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________________ पतन्जलि ] ( २६६ ) [ पतन्जलि पतन्जलि से भिन्न सिद्ध किया । [ दे० जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल, जिल्द ५२, पृ० २४१ तथा इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, जिल्द १४, पृ० ४० ] | पं० युधिष्ठिर मीमांसक भी गोनर्दीयको पतन्जलि से अभिन्न नहीं मानते । [दे० संस्कृतव्याकरण शास्त्र का इतिहास भाग १ पृ० ३०३ ] । 'महाभाष्य' में गोणिकापुत्र के मत का उल्लेख हैउभयथा गोणिकापुत्र इति । महाभाष्य १|१|५| नागेश मत से गोणिकापुत्र पतन्जलि से अभिन्न हैं । वात्स्यायन कामसूत्र में भी गोणिकापुत्र का उल्लेख है गणिका पुत्र भाष्यकार इत्याहुः । गोणिकापुत्रः पारदारिकम् । १।१।१६, कामसूत्र विद्वानों ने पतन्जलि को गोणिकापुत्र से भिन्न माना है । कैयट 'महाभाष्य' की व्याख्या में पतन्जलि के लिए 'नागनाथ' नामान्तर का प्रयोग करते हैं तथा चक्रपाणि ने 'चरक' (वैद्यक-ग्रन्थ) की टीका में 'अहिपति' का प्रयोग किया है । 'तत्रजात इत्यत्र तु सूत्रेऽस्य लक्षणत्वमाश्रित्यैतेषां सिद्धिमभिधास्यति नागनाथः । महाभाष्य ४।२।९३ की व्याख्या । वल्लभसेन कृत 'शिशुपालवध' की टीका में पतजलि शेषाहि के नाम से अभिहित किये गए हैं । पदं शेषाहिविरचितं भाष्यम् । शिशुपालवध २।११२ स्कन्दस्वामी की निरुक्तटीका में (१1३) 'महाभाष्य' का एक पाठ पदकार के नाम से उद्धृत किया गया है । पदकार आह—-उपसर्गश्च पुनरेवमात्मका: क्रियामाहुः । निरुक्त टीका १1३ संस्कृत वाङ्मय में पतन्जलि के नाम पर तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं- सामवेदीय निदानसूत्र' 'योगसूत्र' तथा 'महाभाष्य' । आयुर्वेद की 'चरकसंहिता' को भी पतन्जलि द्वारा परिष्कृत करने का उल्लेख है तथा 'सांख्यकारिका' को 'युक्तदीपिका' टीका में पतञ्जलि के सांख्यविषयक मत के उद्धरण दिये गए हैं। मैक्समूलर ने षड्गुरुशिष्य के पाठ की उद्धृत करते हुए योगदर्शन एवं निदानसूत्र का रचयिता एक ही व्यक्ति को माना है । भर्तृहरि ने भी 'वाक्यपदीय' में पतन्जलि को योगसूत्र, व्याकरणमहाभाष्य एवं चरक वात्तिकों का कर्ता स्वीकार किया है । वैयाकरणों की परम्परा में भी एक श्लोक प्रसिद्ध है जिसमें पंतजलि का स्मरण योगकर्ता, महावैयाकरण एवं वैद्य के रूप में किया गया है । योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन । asur किरत् तं प्रवरं मुनीनां पतन्जलिं प्राब्जलिरानतोऽस्मि ॥ प्रो० चक्रवर्ती तथा लिविख ने योगकर्ता पतञ्जलि एवं वैयाकरण पतञ्जलि को अभिन्न माना है; किन्तु चरक के रचयिता पतन्जलि ईसा की दूसरी शती में उत्पन्न हुए थे और योगसूत्रकर्त्ता पतन्जलि का आविर्भाव ३ री या चौथी शताब्दी में हुआ था । प्रो० रेनो ने दोनों को भिन्न माना है। इनके अनुसार प्रत्याहार, उपसर्ग, प्रत्यय तथा विकिरण का अर्थं योग में व्याकरण से भिन्न है तथा च, वा आदि का भी उसमें प्रयोग नहीं है । न तो योगसूत्र व्याकरण के नियमों को मानता है । 'लघुशब्देन्दुशेखर' के भैरवमिश्र कृत टीका में 'महाभाष्य' के कर्त्ता, योगसूत्र के प्रणेता तथा 'चरकसंहिता' के रच
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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