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________________ जैन साहित्य] (१९४) [जैन साहित्य वि० पू० है जो बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली के रहने वाले क्षत्रिय राजकुमार थे। तीस वर्ष की वय में वे घर-द्वार छोड़ कर तपस्या करने चले गए और ज्ञान-प्राप्त करने के बाद महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुए । जैनमत में ईश्वर की सत्ता मान्य नहीं है और वे तीर्थंकरों ही उपासना करते हैं। तीर्थकरों को मुक्त माना जाता है। जैनियों के मतानुसार सभी बंधनयुक्त जीव तोयंकरों के मार्ग पर चल सकते हैं और साधना के द्वारा उन्हीं के समान ज्ञानी, सिख एवं पूर्णशक्तिमान् बन कर आनन्दोपन्धि करते हैं। इनके दो सम्प्रदाय हैं-दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, पर इनके सिद्धान्तों में कोई मौलिक भेद नहीं है । श्वेताम्बर श्वेत वस्त्रों का प्रयोग करते हैं किन्तु दिगम्बर वस्त्र का व्यवहार न कर नग्न रहा करते हैं। श्वेतवस्त्रधारी होने के कारण पहले को श्वेताम्बर एवं नग्न होने के कारण द्वितीय को दिगम्बर कहा जाता है। दोनों सम्प्रदायों में नैतिक सिद्धान्तविषयक मतभेद अधिक है, दार्शनिक सिद्धान्त में अधिक अन्तर नहीं दिखाई पड़ता। जैन साहित्य-जैन धर्म में ८४ ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं। इसमें तत्त्वज्ञान सम्बन्धी साहित्य की अपेक्षा आचारविषयक साहित्य की बहुलता है। यह साहित्य अत्यन्त समृद्ध है और बहुलांश प्राकृत भाषा में रचित है। पर, कालान्तर में संस्कृत भाषा में भी रचनाएं हुई। इनके ४१ ग्रन्थ सूत्ररूप में हैं तथा कितने ही प्रकीर्ण है, तथा कुछ वर्गीकरण से रहित भी हैं। ४१ सूत्रों का विभाजन पांच भागों में किया गया है-अंग ११, उपांग १२, छेद ५, मूल ५ तथा विविध ८ । जैन दर्शन को सुव्यवस्थित करनेवाले तीन विद्वान उल्लेखनीय है-उमास्वाति, कुन्दकुन्दाचार्य तथा समन्तभद्र । उमास्वाति के अन्य का नाम है 'तत्वार्थसूत्र' या 'तस्वार्थाधिगमसूत्र' । समय-समय पर प्रसिद्ध आचार्यों ने इसकी वृत्ति, टीका एवं भाष्य लिखे हैं। ये विक्रम के प्रारम्भिक काल में हुए थे, इनका वासस्थान मगध था। कुन्दकुन्दाचार्य ने 'नियमसार', 'पंचास्तिकायसार', 'समयसार' तथा 'प्रवचन' नामक ग्रन्थों का प्रणयन किया जिनमें अन्तिम तीन का महत्व 'प्रस्थानत्रयी' की तरह है। समन्तभद्र ने 'बात्ममीमांसा (१४ कारिकाओं का ग्रन्थ), 'युक्त्यानुसन्धान, 'स्वम्भूस्तोत्र ( १४३ पदों में तीर्थकरों की स्तुति ), 'जिनस्तुतिशतक', 'रत्नकरण्डबावकाचार' आदि सिद्धसेन दिवाकर (५वीं शती) ने 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र', 'न्यायावतार,' 'सन्मतितक' आदि ग्रन्थों की रचना कर जैनन्याय की अवतारणा की। वादिराजसूरि (नवमशतक) कृत 'न्यायविनिश्चयनिर्णय' भी न्यायशान का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। हेमचन्द्र सूरि ( १९७२ ई.) प्रसिद्ध जैन विद्वान हैं जिन्होंने 'प्रमाणमीमांसा' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा है। १७ वी शताब्दी के यशोविजय ने 'जैनतकभाषा' नामक सरल एवं संक्षिप्त पुस्तक लिखी है । अन्य जैन दार्शनिक बन्यों में नेमिचन्द्र का 'व्यसंग्रह', मल्लसेनकृत 'स्यावादमंजरी' तथा प्रभाचन्द्र विरचित 'प्रमेयकमलमातंग' आदि अन्य प्रसिद्ध हैं। तत्वमीमांसा जैनदर्शन वस्तुवादी या बहुसत्तावादी तत्वचिंतन है जिसके अनुसार विज्ञाई पड़नेवाले सभी द्रव्य सत्य है। संसार के मूल में दो प्रकार के तत्त्व है-जीव
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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