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[Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
[Type text] चउरंस- चतुरस्र-चतुष्कोणम्। जीवा० २७६। चतुरस्रः। । ६० सम०६१। चक्रं-आज्ञा। व्यव० २२८ अ। चक्रं-अरम्।
भग० ८५८| चतुरस्रः-संस्थानविशेषः। प्रज्ञा. २४२। प्रश्न०४८ चउरंससंठाणपरिणया-चतुरस्रसंस्थानपरिणताः। प्रज्ञा० | चक्कग- चक्रकं-भूषणविधिविशेषः। जीवा० २६९| चक्रकं११॥
चक्राकारः-शिरोभूषणविशेषः। जम्बू. १०६। चउर-चतुरः-दक्षः। स्था० ३९७। अनुयो० १३३।
चक्कझया-चक्रालेखरूपचिह्नोपेताः ध्वजाः। जम्बू०६० चउरग-चकोरकः-पक्षिविशेषः। प्रश्न. 1
चक्कद्धचक्कवालसंठिया-चक्रार्द्धचक्रवालसंस्थिताः। चउवग्गो-णामवत्थव्वा संजयासंजत्तीओ वि आगंतुगा सूर्य. ३६। संजता संजतीओ य। निशी. १५५आ।
चक्कया-चक्रध्वजाः-चक्रालेखरूपचिह्नोपेता ध्वजाः। चउवीसइत्थय- चतुर्विंशतिस्तवः-आवश्यकसूत्रे जीवा० २१५५ द्वितीयम-ध्ययनम्। आव०४९९।
चक्कपुरं- चक्रपुरं-कुन्थुजिनस्य प्रथमपारणकस्थानम्। चउसद्विआ- चतुष्पलप्रमाणा-चत्षष्ठिका। अनुयो० १५१। आव० १४६। पुरुषपुण्डरीकपुरम्। आव० १६२। चउसद्विकला- चतुःषष्ठिकला। आव० ५५।
चक्कपुरा- चक्रपुरा-राजधानी। जम्बू० ३५७। स्था० ८०| चउसद्विगुणा- चतुःषष्ठिगुणा। उत्त० ४८४॥ चक्कमंतो- चक्रम्यमाणः। आव० ४१२। चउसट्ठिया- चतुषष्ठिका-पलं मानविशेषः, तस्यैव चक्कमज्झभूमी- चक्रमध्यभूमिः। आव०४१७। चतुषष्ठि-तमांशस्वभावापलमिति तात्पर्यम्। भग. चक्कयरो-चक्रकरः। आव०६१६। ३१३
चक्करयणे- चक्रवतरकेन्द्रियं प्रथमं रत्नम्। स्था० ३९८१ चउसरणगमण
चक्कला- पादानामधःप्रदेशः। जम्बू. ५५ जीवा. २१० अर्हत्सिद्धसाधुकेवलिप्रज्ञप्तधर्मशरणकरणम्। चतु चक्कलिकाभिन्न-तिर्यक्बृहत्कत्तलिकाकृतम्। बृह. चउसाले- निशी० २६० अ।
१७५ चउसालयं-चतुःशालकम्। जीवा० २६९।
चक्कलिय-चक्रम्। निशी. १२४ आ। चउसुवग्गेस्-संजतिसंजयसावगसाविगाण य एते। चक्कवट्टिविजय-पुष्कलावर्ते सप्तमो विजयः स एव निशी० २२७ आ।
चक्रव-तिविजेतव्यत्वेन चक्रवर्तिविजयः। जम्ब० ३४९। चओ-चयः-स्तोकतरा वृद्धिः। पिण्ड०४१। पिण्डनेत्यर्थः। | चक्कवट्टि- ऋद्धिप्राप्तार्यभेदः। प्रज्ञा० ५५ चक्रवर्तिनः निशी. २० आ।
चतु-र्दशरत्नाधिपाः, षट्खण्डभरतेश्वराः। आव०४८१ चओवचइयं-चयापचयिकं-वृद्धिहान्यात्मकम्। आचा. चक्रेण रत्नभूतप्रहरणविशेषेण वर्तितं शीलं येषां ते ६६।
चक्रवर्तिनः। स्था० ९९। चकार-छकार-जकार-झकार-कार-प्रविभक्तिनाम- चक्कवाग- चक्रवाकः-रथाङ्गः। प्रश्न०८। षोडशो नाट्यविधिः। जीवा. २४७।
लोमपक्षिविशेषः। जीवा०४१। चक्क-चक्र-सुदर्शनम्। उत्त० ३५० अरघट्टयन्त्रिकाच- चक्कवालं-चक्रवालं विशेषस्य सामान्येऽनप्रवेशात्। क्राणि। ज्ञाता०श रथाङ्गम्। सूर्य०६९। रथाङ्गं समच-क्रवालम्। जम्बू० ३६७ मण्डलम्। प्रज्ञा० ६०० अरघट्टाङ्गं वा। औप० ३। चक्रम्। आव० ८२९। ओघ० १३॥ सूर्य०६९। जीवा. १७८ चक्रवालं-सर्वं परिमण्डलरूपम्। प्रहरण-विशेषः। आव० ४८७ जीवा० ११७। प्रहरणम्। जीवा. २६६। चक्रवालं-सर्वतः परिमण्डलरूपम्। जम्बू० आव०५८५। रायचिंधसहियं स-चक्कं| निशी. ३५८ ।। १०२। चक्रवालः-नगरविशेषः। आव० १४४| चक्रवालंचक्रं-तिलयन्त्रम्। बृह. १९९ आ। तिलपीडनयन्त्रम्। चक्रम्। भग० १८८। चक्रम्। आतु० चक्रवालं-जलपरिमाबह० २२१ अ। तिलपीलगं| निशी०६१ आ। चक्रः- ण्डल्यम्। सम० १२७ रत्नभूतप्रहरणविशेषः। स्था० ९९| चक्रः-वैश्रम-णस्य | चक्कवालविक्खंभ- चक्रवालविष्कम्भः-वृत्तव्यासः, इदं पत्रस्थानीयो देवः। भग० २००| चक्रं-धर्मचक्रम्। ओघ० | च प्रमाणयोजनमवसेयम्। सम०६|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]