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________________ वाणासुरविजय चम्पू ] ( ३०३ ) [ बाणासुरविजय चम्पू नात्मक शैली के द्वारा जो हमें कुछ दिया है वह पर्याप्त है और उसके लिए हमें उनका कृतज्ञ रहना चाहिए ।" डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल - हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन ( प्रथम संस्करण ) पृ० २ । 1 बाण की गद्यशैली तीन प्रकार की है— दीर्घसमासवती अल्पसमासवती एवं समासरहित । इन्हें क्रमशः उत्कलिका, चूर्णक एवं आविद्ध कहा गया है। बड़े-बड़े वर्णनों में कवि ने उत्कलिका का प्रयोग किया है । बाण किसी विषय का वर्णन करते समय विभिन्न अलंकारों का सहारा लेकर उसे सौन्दर्यपूर्ण बनाते हैं । इन्होंने विशेष रूप से उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विरोधा एवं परिसंख्या अलंकार का प्रयोग किया है । परिसंख्या अलंकार तो इनका अपना अलंकार है । पाश्चात्य पण्डित बेबर ने बाण की शैली की आलोचना करते हुए इसे उस सघन भारतीय अरण्याणी की तरह कहा था जिसमें पद पद पर अप्रचलित क्लिष्ट शब्द, श्लिष्टपद-योजना एवं समासान्त पदों के लम्बे-लम्बे वाक्य विचित्र एवं भयंकर जन्तु का रूप धारण कर भय उत्पन्न कर देते हैं । पर सर्वत्र ऐसी बात नहीं है । बाण ने कहीं भी औचित्य का त्याग नहीं किया है । विषय एवं स्थिति के अनुसार इन्होंने छोटे-छोटे वाक्यों एवं संवादों का भी प्रयोग किया है । इनके गद्य में काव्य की गति विद्यमान है तथा प्रकृति के सूक्ष्म पर्यवेक्षण की शक्ति भी है । हिमालय, अच्छोद सरोवर, महाश्वेता का निवास वर्णन एवं कई स्थानों पर संध्या-वर्णन में ( हर्षचरित एवं कादम्बरी ) इनकी चित्रणकला एवं प्रकृतिप्रेम के दर्शन होते हैं । बाण अपनी वर्णन-चातुरी के लिए प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध रहे हैं और आचार्यों ने इनके इस गुण पर मुग्ध होकर - 'वाणोच्छिष्टं जगत् सर्वम्'तक कह दिया है । इनके आलोचकों ने शैली की क्लिष्टता, आलंकारिक प्रेम, दीर्घवाक्यता समूहीकृत विशेषणों से समन्वित वाक्यों, श्लिष्ट प्रयोग एवं असाधारण तथा अप्रचलित पदावली के प्रयोग की निन्दा की है पर तत्कालीन साहित्य रूप एवं लेखक की मान्यता को देखते हुए इन दोषों पर विचार करना बाण के साथ अन्याय करना है। बाण अपनी रसप्रवणता कलात्मक सौन्दयं, वक्रोक्तिमय अभिव्यंजना प्रणाली तथा सानुप्रास समासान्त पदावली के प्रयोग के लिए अमर रहेंगे । आधारग्रन्थ - १. संस्कृत साहित्य का इतिहास – कीथ ( हिन्दी ) । २. संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय । ३ संस्कृत सुकवि- समीक्षा - पं० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत कवि दर्शन - डॉ० भोला शंकर व्यास । ५. हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन — डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल । ६, कादम्बरी एक सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल । बाणासुरविजय चम्पू -- इस चम्पू के प्रणेता वेंकट या वेंकटायं कवि हैं । इनका निवासस्थान सुरसिद्धगिरि नगर में था और ये श्रीनिवासाचार्य के पुत्र थे । इस चम्पू में छह उल्लास हैं और 'श्रीमद्भागवत' के आधार पर उषा-अनिरुद्ध की कथा वर्णित है । इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण या अट्ठारहवीं शताब्दी का प्रथम चरण है । यह रचना अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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