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आगम-सागर-कोषः (भागः-५)
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६१आ। ज्ञाता०२३७।
वैश्रमणदासदग्धः। सं०। चतुर्दशतीर्थकृ-त्पिता। सम० सीहणिसाई-सिंहनिषादी-सिंहवन्निषीदतीत्येवंशीलः। १५१। अजितनाथप्रथमशिष्यः। सम० १५२। सिंहसेनःजीवा० ३४३।
अनुत्तरोपपातिकदशानां द्वितीयवर्गस्य एकादशमसीहनाय-सिंहनादः। भग० ११५
मध्ययनम्। अनुत्त०२। सिंहसेनः-महासेनराजकुमारः। सीहनिक्कीलियं-सिहनिष्क्रीडितमिव सिंहनिष्क्रीडितं- विपा० ८२। सिंहसेनः-अनन्तनाथपिता। आव. १६१| सिंहो हि विहरन् पश्चाद्भागमवलोकयति एवं यत्र सीहस्सर-सिंहस्येव प्रभूतदेशव्यापी स्वरो यस्य स सिंहप्राक्तनं तप आव-त्र्योत्तरोत्तरं तद विधीयते तत्तपः | स्वरः। जीवा. २०७४ सिंहनिष्क्रीडितम्। ज्ञाता० १२२
सीहा- सिंहा-श्रमाभावेन सिंहगतिसमाना। भग० १६७। सीहपरिसा-मज्झे सीहपरिसा। निशी० ३८ आ।
सीहाए-सिंहया तद्दायस्थैर्येण। ज्ञाता० ३१| सीहपरिसा-गीयगीत्था। निशी. १९ अ।
सीहाणुग-जो महंतणिसिज्जाए ठितो सत्तमत्थं वा एति सीहपुच्छ-सिंहपुच्छं-पृष्ठिवर्धम्। आव० ६५१। चिट्ठइ वा सीहाणुगो। निशी. १३७ । सीहपच्छण-सिंहपच्छन-शेफत्रोटनम्। प्रश्न. १६४॥ | सीहानुग-सिंहानुगः-यो महत्वां निषद्यायां स्थितः सन् सीहपुच्छियय-सिंहपुच्छितकं-सिंहमेहनकं
सूत्र-मर्थं वा वाचयति तिष्ठति वा सिंहानगः। व्यव. वोटितमेहनम्। औप. ८७
१२१ । सीहपुर-सिंहपुरं-श्रेयांसनाथजन्मभूमिः। आव० १६० सीहावलोय- पश्चादवलोकः। मरण। सिंहपुरं-सिंहदत्तराजधानी। विपा० ७० स्था० ८० सीहासण-सिंहासनं-यस्यासनस्याधो भागे सिंहो व्यवसिंहपुरं-स पद्मविजयस्य राजधानी। जम्बू. ३५७) स्थितः स। जीवा.२००० सीहमड-सिंहमृतः-मृतसिंहदेहः। जीवा० १०६।
सीही-तत्प्रधाना विद्या। आव० ३१९| सीहमुह- सिंहमुखः-अन्तरद्वीपविशेषः। जीवा० १४४। | सीहका-सीधुका-मद्यविशेषः। प्रश्न० १६३। सीहमुहदीव-अन्तरद्वीपविशेषः। स्था० २२६। सीहोरासियं-सिंहसामर्थ्यजम्। मरण। सीहमुहा-सिंहमुखनाम अन्तरद्वीपः। प्रज्ञा० ५० सुंक- शुल्क-मूल्यम्। ज्ञाता० १३१| सीहरह- पञ्चदशमतीर्थकृत्पूर्वभवनाम। सम० १५१| सुंकपाल-शुल्कपालः। आव० ३१७| सिंहरथः-सिंहपुराधिपतिः। विपा० ७१।
सुंकभय-शुल्कभयः। आव० ३५४॥ सीहल-सिंहलः चिलातदेशनिवासी म्लेच्छविशेषः। प्रश्न | सुंकलित-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०२। १४॥
सुंकलितण-तृणविशेषः। प्रज्ञा० ३३ सीहलिपासगं- वीणासंयमनार्थमूर्णामयं कङ्कणं च। सूत्र० | सुकवाल- शुल्कपालः। उत्त० १६५ ११७
सुंकियतो-शुल्कग्राहकः। व्यव० ९४ आ। सीहविक्कमगतो-अमितगतेश्चतुर्थो लोकपालः। स्था० सुंकिया- गामिया। निशी० १४० अ। १९८१
सुंगा- शुङ्गायनं विशाखागोत्रम्। जम्बू. ५००/ सीहवीअ-सहसारकल्पे सप्तदशसागरोपमस्थितिके देव- | संगायणसगोत्ते-विशाखानक्षत्रगोत्रम्। सूर्य. १५० विमानम्। सम० ३३।
सुंठ-तृणविशेषः। प्रज्ञा० ३३। पर्वगविशेषः। प्रज्ञा० ३३। सुहसीलवयत्ता-सुखशीलाव्यक्ता सुख-शरीरशुश्रूषादिकं सुंठए- शुण्ठकं-नारकपचनार्थं भाजनविशेषः। सूत्र. १२५ शीलयन्तीति सखशीलाः पाास्थादयः अव्यक्ताः- सुंठी-सिंगबेरो। निशी. ५० आ। सुख-शीलाव्यक्तः। बृह० १२७ आ।
सुंड- साधुमन्यद्वा। आचा० ३३०| सीहसेण-आराधको गजः। मरण| सल्लुकीवने सुंडय-शुण्ठकम्। आव०६५१| गन्धहस्ती-सिंहचन्द्रमुनिबोधितः कुर्कटसपहतः | सुंडा- शुण्डा। आव० २१७ श्रीतिलकसुरः। मरण०| ऋषभसेनशिष्यः | इंडिया- शौण्डिका-अत्यन्ताभिष्यङ्गरूपा। दशवै० १८८५
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [१]