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________________ कपिल] [कपिल आधारग्रन्थ-१. इण्डियन फिलॉसफी भाग २-डॉ० राधाकृष्णन २. भारतीयदर्शन बा० बलदेव उपाध्याय । कपिल-सांख्यदर्शन के आधाचार्य महर्षि कपिल हैं जिनकी गणना विष्णु के अवतारों में होती है। 'श्रीमद्भागवतपुराण' में इन्हें विष्णु का पन्चम अवतार कहा गया है। इनके सम्बन्ध में 'महाभारत', 'भागवत' आदि ग्रन्थों में परस्पर विरोधी कथन प्राप्त होते हैं, अतः कई आधुनिक विद्वानों ने इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति न मान कर काल्पनिक माना है। स्वयं 'महाभारत' में ही इनके विषय में दो प्रकार के विचार हैं । प्रथम कथन के अनुसार कपिल ब्रह्मा के पुत्र एवं द्वितीय वर्णन में अग्नि के अवतार कहे गए हैं। सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातनः । कपिलश्चासुरिश्चैव वोढुः पन्चशिखस्तथा । सप्तैते ब्रह्मणः पुत्राः। महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २१८ कपिलं परमषिन्च यं प्राहुर्यतयः सदा । अग्निः स कपिलो नाम साङ्ख्ययोगप्रवर्तकः ।। वही, [ योगसूत्र (१, २५ ) की टीका में वाचस्पति मिश्र (प्रसिद्ध नैयायिक ) इन्हें हिरण्यगर्भ कहते है-आदि विद्वान् कपिल इति ।.....कपिलो नाम विष्णोरवतारविशेषः प्रसिदः । स्वयम्भूहिरण्यगर्भस्तस्यापि सांख्ययोगप्राप्तिर्वेदे श्रूयते, स एवेश्वर आदि विद्वान् कपिलो विष्णुः स्वयम्भूरिति भावः। तत्त्व वैशारदी टीका उपर्युक्त कथनों के आधार पर 'कीथ' ने कपिल को हिरण्यगर्भ से अभिन्न स्वीकार किया है। 'कीथ' का कहना है कि चूंकि ये कहीं अग्नि, कहीं विष्णु तथा कतिपय स्थलों पर शिव के अवतार माने गए हैं, अतः इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति न मान कर हिरण्यगर्भ ही कहा जा सकता है। [ दे० सांख्य सिस्टम-ले० डॉ० ९० बी० कीथ पृ० ९] मैक्समूलर एवं कोलबुक प्रभृति पाश्चात्य विद्वान् एवं म० म० डॉ० गोपीनाथ कविराज तथा डॉ० हरदत्त शर्मा प्रभृति भारतीय विद्वान् भी इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति स्वीकार करने में सन्देह प्रकट करते हैं। [दे० डॉ० गोपीनाथ कविराज कृत 'जयमंगला' की भूमिका तथा डॉ. हरदत्तशर्मा कृत 'सांख्यतत्त्वकौमुदी', पूना संस्करण की भूमिका पृ० १४ ] पर प्राचीन परम्परा में आस्था रखने वाले विद्वान् उपर्युक्त निष्कर्षों में विश्वास न कर कपिल को सांख्यदर्शन का आदि प्रवत्तंक मानते हैं । 'गीता' में भगवान् श्रीकृष्ण अपने को सिद्धों में कपिल मुनि कहते हैं-सिद्धानां कपिलो मुनिः, गीता १०।२६ । ब्रह्मसूत्र के 'शाङ्करभाष्य' में शङ्कराचार्य ने इन्हें सांख्यदर्शन का आद्य उपदेष्टा एवं राजा सगर के साठ सहस्र पुत्रों को भस्म करने वाले कपिलमुनि से भिन्न स्वीकार किया है । 'या तु श्रुतिः कपिलस्य ज्ञानातिशयं दर्शयन्ती प्रदर्शिता, न तया श्रुतिविरुद्धमपि कापिलं मतं श्रद्धातुं शक्यं, कपिलमिति श्रुतिसामान्यमात्रस्वात् । अन्यस्य च कपिलय सगरपुत्राणां प्रतप्तुर्वासुदेवनाम्नः स्मरणात् ।' ब्रह्मसूत्र, शाङ्करभाष्य २०११ ॥ इन विवरणों के आधार पर कपिल के अस्तित्व के विषय में सन्देह नहीं किया जा सकता।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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