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________________ दशकुमारचरित ] ( २१३ ) [ दशकुमारचरित के बीच मूलग्रन्थ है जिसके आठ उच्छ्वासों में आठ कुमारों का चरित वर्णित है । पूर्वपीठिका के पाँच उच्छ्वासों में दो कुमारों की कहानी है तथा उत्तरपीठिका में किसी की कहानी न होकर ग्रन्थ का उपसंहार मात्र है । वस्तुतः पूर्वं एवं उत्तरपीठिकाएं दण्डी की मूल रचना न होकर परवर्ती जोड़ हैं, किन्तु इन दोनों के बिना ग्रन्थ अधूरा प्रतीत होता है । पूर्वपीठिका को अवतरणिका स्वरूप तथा उत्तरपीठिका को उपसंहार स्वरूप कहा गया है । दोनों पीठिकाओं को मिला देने पर यह ग्रन्थ पूर्ण हो जाता है । ऐसा ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में दण्डी ने सम्पूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी किन्तु कालान्तर में इसका अन्तिम अंश नष्ट हो गया और किसी कवि ने पूर्व एवं उत्तरपीठिकाओं की रचना कर ग्रंथ को पूरा कर दिया । पूर्वपीठिका तथा मूल 'दशकुमारचरित' की शैली में भी अन्तर दिखाई पड़ने से यह बात और भी अधिक पुष्ट हो जाती है। मूल ग्रन्थ में दण्डी ने राजा राजवाहन एवं उनके साथ मित्रों की कथा का वर्णन किया है । प्रथम उच्छ्वास में राजा राजवाहन की कथा वर्णित है । उसके साथी आकर उससे मिलते हैं और वह उनके अनुभवों की कथा कहने को कहता है । पूर्वपीठिका, जो परवर्ती रचना है, में मगधनरेश राजहंस की कथा वर्णित है । राजहंस अपने शत्रु मानसर से पराजित होकर विन्ध्यवन में निवास करता है। वहीं पर उसकी संरक्षकता में दशकुमार रहते हैं जिनमें एक राजा का पुत्र, राजवाहन, सात उस राजा के मंत्रियों के पुत्र एवं दो मिथिला के राजकुमार हैं। सभी राजकुमार अपनी शिक्षा समाप्त कर दिग्विजय करने निकलते हैं तथा विन्ध्यवन में पहुँच कर एक दूसरे से पृथक् हो जाते हैं, बिछुड़ जाते हैं । राजवाहन अपने मित्रों की खोज करता हुआ उज्जयिनी आता है जहाँ एक बगीचे में उसे उसका मित्र सोमदत्त, एक सुन्दरी के साथ दिखाई पड़ता है । सोमदत्त राजवाहन से बताता है कि किस तरह, जब लाटनरेश ने उज्जयिनीनरेश की से विवाह करने के लिए उज्जयिनी पर चढ़ाई की तो, मैंने उज्जयिनीनरेश की सहायता कर लाटनरेश का वध कर दिया । इस पर मेरे ऊपर प्रसन्न होकर उज्जयिनी - नरेश ने अपनी पुत्री का मुझसे विवाह करे मुझे युवराज बना दिया । उसी समय राजवाहन का द्वितीय मित्र पुष्पोद्भव भी आ पहुंचा और अपना वृत्तान्त सुनाने लगा । उसने बताया कि वह उज्जयिनी पहुंचा जहाँ उसे एक व्यापारी की कन्या, जिसका नाम बालचन्द्रिका है, से प्रेम हो गया और उसने उसके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया । अपनी कहानी कहते राजकुमारी वामलोचना मूल 'दशकुमारचरित' के प्रथम उच्छ्वास में राजवाहन की कथा वर्णित है । इसकी कथा के पूर्व भाग को पूर्वपीठिका के पंचम उच्छ्वास में जोड़ा गया है । राजवाहन उज्जयिनी में भ्रमण करता हुआ अपने शत्रु मानसार की कन्या अवन्तिसुन्दरी पर अनुरक्त हो उससे प्रेम करने लगा। उस समय उज्जयिनी का शासक था दारुवर्मन् का भाई चण्डवर्मा और उसने इन दोनों के प्रेम पर क्रुद्ध होकर राजवाहन को कारागृह में
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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