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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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यह्रस्वीकरणम्। भग. ९२०| छेदः-तपसा दुर्दमस्य छेयसारहि-छेकसारथिः दक्षप्राजिता। भग. ३२२।। श्रमण-पर्यायच्छेदनम्। आव०७६४। जीवादिद्रव्यस्य छेयसुय-छेदश्रुतानि-प्रकल्पव्यवहारादीनि। व्यव० ११५ विभागः। स्था० ३४६। व्यव० ३४१ आ।
अ। निशी. २८१ । छेदन-क्षपणम्। उत्त०५९३।
छया- छेदाः-अर्थच्छेदाः। व्यव० ९० आ। छेकाःछेदनकः-उदकाश्रितजीवः। आचा० ४६।
प्रस्तावज्ञाः। उपा०४६। छेका-निपुणा। भग० १६७, ५२७। छेदारिहं-छेदार्ह दिनपञ्चकादिना क्रमेण पर्यायच्छेदनम् ज्ञाता०३६| । औप० ४२। प्रव्रज्यापर्यायह्रस्वीकरणार्हम्। भग० ९२०। | छरित्ता- हदित्वा। उत्त. १६९। आव० ३१९। छेदेत्ता-छित्वा-व्यवच्छेदय। ज्ञाता०७७
छेला- छगलकः। उत्त० १३८1 छेदोदइए- छेदश्च व्यय औदयिकश्च लाभः छेदौदयिकम् | छेलावणय-छेलापनकं-उत्कृष्टबालक्रीडापनं, । बृह० २३आ।
सेण्टिताद्यर्थ-वाचकम्। आव० १२९। छेदोवट्ठावण- छेदः-पूर्वपर्यायस्य उपस्थापना च महाव्रतेषु । | छेलिअ-सेंटितं हर्षोत्कर्षेण सीत्कारकरणम्। जम्बू. यस्मिन् चारित्रे तच्छेदोपस्थापनम्। प्रज्ञा०६४।
२०६। छेदोवद्वावणिय- छेदश्च पूर्वपर्यायस्योपस्थानं च व्रतेषु । छेलिय- सेंटितं-सीत्कारकरणम्। प्रश्न०४९। मुखवादित्रम् यत्र तत्छेदोपस्थानं तदेव छेदोपस्थापनिकं, ते वा | बृह. २४७ आ। विद्यते यत्र तच्छेदोपस्थापनिकमथवा
छेव- छेवकं-अशिवम्। ब्रह. १५९ आ। पूर्वपर्यायच्छेदेनोपस्थाप्यते, आरोप्यते
छेवइओ-अशिवगृहीत। बृह. १५० आ। यन्महाव्रतलक्षणं चारित्रं तच्छेदोपस्थापनीयम्। स्था. छेवग-असिवं। निशी० ७५आ। मारि। व्यव० १२६ अ। ३२३। पूर्वपर्यायच्छेदोपस्थापनीयं-आरोपणीयं
छेवट्टिया- छेवट्टिका, संहननविशेषः। ओघ. २२७। छेदोपस्थापनीयं, व्यक्तितो महाव्रतारोपणम्। स्था० छेवढे- यत्रास्थीनि परस्परं छेदेन वर्तन्ते न १६८1
किलिकामात्रेणापि बन्धस्तत् छेदवति। जीवा० १५, ४२॥ छेदोवट्ठावणियकप्पद्वितो-पर्वपर्यायच्छेदोपस्थापनीयं छेवतितो-असंविग्गहितो। निशी. २९३ आ। आरो-पणीयं व्यक्तितः महाव्रतारोपणं
छेवाडिया-छेवाडिनाम वल्लादिफलिका। राज० ३३। तस्थितिश्चोक्तलक्षणेष्वेव दशस स्थानकेष्ववश्यं | छेवाडी- दीहो हस्सो वा पिहलो अप्पबाहल्लो छेवाडी पालनलक्षणा। स्था० १६८१
अहवा तनपत्तेहिं उस्सीओ छेवाडी। निशी० ६१ अ। छप्प- पच्छम्। विपा०४९।
छोटियं-छोटितं-स्फोटितम्। औप०१७ छेय-छेकः। औप० ४। छेदः-पुष्पफलादेः खण्डनम्। छोडिओ- छोटितः। आव० ३९९। पिण्ड० १६१। छेकः-दक्षः। आव०७०। ज्ञाता०५८। छोडिज्जति- छणिज्जति। निशी. १९२ अ। अपच्छेदः। औघ०७२। छेकः-निपुणः। ज्ञाता० २२१| छोडियं- छोटितं-घट्टितम्। प्रश्न. ८२ स्था० २००१
छोडियपडियं-छोटितपतितम्। आव. २१८१ छेयकरे-छेदनकरम्। आचा०४२५
छोड़ें- छोटयित्वा। निशी० ३७ अ। निक्षिप्य। आव. २९५ छेयगं- छेदकम्। सूर्य. ११३
स्थापयित्वा। आव. १९६| छयण-छेदनं-कर्मणः स्थितिघातः। स्था० २११
छोता- विदारणं। निशी० ५६ आ। विभजनम्। स्था० ३४६। विरहः। स्था० ३४६। छेदनं- छोभ-अभ्याख्यानम्। बृह. १६४ आ। बृह० ३१ अ। उत्तरोत्तरश-भाध्यवसायारोहणात्स्थितिहासजननम्। छोभगं-कलकम्। निशी० २५२ अ। अब्भक्खाणं। आचा० २९८१
निशी० ९४ आ। अभ्याख्यानम्। व्यव० २०४ अ। छयणग-छेदनकं-राशेरीकरणम्। अनयो. २०७। छोभगदिन्नो-अभ्याख्यानं दत्तं यस्मिन स छेयणयं- छेदनकम्। प्रज्ञा. २८१।
छोभगदत्तः। व्यव. २०६ आ।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]