________________
[Type text]]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
धारणी- श्वेतनृपस्य राज्ञी। राज०९। जितशत्रुराज्ञी। धारेमाणे-धारयन् स्थिरीकर्वन। भग०५४ आचा. २११ धारिणी-महासेनराज्ञी। विपा० ८२
धारोदय- गिरिनिर्झरजलं आन्तरिक्षं वा। ब्रह. १७१ अ। श्रेणिकस्य राज्ञी। ज्ञाता० १२। अदीनशत्रुराजस्य धालिया-धारिता। उत्त. १३७५ पट्टराज्ञी। विपा. ९०| बलनृपस्य राज्ञी। ज्ञाता० १२१।। धावं-धावनम्। आव० १९८१ धारा- देवछत्रधारकाः। बृह. २७३ आ। सततपातजनिता धावणं- धावनं शीघ्रमृजुगमनम्। जम्बू०५३०वेगवद्
सन्ततिः। उत्त० ३६९। धारेव धारा-क्रिया। भग० ४७१। गमनम्। ज्ञाता०२३२ दशवै० १०० शीघ्रगमनम्। धारिज्जंति-धार्यन्ते आसेव्यन्ते। उत्त०६०७)
जम्बू० २६५ धारिणि-धारिणी-अज्ञातोदाहरणे युवराजराष्ट्रवर्धनपत्नी। | धावणओ- लेखहारकः। बृह. २४८ अ। आव० ६९९|
धावनं- कल्पत्रयप्रदानम्। बृह. २६८ अ। प्रक्षालनम्। धारिणी- धनञ्जयनृपपन्ती। आव० १७७। श्रेणिकराज्ञी। आचा० २७७) अनुत्त० | वसन्तपुरे जितशत्रुराज्ञी। आव० ३७८१ वज्र- | धाविय- धावनं-अश्वकलाविशेषः। उत्त० २२३। सेनराज्ञी। आव० ११७ अन्धकवृष्णिराज्ञी। अन्त०२ | धाहं- धावनम्। उत्त.१०२। चन्द्रावतंसकराज्ञी। उत्त० ३७५। सकलगुणधारणात् धिइ-धृतिः-मानसाऽवष्टम्भलक्षणा, निश्चला। बृह. धारिणी-जितशत्रुनपपत्नी। सूर्य. २
२१९आ। मूलोत्तरगुणविषयः प्रतिदिवसमुत्सहमान विशाखभूतियुवराज-पत्नी। आव० १७२। बलदेवराज्ञी। आत्मपरिणा-मविशेषः। नन्दी० ४५ चित्तस्वास्थ्यम्। अन्त०१४। जितशत्रो राज्ञी। जम्बू. ९।
सम० ११७। संयम प्रति चित्तस्वास्थ्यम्। उत्त० २३५१ एषणासमितिदृष्टान्ते धिग्जातीयचक्रक-रगौतमपत्ती। | धृतिः-चित्तस्वास्थ्यम्। जीवा० १२३॥ आव०६१६। संवेगोदाहरणे चम्पायां मित्रप्रभ-राज्ञी। धिइदुब्बल- दुर्बलधृतयो धर्मानुष्ठानं प्रतीति। उत्त० ५५२ आव०७०९। अज्ञातोदाहरणे कोशाम्ब्यामजितसेन- धिइमई-धृतिमतिः धृतिप्रधाना मतिधृतिमतिःराज्ञी। आव०६९९। दधिवाहनराज्ञी। आव० १२३। जित- | अदैन्यम्। सम० ५८१ शत्रुराज्ञी। ओघ० १५८ शिवराज्ञो राजी। भग० ५१४॥ धिइल्लिया- शालभजिका। आव० ३४४। वृष्णिराजपत्नी। अन्त० ३१ चम्पायां कोणिकराज्ञी। धिई- मानसाऽवष्टम्भरूपा। बृह. १४ अ। धृतिः-चित्तप्रश्न. १। जितशत्रुराजपत्नी। आव० ३७२।
स्वास्थ्यमनुद्विग्नत्वम्। उत्त० ६२२। समाधानं संयमे। चक्षुरिन्द्रियोदाहरणे-मथुराधिपतिजितशत्रुराज्ञी। आव० | आचा० ४३१। धृतिः- पल्योपमस्थितिका देवा। जम्बू. ३९८1 श्रावस्तिनगर्यां रुक्मिनृपस्य राज्ञी। ज्ञाता० १४०। ३०६। काम्पिल्यपुरस्य जित-शत्रो राज्ञी। ज्ञाता० १४४| | धिईकूडे-धृतिःतिगिंछिद्रहसुरी तस्याः कूटम्। जम्बू अन्धकवृष्णेर्दैवी। अन्त० २। अन्धकवृष्णेर्देवी। अन्त० ३०८1 । बलदेवस्य देवी। अन्त०१४। जियसत्तुदेवी। निशी. | धिईमई-धृतिमतिः-अदैन्यम्। प्रश्न० १४६। धृतिर्मतिः३५१ आ।
धृतिप्रधाना मतिः। योगसंग्रहे षोडशो योगः। आव. धारित्तए- धारयितुं परिग्रहे धर्तुम्। बृह० २०१ अ। દ૬૪ उवभोगो। स्था० १३८1 धर्तुं परिग्रहे। स्था० १३८॥ धिक्कार-धिगधिक्षेपार्थ एव तस्य करणं-उच्चारणं धारिया-धारकाः। आव० ३५७)
धिक्कारः। स्था० ३९९। धारिवारिय-धाराप्रधानं वारि जलं येषु तानि
धिक्कारिज्जमाणी-धिक्क्रियमाणा धारावारिकाणि। भग०६१७
धिक्शब्दविषयीक्रियमाणा। ज्ञाता० २००१ धारेइ-धारयति आत्मनि लीनं धत्ते। दशवै.६८ धिग्जातीयः-नीचपुरुषः। नन्दी० १५२। आचा० १३२ धारेज्ज-धारयेत् व्यापारयेत्। भग० २२३।
धिग्वर्ण-मरुकः। दशवै० २५९। उत्त०६१। धिग्जातीयःधारेमाणीओ- धारयन्त्यः-वीजयन्त्यः। जम्बू० ८२ ब्राह्मणः। दशवै०१८४
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[104]
"आगम-सागर-कोषः" [३]