाहयोग्य कन्या की पात्रता, विवाह के आठ प्रकार, अन्तर्जातीय विवाह, चारो वर्णों के अधिकार और कत्र्तव्य, स्नातक कत्र्तव्य, वैदिक यज्ञ, भक्ष्याभक्ष्य के नियम तथा मांस-प्रयोग, दान पाने के पात्र, बाद तथा उसका उचित समय, श्राद्ध-विधि, श्राद्ध-प्रकार, राजधर्म, राजा के गुण, मन्त्री, पुरोहित, न्यायशासन आदि । द्वितीय काण्ड-न्यायभवन के सदस्य, न्यायाधीश, कार्य-विधि, अभियोग, उत्तर, जमानत लेना, न्यायालय के प्रकार, बलप्रयोग, व्याज दर, संयुक्त परिवार के ऋण, शपथग्रहण, मिथ्यासाक्षी पर दण्ड, लेख-प्रमाण, बंटवारा तथा उसका समय, विभाजन में स्त्री का भाग, पिता की मृत्यु के बाद विभाजन, विभाजन के अयोग्य सम्पत्ति, पिता-पुत्र का संयुक्त स्वामित्व, बारह प्रकार के पुत्र, शूद्र और बनारस पुत्र, पुत्रहीन पिता के लिए उत्तराधिकार, स्त्रीधन पर पति का अधिकार, जुआ एवं पुरस्कार-युद्ध, अपशब्द, मान-हानि, साझा, चोरी, व्यभिचार । तृतीय काण्डमृत व्यक्तियों का जल-तपंण, जन्म-मरण पर तत्क्षण पवित्रीकरण के नियम, (समय, मग्निक्रिया संस्कार, वानप्रस्थ तथा यति) के नियम, भ्रूण के कतिपय स्तर, सत्व, रज एवं तम के आधार पर तीन प्रकार के कार्य । डॉ० पा० वा. काणे के अनुसार इसका समय ईसापूर्व प्रथम शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी के बाद कहीं भी हो सकता है। आधारग्रन्थ-१. याज्ञवल्क्यस्मृति (हिन्दी अनुवाद सहित ) अनुवादक ० उमेशचन्द्र पाण्डेय ( चोखम्बा प्रकाशन ) । २. धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-१ ( हिन्दी अनुवाद) डॉ० पा० वा. काणे । ___ यामुनाचार्य-विशिष्टाद्वैतवाद के प्रसिद्ध आचार्य। ये नाथमुनि के पौत्र हैं। इनका समय दशम शताब्दी का अन्तिम चरण है। ये श्रीरंगम् की आचार्य पीठ पर ९७३ ई० में अधिष्ठित हुए थे। इन्होंने काव्य एवं दर्शन दोनों ही प्रकार के ग्रन्थों की रचना की है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं-गीतार्थसंग्रह, श्री चतुःश्लोकी ( इसमें लक्ष्मी जी की स्तुति है ) सिद्वितंत्र ( इसमें आत्मसिद्धि, ईश्वरसिदि, माया-खण्डन एवं आत्मविषय-सम्बन्ध प्रतिपादक संवित् सिद्धि का वर्णन है ), महापुरुषनिर्णय ( इसमें विष्णु का श्रेष्ठत्व प्रतिपादित किया गया है ) आगमप्रामाण्य ( यह पाचरात्र की प्रामाणिकता का विवेचन करनेवाला महनीय ग्रन्थ है ), बालबन्दारस्तोत्र ( इसमें ७० श्लोकों में आत्मसमर्पण के सिद्धान्त का सुन्दर वर्णन है)। आधारग्रन्थ-भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । यूरोपीय विद्वान् और संस्कृत-विदेशों में संस्कृत अध्ययन के प्रति निष्ठा बहुत प्राचीन समय से रही है। पंचतन्त्र के अनुवाद के माध्यम से सातवीं शताब्दी से ही यूरोपीय विद्वान् संस्कृत से परिचित हो चुके थे। तथा धर्म प्रचारार्थ कितने ईसाई मिशनरी भारत आकर संस्कृत धर्म-पन्यों के अध्ययन में प्रवृत्त हुए थे। अब्राहम रोजर नामक एक ईसाई पादरी ने भर्तृहरि के श्लोकों का पुर्तगाली भाषा में अनुवाद किया
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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