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________________ ज्योतिषशास्त्र ] ( १८८ ) [ ज्योतिषशास्त्र नाना प्रकार के यन्त्र-निर्माण की विधि ( तुरीय नलिका आदि ) तथा अक्षक्षेत्रविषयक अक्षज्या, लम्बज्या, ज्या, कुज्या, समशंकु इत्यादि के आनयन का विवेचन होता है । क्रमशः इसके सिद्धान्तों का विकास होता गया और सिद्धान्त, तन्त्र तथा करण के रूप में इसके तीन भेद किये गए । संहिता के विवेच्य विषय होते हैं-भूशोधन, दिक्शोषन, शल्योद्धार, मेलापक, आयाद्यानयन, गृहोपकरण, इष्टिकाद्वार, गेहारम्भ, गृहप्रवेश, जलाशयनिर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, उल्कापात, वृष्टि, ग्रहों के उदयास्त का फल, ग्रहाचार का फल तथा ग्रहण - फल । प्रश्नज्योतिष में प्रश्नाक्षर, प्रश्नलग्न एवं स्वरविज्ञान की विधि का वर्णन होता है तथा प्रश्नकर्त्ता को तत्काल फल बतलाया जाता है । इसमें प्रश्नकर्त्ता के हाव-भाव, चेष्टा आदि के द्वारा उसकी मनःस्थिति का भी विश्लेषण होता है । अतः ज्योतिषशास्त्र के इस अंग का सम्बन्ध मनोविज्ञान के साथ स्थापित हो जाता है । शकुन - ज्योतिष में प्रत्येक कार्य के शुभाशुभ फलों का पूर्व ज्ञान प्राप्त किया जाता है । इसका दूसरा नाम निमित्तशास्त्र भी है । ज्योतिषशास्त्र का इतिहास - -अन्य शास्त्रों के समान भारतीय ही ज्योतिषशास्त्र के जन्मदाता माने गए हैं। इस शास्त्र की प्राचीनता के सम्बन्ध में देशी एवं विदेशी विद्वानों ने एक स्वर से समान विचार व्यक्त किये हैं । ( १ ) डॉ० गौरीशंकर ओझा ने लिखा है - "भारत ने अन्य देशवासियों को जो अनेक बातें सिखायीं, उनमें सबसे अधिक महत्त्व अंकविद्या का है। संसार भर में गणित, ज्योतिष, विज्ञान आदि की आज जो उन्नति पायी जाती है, उसका मूल कारण वर्तमान अंक क्रम है, जिसमें १ से ९ तक के अंक और शून्य इन १० चिह्नों से अंक विद्या का सारा काम चल रहा है । यह क्रम भारतवासियों ने ही निकाला और उसे सारे संसार ने अपनाया ।" मध्यकालीन भारतीय संस्कृति पृ० १०८ । ( २ ) डब्ल्यू ० डब्ल्यू ० हष्टर का कहना है कि "८ वीं शती में अरबी विद्वानों ने भारत से ज्योतिषविद्या सीखी और भारतीय ज्योतिष सिद्धान्तों का 'सिन्द हिन्द' नाम से अरबी में अनुवाद किया ।" हण्टर इण्डियन - गजेटियर इण्डिया पृ० २१८ | अलबरूनी के अनुसार "ज्योतिषसास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला । हिन्दुओं में अठारह अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं, जिनमें अन्तिम संख्या का नाम परार्द्ध बताया गया है ।" अलबेरुनीकालीन भारत भाग १, पृ० १७४ - १७७ ( अंगरेजी ) । ( ३ ) मैक्समूलर का कथन है कि "भारतवासी आकाश - मण्डल और नक्षत्र-मण्डल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। मूल आविष्कर्त्ता वे ही इन वस्तुओं के हैं ।" इण्डिया ह्वाट कैन इट टीच अस पृ० ३६०-६३ [ उपर्युक्त सभी उद्धरण 'भारतीय ज्योतिष' नामक ग्रन्थ से लिये गए हैं -- ले० डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री - ] | भारतीय ज्योतिष के विद्वानों ने ज्योतिषशास्त्र के ऐतिहासिक विकास ( कालवर्गीकरण की दृष्टि से ) निम्नांकित युगों में विभाजित किया है
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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