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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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पुण्यवान् सुरेश्वरचक्रवर्तिमाण्डलिकादिः। आचा० एका-दशममध्ययनम्। अन्त० २३। पूर्णभद्रं १४५
चम्पानगर्यामुद्यानम् तत्रैव यक्षश्च। विपा०९५) पुण्णा- धर्मकथायाः पञ्चमवर्गस्य नवममध्ययनम्। महापद्मस्य सेनाकर्मकरदेवः। स्था० ४५९। द्वितीयो ज्ञाता० २५२
जक्षेन्द्रः। स्था० ८५। पुण्यभद्रः वैश्रमणस्य पुत्रस्थानीयो पुण्यं- शुभम्। आव० ५९२
देवः। भग. २००| चंपायां चैत्यः। ज्ञाता० १९३। चम्पायां पुता- नातिमन्दा नातित्वरिता। बृह० २५६ अ।
चैत्यः। निर०१९। पुष्पिकायाः पञ्चममध्ययनम्। पुताई- उद्भामिका। बृह. २११ आ।
निर०२११ चम्पानगर्या चैत्यम। निर०४| चम्पायां पुत्तंजीव- वृक्षविशेषः। भग० ८०३।
चैत्यम्। अन्त०१। पूर्णभद्रः चम्पायां चैत्य-विशेषः। पुत्तंजीवय- पुत्रजीवकः वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३१॥ अन्त०२५१ विपा० ३३। पूर्णभद्रः-अन्तकृद्दशानां पुत्त- पुनाति पितुराचारानुवर्तितयाऽऽत्मानमिति पुत्रः। षष्ठवर्गस्य एकादशममध्ययनम्। अन्त०१८ उत्त० ३८॥ पुनाति पितर पाति वा पितृमर्यादामिति पुन्नरक्ख- पुण्यरक्षः वैश्रमणस्य पत्रस्थानीयो देवः। भग पुत्रः-सूनुः। स्था० ५१६। पुत्रः-पुत्रमांसोपमया
२०० भोक्तव्यम्, साधो-भॊक्तव्य उपमा। दशवै० १९। पुन्नरूव- पूर्णरूपः पुण्यरूपो वा वस्त्रम्। बृह. २८ अ। परिधानवस्त्रम्। बृह. २५३ अ। विशिष्टरजोहरणादिद्रव्यलि-असद्भावात् सुसाधुरिति। पुत्तगो-पुत्तलकः। बृह. १४८ अ।
स्था० २७९। पुत्तजम्म- पुत्रजन्म। आव० ३४४।
पुन्नसेण- पुण्यसेनः-अनुत्तरोपपातिकदशानां पुत्तभंड-पुत्रभाण्डम्। आव० २०५। आव. २७३।
द्वितीयवर्गस्य त्रयोदशममध्ययनम्। अनुत्त० २। पुत्तलपिंड- असद्भावस्थापनायां दृष्टान्तः। ओघ. १२९। पुन्ना- जक्षेन्द्रस्याग्रमहिषी। भग. ५०४ पुत्तलिका- पुस्तकर्मविशेषः। ओघ० १२९।
पुन्नाग- लताविशेषः। आचा० ३० वृक्षविशेषः। भग. पुत्ता- पूर्णभद्रजक्षस्य प्रथमा अग्रमहिषी। स्था० २०४१ ८०३। पुन्नागः-एकास्थिकवृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३१| पुत्ताणुपुत्तियं- पौत्रानुपुत्रिका- पुत्रपौत्रादियोग्यम्। पुप्फ- विंशतिसागरोपमस्थितिकदेवविमानम्। सम० ३८1 ज्ञाता० ३९
पुष्पं-कुन्दकलिका। जीवा० १६३| पुष्पशिखावलिरचिता पुत्तिया- चतुरिन्द्रियजीवः। उत्त० ६९६।
चोरी पुष्पचङ्गेरी। आव० ४१। पुष्यः-नक्षत्रविशेषः। चतुरिन्द्रियजन्तु-विशेषः। जीवा० ३२
सूर्य. १३०| पुष्पं-अच्छोदकम्। निशी. १५० अ। पुष्पंपुत्थ- पुस्तं- वस्त्रकृतम्। आव० ७६७।
विकसितं अग्रथितम्। अनुयो० २४। पुष्पंपुत्थारा- तुन्नाकविशेषः।-शिल्पाचार्यः। प्रज्ञा० ५६। वर्णगन्धोपेतम्। आचा० ३५२। पुत्थी- पुस्ती-पोतस्य ज्येष्ठा सुता, ब्रह्मदत्तराज्ञी। पुप्फकंत-विंशतिसागरोपमस्थितिकदेवविमानम्। सम.
उत्त० ३७९। पुद्गलोवेशः- भगवत्यामुद्देशकः। आव० १०६। पुप्फक- पुष्पकः-देवविमानः। औप० ५२॥ पुधोवणं- पुणो पुणो धोवणं पुधोवणं। निशी० १९८१ | पुप्फकरंडए- पुष्पकरंडकं-हस्तिशीर्षनगरे उद्यानम्। पुत्र- प्रथमो द्विपकुमारेन्द्रः। स्था० ८४| पूर्ण:
विपा. ८९। द्वीपकुमारा-णामधिपतिः। प्रज्ञा० ९४। पूर्ण-भृतं पुप्फकरंडगहत्थगय- पुष्पकरंडकहस्तगतः। आव० ३७०| प्लुतम्। ज्ञाता० ७१। पूर्ण-स्वरकलाभिः। स्था० ३९६) पुप्फकरंडय- पुष्पकरंडकं राजगृह उद्यानम्। आव० १७२। पुण्यं पुण्यहेतुत्वात्। सूत्र० ४०३।।
पुप्फकुंथुत- पुष्पकुन्थुः पुष्पकीटः। आव० ८३२॥ पुन्नभद्द- चम्पायां जक्षायतनम्। भग० ४८४। भग० ६१८५ | पुप्फकेउ- पुष्पकेतः- सप्ताशीतितममहाग्रहः। स्था० ७९। शुद्धपाणके देवः। भग० ६८०। पूर्णभद्रः-चम्पायां चैत्यवि- जम्ब० ५३५। जम्ब्वैरवते आगामिन्यामत्सर्पिण्यां शेषः। अन्त० १। पूर्णभद्रः-अन्तकृद्दशानां षष्ठवर्गस्य | सप्तम-तीर्थकरः। सम० १५४| पुष्पकेतुः
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]