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________________ देवकुमारिका] ( २२१ ) [देवविमल गणि एवं इन्द्राग्नी। द्वितीय खण्ड में छन्दों के देवता और वर्णों का तथा तृतीय खण में छन्दों की निरुक्तियों का वर्णन है। इनकी अनेक निरुक्तियों को यास्क ने भी ग्रहण किया है। इसका प्रकाशन तीन स्थानों से हो चुका है क-बर्नेल द्वारा १८७३ ई० में प्रकाशित ख-सायणभाष्य सहित जीवानन्द विद्यासागर द्वारा सम्पादित एवं कलकत्ता से १८८१ ई० में प्रकाशित ग-केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति से १९६५ ई० में प्रकाशित । देवकुमारिका-ये संस्कृत की कवयित्री हैं। इनके पति उदयपुर के राणा अमरसिंह थे। इनका समय १८ वीं शताब्दी का पूर्वाद्ध है। इन्होंने 'वैद्यनाथप्रासादप्रशस्ति' नामक ग्रन्थ की रचना की है जिसका प्रकाशन संस्कृत पोयटेसेज' नामक ग्रन्थ में कलकत्ता से ( १९४० ई० में) हो चुका है। इस ग्रन्थ में १४२ पद्य हैं जो पांच प्रकरणों में विभक्त हैं। प्रथम प्रकरण में उदयपुर के राणाओं का संक्षिप्त वर्णन है तथा द्वितीय में राणा संग्राम सिंह का अभिषेक वर्णित है। शेष प्रकरणों में मन्दिर की प्रतिष्ठा का वर्णन है। गुल्जद् भ्रमद्-भ्रमरराजि-विराजितास्यं ___ स्तम्बेरमाननमहं नितरां नमामि । यत्-पादपङ्कज-पराग-पवित्रिताना प्रत्यूहराशय इह प्रशमं प्रयान्ति ।। देवणभट्ट-राजधर्म के निबन्धकार। इन्होंने 'स्मृतिचन्द्रिका' नामक राजधर्म के निबन्ध की रचना की है । इनके पिता का नाम केशवादिय भट्टोपाध्याय था। इन्होंने अपने ग्रन्थ में मामा की पुत्री से विवाह करने का विधान किया है जिसके आधार पर डॉ. शामशास्त्री इन्हें आन्ध्र प्रदेश का निवासी मानते हैं। इनका समय १२६० ई० के आसपास है। 'स्मृतिचन्द्रिका' संस्कृत निबन्ध साहित्य की अत्यन्त मूल्यवान् निधि के रूप में स्वीकृत है। इसका विभाजन काण्डों में हुआ है जिसके पांच ही काण्डों की जानकारी प्राप्त होती है। इन काण्डों को संस्कार, आह्निक, व्यवहार, बाद एवं सोच कहा जाता है। इनके अतिरिक्त इन्होंने राजनीति काण्ड का भी प्रणयन किया है। देवणभट्ट ने राजनीतिशास्त्र को धर्मशास्त्र का अंग माना है और उसे धर्मशास्त्र के ही अन्तर्गत स्थान दिया है। धर्मशास्त्र द्वारा स्थापित मान्यताओं के पोषण के लिए इन्होंने अपने ग्रन्थ में यत्र-तत्र धर्मशास्त्र, रामायण तथा पुराण आदि के भी उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। आधारग्रन्थ-भारतीय राजशास्त्रप्रणेता-डॉ० श्यामलाल पाण्डेय । देवप्रभसूरि (१२५० ई.)-ये जैन कवि हैं। इन्होंने 'पाण्डवचरित' नामक महाकाव्य की रचना १८ सर्गों में की है जिसमें अनुष्टुप् छन्द में महाभारत की कथा का संक्षेप में वर्णन है। देवविमल गणि ( १७ शतक) ये जैन कवि हैं। इन्होंने 'हीरसौभाग्य'
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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