________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
[Type text]
प्रश्न. ४६। धनुर्वेदादौ कृतपरिश्रमः। बृह० ८५। | कयमालक-तमिश्रागुहाधिपसुरः। जम्बू० २५५ कयकिच्चोवक्खरं- नगरे समानीय अस्थाने भाण्डक्षेपी | कयमालगो-कृतमालकः-कोणिकघातको देवः। आव. भाटिकः। बृह. ११ आ।
६८७ कयकुरुकय-कृतकुरुकुचः-कृतकुलः। व्यव० १६१ आ। कयमालयं-कृतमाल्यं तमिश्रागृहाया देवः। आव० १५० कयगं-कृतकम्। आव० १७३।
कयमाला-कृतमाला-दुमजातिविशेषः। जम्बू. ९८। कयग्गह- कचग्रहः-मैथुनसंरम्भे मुखचुम्बनाद्यर्थं | कयरूवो-रुवगाभरणादि, कयरूपो। निशी० ८७ अ। युवत्याः पञ्चाङ्गुलिभिः केशेष ग्रहणम्। जम्बू. १९३।। | कयरे- कतराणि। अनुयो०६७। कयग्गाह-मैथुनसंरम्भे यत् युवतेः केशेष ग्रहणं स कयरेहिंतो-कान्याश्रित्य। अनुयो०६७। कचग्रहः। राज० २३
कयलक्खण-कृतफलवल्लक्षणः। भग०६६२। कयग्गाहगहियं- कचग्राहगृहीतं-मैथुनप्रथमसंरम्भे कृतलक्षणाः-कृतफलवच्छरीरलक्षणाः। ज्ञाता०२५१ मुखचुम्बना-यर्थं युवत्याः पञ्चाङ्गुलिभिः केशेषु ग्रहणं | कृतलक्षणः। उत्त० ३२९। तेन कचग्राहेण गृहीतम्। जीवा० २५५)
कयलगं-चिब्भिडं, जरठ, तपसावि वा। निशी. १५७ कयजोग्गो-कृतयोगः-कर्कशतपोभिरनेकधाभावितात्मा। | कयलिसमागमो-कदलीसमागमः। आव २०७। व्यव० ११३॥
कयली-कदली-वनस्पतिविशेषः। ज्ञाता०९५१ कयत्तंतिया-कतनी। बृह. २८ अ।
कयल्लयं- कृतम्। ओघ० ४६। कयत्था-कृतार्थाः कृतप्रयोजनाः। ज्ञाता० २४॥ कयवणमालपिया-कृतवनमालपिता-हस्तिशीर्षनगरस्य कयत्थिउ-कदर्थितुम्। दशवै० ४१]
पुष्प-करण्डकोद्याने यक्षः। विपा. ८९। कयत्थे- कृतार्थः। उत्त० ३१९। कृतस्वप्रयोजनः। भग० कयवम्मा-कृतवर्मा-विमलजिनपिता। आव० १६१। सम. ६६
१५१ कयपंजली- कृतप्राञ्जलिः-पृच्छादिषु कृताः प्राञ्जलयो कयवर-कचवरः। उत्त० ५९२ पत्रतृणधूलिसमुदायः। यैस्ते। आव० १००
आचा०५५ कयपंसु-कजप्रसवः-पद्मक्स्मः । ज्ञाता०६९।
कयवरुज्झिय-कचवरोज्झिका-अवकरशोधिका। ज्ञाता० कयपज्जत्तिय-कृतपर्याप्तिकः-कृतकार्यः। उत्त० २१० | ११९। कयपडिकिई- उपकृतस्य प्रतीकारः। बृह० २९९ आ। | कयवरो- बहु झुसिरदव्वसंकरो कयवरो। निशी० २५६) कृतप्रतिकृतिर्नाम-प्रसन्ना आचार्याः सूत्रादि दास्यन्ति | कयविक्कय-क्रयविक्रयौ। भग० १९९। न नाम निर्जरेति मन्यमानस्याहारादिदानम्। सम० | कयविहव-कृतविभवाः कृतसफलसंपदः। ज्ञाता० २५ ९५१
कयवेयदिए- कृतवितर्दिकं-रचितवेदिकम्। औप. ५ कयपडिकिरिया-कृतप्रतिक्रिया-अध्यापितोऽहमनेनेति- कृतवितर्दिकम्-रचितवेदिकम्। निर० १-१९। बुद्ध्या भक्तादिदानमिति। ओप०४३।
कयव्वय-कृतव्रता-उपस्थापिता इत्यर्थः। व्यव. १०० कयपडिक्किई-कृतप्रतिकृतिः-प्रसन्ना आचार्याः सूत्रमर्थं | कयव्वयकंमे-कृत-अनुष्ठितं व्रतानां-अनुव्रत्तादीनां तदुभयं वा दास्यन्ति न नाम निर्जरति आहारादिना । कर्मत-च्छ्रणज्ञानवाञ्छाप्रतिपत्तिलक्षणं येन यतितव्यम्। दशवै. ३१।
प्रतिपन्नदर्शनेन स कृत-व्रतकर्मा कयपुन्न-जन्मान्तरोपात्तसुकृतः। ज्ञाता० २५। प्रतिपन्नाणुव्रतादिरितिभावः। सम० २९। कृतपण्यः । भग०६६२|
कयव्ववसाअ- कृतव्यवसाय। आव०२९० कयबलिकम्मा-स्वगृहे देवतानां कृतबलिकर्मा। निर०७ | कया-कृता-परिनिष्ठाता। ओघ० १९९। कृतबलिकर्मा। दशवै. ९८४
कयाइ-कदाचिदित्ति-वितर्कार्थः। भग० ६८३। कयमालए-कृतमालकस्तमिश्राधिपतिः। जम्बू०७४। कयाणुराग-कृतानुरागः-विहिताभिष्वङ्गः। उत्त० ३८६)
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[28]
"आगम-सागर-कोषः" [२]