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________________ पण्डितराज जगन्नाथ ] ( २६५ ) [ पतञ्जलि में ही बैठा जब शाहजहाँ गद्दी पर बैठा था । कुछ दिन बाद शाहजहाँ ने पण्डितराज को पुनः अपने यहाँ बुला लिया । परन्तु हमारे विचार से जगतसिंह के यहाँ से आसफ खाँ ने इन्हें अपने पास बुलाया और ये आसफ खाँ के ही आश्रय में रहे तथा शाहजहाँ ने आसफ खाँ की प्रेरणा से इन्हें अपने यहाँ बुलाया और पण्डितराज की उपाधि देकर सम्मानित किया ।" "शाहजहाँ की मृत्यु के बाद ये एक-आध वर्ष के लिए प्राणनाथ के पास गए होंगे और फिर वहाँ से आकर अपनी वृद्धावस्था मथुरा में बितायी होगी । इस तरह पण्डितराज का रचनाकाल १७ वीं शताब्दी का पूर्वाद्धं तथा कुछ उत्तरार्द्ध का प्रारम्भ स्वीकार किया जा सकता है ।" [ भामिनीविलास ( हिन्दी अनुवाद ) की भूमिका पृ० १३ अनुवादक पं० राधेश्याम मिश्र ] पण्डितराज की कृतियां - १ रसगंगाधर - इसके विवरण के लिए दे० रसगंगाधर । २ चित्रमीमांसा खण्डन – दे० आचार्य पण्डितराज जगन्नाथ अप्पयदीक्षित कृत 'चित्रमीमांसा' नामक ग्रन्थ का इसमें खण्डन है । ३ गंगालहरी - इसे 'पीयूषलहरी' भी कहते हैं। इसमें ५२ श्लोकों में कवि ने गंगाजी की स्तुति की है । ५३ वीं पद्य फलस्तुति है । ४ अमृतलहरी - इसमें १० पद्यों ( शार्दूलविक्रीडित ) में यमुना जी की स्तुति है । ११ वें पद्य में कवि ने अपना परिचय दिया है । ५ करुणालहरी - इसमें ५५ पद्य हैं तथा विष्णु की स्तुति है । ६ लक्ष्मीलहरी — इसमें ४१ शिखरिणी वृत्त में लक्ष्मीजी की स्तुति है । ७ सुधालहरी - इसमें ३० स्रग्धरा छन्द में सूर्य की स्तुति की गयी है । ८ आसफविलास - इसमें शाहजहाँ के मामा नबाब आसफ खाँ का चरित्र आख्यायिका माध्यम से प्रस्तुत किया गया है । यह ग्रन्थ अपूर्ण है । ९ प्राणाभरण - इसमें कामरूपनरेश प्राणनारायण को प्रशस्ति है । १० जगदाभरण - इसमें उदयपुर के राजा जगतसिंह का वर्णन है । प्राणाभरण से इसमें अधिक साम्य है । ११ भामिनीविलासइसमें पण्डितराज के फुटकल पद्य संगृहीत हैं । ग्रन्थ में चार विलास हैं - प्रास्ताविकविलास (१२९ पद्य), शृंगार - विलास (१८३ पद्य), करुण- विलास ( १९ पद्य) तथा शान्तविलास (४६ पद्य ) । इनका व्याकरणसम्बन्धी ग्रन्थ हैं- मनोरमाकुचमर्दन । पतञ्जलि - ये 'महाभाष्य' नामक महान् व्याकरण ग्रन्थ के रचयिता हैं । विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में पतन्जलि के अनेक नामों का उल्लेख मिलता है - गोनर्दीय, गोणिकापुत्र, नागनाथ, अहिपति, फणिभृत्, शेषराज, शेषाहि, चूर्णिकार तथा पदकार । 'यादवप्रकाश' आदि कोशकारों ने गोनर्दीय नाम का प्रयोग किया है गोनर्दीयः पतन्जलि: । पृ० ९६ श्लोक १५७ कैयट और राजशेखर ने भी इन्हें गोनर्दीय के नामान्तर के रूप में स्वीकार किया है । भाष्यकारस्त्वाह-प्रदीप १ । १ । २१, गोनर्दीयपदं व्याचष्टे भाष्यकार इति । उद्योत 1 १:१।२१ यस्तु प्रयुङ्क्ते तत्प्रमाणमेवेतिगोनर्दीयः । काव्यमीमांसा पृ० ६ परन्तु डॉ० कोलहानं तथा श्री राजेन्द्रलाल मित्र ने अपनी युक्तियों से गोनदय को
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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