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दशकुमारचरित]
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[दशकुमारचरित
डाल दिया। उसी समय जब चण्डवर्मा चम्पानरेश से युद्ध करने गया था, राजवाहन के मित्र अपहारवर्मा द्वारा मारा गया। तत्पश्चात् अपहारवर्मा तथा राजवर्मा के सभी मित्र मिल गये और अपहारवर्मा ने अपना वृत्तान्त कहना प्रारम्भ किया। अपहारवर्मा की कथा के साथ काममंजरी वेश्या एवं मारीच ऋषि की भी कथा जुड़ गयी है। वह राजवाहन की खोज करता हुआ मरीचि ऋषि के आश्रम में पहुंचा और ऋषि से उसने आप बीती सुनाई। दूसरे दिन अपहारवर्मा को चम्पानगरी जाते समय एक भिक्षु मिला जो काममंजरी द्वारा अपनी सारी सम्पत्ति छीन लिये जाने के कारण भिक्षु बन गया था। अपहारवर्मा ने उसे उसकी सम्पत्ति दिला देने का आश्वासन दिया और स्वयं चम्पानगरी में जाकर चौयं कम में लग गया। वहाँ उसने एक युवती को उसके प्रेमी से मिलने में सहायता की और स्वयं भी काममंजरी की छोटी बहिन रागमंजरी से प्रेम करने लगा। अन्ततः वह चण्डवर्मा को मार कर राजवाहन के पास पहुंचा। ___अब उपहारवर्मा की बारी आई और वह अपनी कथा कहने लगा। वह भ्रमण करते हुए अपनी जन्मभूमि मिथिला में पहुंचा जहां उसके पिता प्रहारवर्मा को कैद कर विकटवर्मा राज्य करने लगा था। उपहारवर्मा ने छल से विकटवर्मा की हत्या कर उसकी पत्नी से अफ्ना विवाह कर लिया। तत्पश्चात् उसने अपने माता-पिता को कैद से निकाला। जब वह चम्पानरेश की सहायता करने के लिए गया था तभी उसकी राजवाहन से भट हुई।
अब अर्थपाल ने अपना वृत्तान्त कहना प्रारम्भ किया। उसने बताया कि जब वह भ्रमण करते हुए काशी पहुंचा तो ज्ञात हुआ कि उसके पिता कामपाल को, जो काशीनरेश के मन्त्री थे, वहां के दुष्ट युवराज सिंहघोष ने कैद कर उनकी आँखें निकाल लेने का आदेश दे दिया है। उसने युक्ति से अपने पिता को मुक्त कर और राजकुमार को सोते हुए बन्दी बना लिया। वह वहां की राजकुमारी से विवाह कर काशी का युवराज बन गया । जब सिंहवर्मा की सहायता के लिए वह चम्पा आया तभी उसकी राजवर्मा से भेंट हुई।
प्रमति अपना वृत्तान्त प्रारम्भ करते हुए कहता है कि वन में घूमते हुए थक कर वह एक वृक्ष की छाया में सो गया। उस समय उसके निकट एक सुन्दरी कन्या दिखाई पड़ी। प्रमति ने जगने पर देखा कि वहां एक देवी प्रकट हुई हैं जिसने बताया कि उन्होंने अपने प्रभाव से श्रावस्तीनरेश की राजकुमारी के निकट उसे सुला दिया था। देवी ने बताया कि यदि प्रमति चाहे तो वह कन्या उसे प्राप्त हो सकती है। प्रमति राजकुमारी के प्रति आकृष्ट होकर तथा काम-पीड़ित हो श्रावस्ती नगरी की ओर चला । उसे मार्ग में एक ब्राह्मण मिला जिसने उसके कार्य में सहायता देने का वचन दिया तथा राजकन्या को प्राप्त करने की योजना बनाई । ब्राह्मण ने बताया कि वह कन्या बनेगा और प्रमति उसे अपनी पुत्री कहकर श्रावस्ती नरेश के अन्तःपुर में रहने के लिए उनसे निवेदन करे। राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ब्राह्मण को आश्रय दिया। एक दिन स्त्रीवेषधारी ब्राह्मण ने झूठ का डूबने का बहाना किया और रूप