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________________ यमस्मृति ] ( ४४२ ) [ याशल्क्य स्मृति आधार ग्रन्थ – चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी । यमस्मृति - इस स्मृति के रचयिता यम नामक धर्मशास्त्री हैं । याज्ञवल्क्य के अनुसार यम धर्मवक्ता हैं । 'वसिष्ठध मंसूत्र' में यम के उद्धरण प्रस्तुत किये गए हैं और यहां के चार श्लोकों में तीन श्लोक 'मनुस्मृति' में भी प्राप्त हो जाते हैं । जीवानन्दसंग्रह में 'यमस्मृति' के ७८ श्लोक तथा आनन्दाश्रम संग्रह में ९९ श्लोक प्राप्त होते हैं । इन श्लोकों में प्रायश्चित्त शुद्धि, श्राद्ध एवं पवित्रीकरण विषयक मत प्रस्तुत हैं । इनके अतिरिक्त विश्वरूप, विज्ञानेश्वर, अपराकं एवं 'स्मृतिचन्द्रिका' तथा अन्य परवर्ती ग्रन्थों में 'यमस्मृति' के ३०० के लगभग श्लोक प्राप्त होते हैं । 'महाभारत' ( अनुशासनपर्व १०४, ७२ - ७४ ) में भी यम की गाथाएं हैं । 'मिताक्षरा', हरदत्त तथा अपराकं में प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में बृहद यम का उल्लेख करते हैं और हरदत्त तथा अपराकं के ग्रंथों में लघु यम तथा वेदाचार्यकृत 'स्मृतिरत्नाकर' में स्वल्प यम का नाम आया है। डॉ० काणे के अनुसार सभी ग्रन्थ एक ही ग्रंथ के भिन्न-भिन्न नाम ज्ञात होते हैं । यम ने मनुष्यों के लिए कुछ पक्षियों के मांस भक्षण की व्यवस्था की है तथा स्त्रियों के लिए संन्यास का निषेध किया है । आधारग्रन्थ--- धर्मशास्त्र का इतिहास- डॉ० पी० वी० काणे भाग १ ( हिन्दी अनुवाद ) । याज्ञवल्क्यस्मृति -- इसके रचयिता ऋषि याज्ञवल्क्य हैं। उन्होंने राजा जनक को ज्ञानोपदेश दिया था । 'बृहदारण्यक उपनिषद्' में वे एक बड़े दार्शनिक के रूप में चित्रित हैं । ' याज्ञवल्क्यस्मृति' का 'शुक्लयजुर्वेद' के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा उनका नाम 'शुक्लयजुर्वेद' के उद्घोषक के रूप में लिया जाता है । पाणिनिसूत्र के वासिक में कात्यायन ने याज्ञवल्क्य को ब्राह्मणों का रचयिता कहा है । 'याज्ञवल्क्य - स्मृति' में भी ( ३ | ११० ) याज्ञवल्क्य को आरण्यकों का लेखक कहा गया है। पर, विद्वानों ने आरण्यक एवं स्मृति का लेखक एक व्यक्ति को नहीं माना, क्योंकि दोनों की भाषा में बहुत अन्तर दिखाई पड़ता है। विज्ञानेश्वर रचित मिताक्षरा के अनुसार याज्ञवल्क्य के किसी शिष्य ने ही धर्मशास्त्र को संक्षिप्त किया था । ' याज्ञवल्क्य स्मृति' का प्रकाशन तीन स्थानों से हुआ है- निर्णयसागर प्रेस, त्रिवेन्द्रम् संस्करण तथा आनन्दाश्रम संस्करण । इनमें इलोकों की संख्या क्रमशः १०१०, १००३ तथा १००६ है । इसके प्रथम व्याख्याता विश्वरूप हैं जिनका समय ५००-८२५ ई० है । इस के द्वितीय आख्याता ( विज्ञानेश्वर ) 'मिताक्षरा' के लेखक हैं, जो विश्वरूप के २५० वर्ष पश्चात् हुए थे । याज्ञवल्क्यस्मृति' 'मनुस्मृति' की अपेक्षा अधिक सुसंगठित है । इसमें विषयों की पुनरुक्ति नहीं है, किन्तु यह 'मनुस्मृति' से संक्षिप्त है। दोनों ही स्मृतियों के विषय एक हैं तथा श्लोकों में भी कहीं-कहीं शब्दसाम्ब है ऐसा लगता है कि याज्ञवल्क्य ने इसकी रचना 'मनुस्मृति' के आधार पर की है। इसमें तीन काण्ड हैं जिनकी विषय-सूची इस प्रकार है- प्रथम काण्ड - चीदह विद्याओं तथा धर्म के बीस विश्लेषकों का वर्णन, धर्मोपादान,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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