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________________ कालिदास] [कालिदास का प्रचलित होना तथा कृत्रिम नामों का जुड़ जाना एवं कालान्तर में संस्कृत साहित्य में कालिदास नाम का उपाधि हो जाना। किंवदन्तियों के अनुसार ये जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में मूर्ख थे और देवी काली की कृपा से आगे चल कर महान् पण्डित बने। किंवदन्तियाँ इन्हें विक्रम की सभा का नवरत्न एवं भोज का दरबारी कवि भी बतलाती हैं। धन्वतरिक्षपणकामरसिंहशङ्कवेताल भट्टघटखपरकालिदासाः । __ ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य । इनके सम्बन्ध में लंका में भी एक जनश्रुति प्रचलित है जिसके अनुसार लंका के राजा कुमारदास की कृति 'जानकीहरण' की प्रशंसा करने पर ये राजा द्वारा लंका बुलाये गए थे। इसी प्रकार इन्हें 'सेतुबन्ध' महाकाव्य के प्रणेता प्रवरसेन का मित्र कहा जाता है एवं ये मातृचेष्ट से अभिन्न माने जाते हैं। इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी यही बात है। कोई इन्हें बंगाली, कोई काश्मीरी, कोई मालव-निवासी, कोई मैथिल एवं कोई बक्सर के पास का रहने वाला बतलाता है। कालिदास की कृतियों में उज्जैन के प्रति अधिक मोह प्रदर्शित किया गया है अतः अधिकांश विद्वान इन्हें मालव-निवासी मानने के पक्ष में हैं। इधर विद्वानों का झुकाव इस तथ्य की ओर अधिक है कि इनकी जन्मभूमि काश्मीर और मालवा कर्मभूमि थी। कालिदास के स्थिति-काल को लेकर भारतीय तथा पाश्चात्य पण्डितों में अत्यधिक वाद-विवाद हुआ है। इनका समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक माना जाता रहा है। भारतीय अनुश्रुति के अनुसार महाकवि कालिदास विक्रमादित्य के नवरत्नों में से थे। इनके ग्रन्थों में भी विक्रम के साथ रहने की बात सूचित होती है। कहा जाता है कि 'शकुन्तला' का अभिनय विक्रम की 'अभिरूप भूयिष्ठा' परिषद् में ही हुआ था। 'विक्रमोवंशोय' में भी विक्रम का नाम उल्लिखित है। 'अनुत्सेकः विक्रमालंकारः' इस वाक्य से भी ज्ञात होता है कि कालिदास का विक्रम से सम्बन्ध रहा होगा। 'रामचन्द्रमहाकाव्य' के इस कथन से भी विक्रम के साथ महाकवि के सम्बन्ध की पुष्टि होती है-'ख्याति कामपि कालिदासकवयो नीताशकारातिनां' । इससे स्पष्ट होता है कि कालिदास विक्रम की सभा में रहे होंगे। ___ कालिदास के समय-निरूपण के सम्बन्ध में तीन मत प्रधान हैं-क. कालिदास का बाविर्भाव षष्ठ शतक में हुआ था। ख. इनकी स्थिति गुप्तकाल में थी। ग. विक्रम संवत् के आरम्भ में ये विद्यमान थे। प्रथम मत के पोषक फग्र्युसन, हॉनर्ली आदि विद्वान् हैं। इनके मतानुसार मालवराज यशोधमन के समय में कालिदास विद्यमान थे। इन्होंने छठी शताब्दी में हूणों पर विजय प्राप्त कर उसकी स्मृति में ६०० वर्ष पूर्व की तिथि देकर मालव संवत् चलाया था। यही संवत् आगे चलकर विक्रम संवत् के नाम से प्रचलित हुआ। इन विद्वानों ने 'रघुवंश' में वर्णित हूणों की विजय के आधार पर कवि का समय ६ठी शताब्दी माना है। तत्र हूणावरोधानां भर्तृषु व्यक्तविक्रमम् । कपोलपाटलादेशि बभूव रघुचेष्टितम् ॥ ४॥६८
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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