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अभिज्ञान शाकुन्तल]
( १८ )
[बभिमान शाकुन्तल
शकुन्तला को पत्नी रूप में ग्रहण करने से राजा को क्यों नहीं मना किया ? अतः कवि इस सन्देह का निवारण द्वितीय अङ्क में ही कर देता है। तृतीय अङ्क में विरह-पीड़िता शकुन्तला के पूर्वराग का पता राजा को लग जाता है। लतागृह में पड़ी हुई शकुन्तला विरह-विदग्ध होकर राजा के पास पत्र लिखने का उपक्रम करती है और कमल के पत्ते पर पत्र लिख दिया जाता है। तत्क्षण राजा प्रकट हो जाता है और दोनों ही अपनी अभीष्ट-सिद्धि के लिए गान्धर्व-विधि से प्रणयसूत्र में आवट हो जाते हैं। दोनों की प्रेम-क्रीड़ाएं चलती हैं, तभी गौतमी रात्रि के आगमन की सूचना देती है और शकुन्तला चली जाती है। गौतमी शकुन्तला का समाचार जानने के लिए आती है और दुष्यन्त छिप जाता है।
चतुषं अंक के विष्कम्भक द्वारा यह सूचना प्राप्त होती है कि दुष्यन्त अपनी राजधानी में चला गया। उसने शकुन्तला को अपनी नामांकित अंगूठी दे दी थी कि मेरे नाम के जितने अक्षर हैं उतने ही दिनों में मैं तुम्हें राजधानी में बुला लूंगा। शकुन्तला राजा के ध्यान में मग्न है तभी दुर्वासा का आगमन होता है और वह उनका स्वागत नहीं कर पाती। दुर्वासा आतिथ्य-सत्कार न होने के कारण उसे शाप दे देते हैं कि तू जिसके ध्यान में मग्न है वह तुझे स्मरण नहीं करेगा। प्रियंवदा ( शकुन्तला की सखी ) दुर्वासा का अनुनय-विनय करके उन्हें प्रसन्न करती है और वे कहते हैं कि जब तेरी सखी कोई उसे अभिज्ञान दिखा देगी तो राजा पहचान जायगा। इस बीच कन्य तीर्थयात्रा से लौटकर आश्रम में आते हैं और उन्हें शकुन्तला के विवाह की जानकारी होती है । वे शकुन्तला को दुष्यन्त के पास भेजने की तैयारी करते हैं। शकुन्तला जब विदा होती है तो आश्रम में करुण दृश्य उपस्थित हो जाता है और वनवासो कण्व द्रवीभूत हो जाते हैं।
पन्चम सर्ग में शकुन्तला को साथ लेकर गौतमी, शाङ्गरव एवं शारदत दुष्यन्त की राजधानी में पहुंचते हैं । राजा शापवश शकुन्तला को पहचान नहीं पाता। जब शकुन्तला उसकी दी हुई अंगूठी दिखाना चाहती है तभी वह मिल नहीं पाती। (जाते समय प्रियंवदा ने कहा था कि यदि तुम्हारा पति तुम्हें न पहचाने तब तुम उसे अपनी अंगूठी दिखा देना और वह तुम्हें पहचान जायगा)। गौतमी कहती है कि वह शुक्रावतार तीर्थ में अवश्य ही गिर गई होगी। राजा शकुन्तला का तिरस्कार करता है और शकुन्तला भी उसे कटुवचन कहती है। राजा द्वारा तिरस्कृत तथा आसन्नप्रसवा शकुन्तला को जब शाङ्गरव आदि आश्रम में नहीं ले जाते तब राजा का पुरोहित उसे प्रसवपर्यन्त अपने यहाँ, पुत्री के समान, रखने को तैयार हो जाता है । पर, वह पुरोहित के यहाँ पहुँचती नहीं कि आकाश से कोई अदृश्य ज्योति उसे उठाकर तिरोहित हो जाती है। __ षष्ठ अख के प्रवेशक में राजा की अंगूठी बेचते हुए एक पुरुष पकड़ा जाता है और वह रक्षकों के द्वारा राजा के समक्ष लाया जाता है। अंगूठी देखते ही शाप का प्रभाव दूर हो जाता है और राजा पूर्व घटनाओं का स्मरण कर अपने निष्ठुर व्यवहार से