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________________ पुराण ] ( २९० ) [ पुराण ब्रह्मा का उदयप जो कमल प्रकट हुआ नवीन सृष्टि की। पद्म में जो जिज्ञाषा होती है उसका उत्तर पद्मपुराण में प्राप्त से हुआ था । विष्णुपुराण में कहा गया है कि विष्णु की उससे ही ब्रह्मा का जन्म हुआ और उन्होंने घोर तपस्या करके सम्भव ब्रह्मा के वर्णन के कारण विष्णुपुराण को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ । चतुर्थं स्थान वायुपुराण का है जिसमें शेषशायी भगवान् एवं शेष शय्या का निरूपण है । शेषशायी भगवान् का निवास क्षीरसागर है जिसका रहस्य श्रीमद्भागवत में बतलाबा गया है । भागवत के अनंन्तर नारदपुराण का नाम आता है। चूंकि नारदजी संतत भगवान् का मधुर स्वर में गुणानुवाद करते हैं, अत: भागवत के बाद नारदपुराण को स्थान दिया गया । प्रकृतिरूपिणी देवी को ही इस सृष्टि चक्र का मूल माना गया है जिसका विवरण मार्कण्डेयपुराण में है, अतः सप्तम स्थान इसे ही प्राप्त है । घट के भीतर प्राण की भाँति ब्रह्माण्ड के भीतर अग्नि क्रियाशील रहती है; इसका प्रतिपादन अग्निपुराण करता है, अतः इसे आठवां स्थान प्राप्त हुआ अग्नि का तत्त्व सूर्य पर आधृत है और सूर्य का सर्वातिशायी महत्त्व भविष्यपुराण में वर्णित है, अतः इसे नवाँ स्थान दिया गया है। पुराणों के अनुसार जगत् की उत्पत्ति ब्रह्म से होती है और संसार ब्रह्म का विवत्तं रूप मान कर इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है । ब्रह्म के नानावतार होते हैं और वह विष्णु और शिव के रूप में प्रकट होता है । लिंग एवं स्कन्दपुराण का सम्बन्ध शिव के साथ वाराह, वामन, कूमं एवं मत्स्य का सम्बन्ध विष्णु के साथ है। गरुड़पुराण में मरणान्तर स्थिति का वर्णन है तथा अन्तिम पुराण ब्रह्माण्ड जिसमें दिखलाया गया है कि जीव अपने कर्म की गति के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते हुए सुख-दुःख का अनुभव करता है। इस प्रकार सभी पुराणों के क्रम का निर्वाह सृष्टिविद्या के अनुसार हो जाता है । । तमिल ग्रन्थों में पुराणों के पाँच वर्ग किये गए हैं - १. ब्रह्मा ब्रह्म तथा पद्मपुराण २. सूर्य - ब्रह्मवैवर्तपुराण ३. अग्नि- अग्निपुराण ४. शिव - शिव, स्कन्द, लिङ्ग, कूर्म, वामन, वराह, भविष्य, मत्स्य, मार्कण्डेय तथा ब्रह्माण्ड । ५. विष्णु - नारद, .. श्रीमद्भागवत, गरुड, विष्णु । होता है । नाभि से उपपुराण - पुराणों की भाँति उपपुराणों का भी संस्कृत वाङ्मय में महनीय स्थान है । कतिपय विद्वानों के अनुसार उपपुराणों की भी संख्या १८ ही है, किन्तु इस विषय में विद्वानों में मत भिन्न्य है। ऐसा कहा जाता है कि पुराणों के बाद ही उपपुराणों की रचना हुई है, पर प्राचीनता अथवा मौलिकता के विचार से उपपुराणों का भी महत्त्व पुराणों के ही समान है । उपपुराणों में स्थानीय संप्रदाय तथा पृथक्-पृथक् सम्प्रदायों की धार्मिक आवश्यकता पर अधिक बल दिया गया है । उपपुराणों की सूची इस प्रकार है— सनस्कुमार उपपुराण, नरसिंह, नान्दी, शिवधर्म, दुर्वासा, नारदीय, कपिल, मानव, उषनंसू ब्रह्माण्ड, वरुण, कालिका, वसिष्ठ, लिङ्ग, महेश्वर, साम्ब, सौर, पराशर, मारीच, भागंव । कुछ अन्य पुराणों के भी नाम मिलते हैं- आदित्य आदि, मुदगल, कल्कि, देवीभागवत्, बृहद्धर्म, परानन्द, पशुपति हरिवंश तथा विष्णुधर्मोत्तर । जैनपुराण - जैनधर्म में भी वेद, उपनिषद एवं पुराणों की रचना हुई है और
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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