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________________ देवी भागवत] ( २२२ ) [देवी भागवत नामक महाकाव्य की रचना की है जिसमें हरविजयसूरि का चरित वर्णित है.। सूरिजी ने अकबर को जैनधर्म का उपदेश दिया था। इस महाकाव्य में १७ सर्ग हैं। देवी भागवत–देवी या शक्ति के नाम पर प्रचलित पुराण । सम्प्रति 'भागवत' संज्ञक दो पुराणों की स्थिति विद्यमान है-श्रीमद्भागवत' एवं 'देवी भागवत' तथा दोनों को ही महापुराण कहा गया है। 'श्रीमद्भागवत' में भगवान् विष्णु का महत्व प्रतिपादित किया है और 'देवी भागवत' में शक्ति की महिमा का बखान है। इस समय प्राप्त दोनों ही भागवतों में १८ सहस्र श्लोक एवं १२ स्कन्ध हैं। 'पद्म', 'विष्णु', 'नारद', 'ब्रह्मवैवर्त', 'मार्कण्डेय', 'वाराह', 'मत्स्य' तथा 'कूर्म महापुराणों में पौराणिक क्रम से भागवत को पंचम स्थान प्राप्त है किन्तु 'शिवपुराण' के 'रेवा माहात्म्य' में 'श्रीमद्भागवत' नवम् स्थान पर अधिष्ठित कराया गया है। अधिकांशतः पुराणों में 'भागवत' को ही महापुराण की संज्ञा दी गयी है किन्तु यह तथ्य अस्पष्ट रह गया है कि दोनों में से किसे महापुराण माना जाय 'पद्मपुराण' में सात्विक पुराणों के अन्तर्गत 'विष्णु', 'नारद', 'गरुड़', 'पम', एवं वाराह' के साथ 'श्रीमद्भागवत' का भी उल्लेख है। वैष्णवीयं नारदीयं च तथा भागवतं शुभम् । गरुडं च तथा पद्मं वाराहं शुभदर्शने ॥ सात्त्विकानि पुराणानि विज्ञेयानि शुभानि वै। 'गरुडपुराण' एवं 'कूर्मपुराण' में भी यह मत व्यक्त किया गया है कि जिसमें हरि या विष्णु का चरित वर्णित है, उसे सात्विक पुराण कहते हैं । अन्यानि विष्णोः प्रतिपादकानि, सर्वाणि तानि सात्त्विकानीति चाहुः । गरुडपुराण सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः॥ कूर्मपुराण इस दृष्टि से देवी भागवत का स्थान सात्त्विक पुराणों में नहीं आता। वायुपुराण, मत्स्यपुराण, कालिका उपपुराण एवं आदित्य उपपुराण देवी भागवत को महापुराण मानते हैं. जबकि पप, विष्णुधर्मोत्तर, गरुड, कूर्म तथा मधुसूदन सरस्वती के सर्वार्थ संग्रह एवं नागोजीभट्ट के धर्मशास्त्र में इसे उपपुराण कहा गया है। भगवत्याश्च दुर्गायाश्चरितं यत्र विद्यते । तत्तु भागवतं प्रोक्तं न तु देवीपुराणकम् ॥ ___ वायुपुराण, उत्तरखण्ड, मध्यमेश्वरमाहात्म्य ५ पुराणों में स्थान-स्थान पर 'भागवत' के वैशिष्ट्य पर विचार करते हुए तीन लक्षण निर्दिष्ट किये गए हैं जो 'श्रीमद्भागवत' में प्राप्त हो जाते हैं । वे हैं-गायत्री से समारम्भ, वृत्रवध का प्रसंग तथा हयग्रीव ब्रह्मविद्या का विवरण। थत्राधिकृत्य गायत्रीं वर्ण्यते धर्मविस्तरः। वृत्रासुर-वधोपेते तदभागवतमिष्यते ॥ मत्स्य, ५३।२०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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