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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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आ।
ढंका- ढङ्कारः-काकविशेषः। जम्बू. १७२। लोमपक्षि- ३०३। निश्चिये। प्रज्ञा०३०३। तम्। बृह० १२३ विशेषः। प्रज्ञा०४९।
णंगलई-साधारणबादरवनस्पतिकायः। प्रज्ञा० ३४। ढंकादी- ढङ्कादिः। आव० ३४८१
णंगला-नङ्गला-ग्रामविशेषः। आव. २०५१ ढंकिउं- छादित्वा। आव०६६१।
णंगलिअ-लाङ्गुलिकाढंकुण-चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। प्रज्ञा०४२।
गलकावलम्बितसुवर्णादिमयहलधारिणो भट्टविशेषः। ढंढो-ढण्ढः- ढण्ढकुमारः, जन्मान्तरनाम्ना कृषिपारासरः जम्बू. १४२
वासुदेवसुतः, अलाभपरीषहे दृष्टान्तः। उत्त० ११८ णंगोला- नाङ्गोलिक नामा अन्तरद्वीपः। प्रज्ञा० ५०| ढक्का -भेरी। राज०२७।।
णंगोलाभंगसिरोधरे- लाङ्गलाभङ्गवत्ढक्किंत- ढक्कयताम्। बृह. २५आ।
सिंहादिपुच्छवक्रीकर-णमिव शिरोधरा ग्रीवा यस्य स। ढक्कितो-स्थागितदवारः। व्यव. १३८ अ।
ज्ञाता०९६| ढक्कियं-स्थगितम्। दशवै. ९४१
णतं- (देशी०) वस्त्रशिल्पम्। आव० १३२ ढक्केंति-स्थगयन्ति। ब्रह. १६७ अ।
णतंए- गच्छमपेक्ष्य सदौपग्रहिकं नन्तकंढक्केउं-स्थगयित्वा। आव० ६५१।
मृताच्छादनसमर्थं वस्त्रम्। आव०६२९। ढड्ढरं- यत् महता शब्देनोच्चारयन् वन्दते, कृति णंतगं-अणंतगं-कम्बलादिवस्त्रम्। ओघ० ३४। वस्त्रम्। कर्मणि एकत्रिंशत्तमो दोषः। आव० ५४४१
बृह. ६८ आ। ढड्ढरं-महान्तं स्वरम्। ओघ० १३७।
| णंद-नन्दः-पाटलीपुत्रे राजा। उत्त० १०५। राजगृहे ढड्ढरसरो- ढड्ढरस्वरः-महास्वरेण भाषकः। बृह. ५४ मणिकारश्रेष्ठी। ज्ञाता० १७८ नन्दः-कुसुमपुरराजा।
दशवै०५२। नन्दः-चन्द्रगुप्तनिष्काशितः। दशवै. ९१| ढड्ढराभासा- ढड्ढरभाषा-स्थूरस्वरभाषा| व्यव० ५४ आ। नन्दः-गङ्गायां नाविकविशेषः। आव० ३८९। नन्दःढड्ढरेण-उच्चैः। ओघ. १७७
परिणामिकी-बुद्धिदृष्टान्ते वणिग्विशेषः। आव० ४३६। ढिंक-ढिङ्कः पक्षिविशेषः। प्रश्न.1
सम० २९। ज्ञाता० १७८, १५२| ढिंकणे- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। उत्त० ६९६। णंदग-नन्दकः-खङ्गविशेषः। प्रश्न ७७ ढिंकुणा-ढिंकुणा, मत्कुणाः। जम्बू० १२४।
णंदण-सप्तमो बलदेवः। आव० १५९| मायोदाहरणे ढुक्कड़-ढौकत। आव० ३६९।
कोशलपुरे श्रीमतीकान्तिमती पिता। आव० ३९४१ जम्बू. ढुक्काहि-व्रज। आव०३९६|
३५९ ढक्को- स्पृष्टः। आव० ३५१। आश्रितः। आव. ३९९| | णंदणवण-नन्दनवनं-विजयपुरनगर उद्यानम्। विपा० ढक्कोमि-आगतोऽस्मि। आव० ८१२१
९५। रैवतके उद्यानम्। ज्ञाता०९९| ढेक्कियं-दृप्तम्। आव०७१९।
णंदनवणकूडे-नन्दनवनकूटं, नन्दनवनकूटनाम। जम्बू. ढेणिकालः- तिड्डः। अनुत्त०४।
३६७ ढेणिया- ढेणिका-ककढेणिका, पक्षिविशेषः। अनुत्त०४१ | णंदणवने-नन्दनवनं, नन्दयति-आनन्दयति ढेणियालग-ढेणिकालकः-पक्षिविशेषः। प्रश्न०८1
देवादीनिति नन्दनम्। ढोंढसिवा-हेलना। आव. २१९।
णंदा-नन्दति नन्दयतीति वा नन्दः-समृद्धः ढोक्कति- ढोकयति। बृह० ७८ अ।
समृद्धिप्रापको वा। ज्ञाता० ५५ स्था० २३०, २३१। नन्दाढायं- गमनं-मिलितम्। आव० ३८३।
पूर्वदिग्रूचकवास्तव्या दिक्कुमारी। आव० १२२। नन्दा-x-x-x-x
सुगुप्ता-मात्यपत्नी मृगावतीवयस्या च। आव० २२२
नन्दा-अच-लभातमाता। आव० २५५ नन्दाणं- एनम्। आव० १७५पिण्ड० १२२॥ एत्तम्। उत्त० १८५
दक्षिणदिग्भाव्यञ्जनपर्व-तस्य दक्षिणस्यां पुष्करिणी। इमं भरतराजा इत्यर्थः। जम्बू० २३३। निश्चितम्। प्रज्ञा० |
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]