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प्रकाशक की प्रार्थना।
इस समय मनुष्यों की आयु और बुद्धि बहुत थोड़ी है इसी लिये समस्त ऋषि प्रणीतग्रन्थों का कण्ठस्थ रखना सम्भव नहीं है, ऐसी दशा में जक निघंटुकृत शब्दों का कहीं अप्रचलित शब्द श्लोक में आ जाता है तो विद्वानों को अवाक रह जाना पड़ता है और बहुत परिश्रम से उसका पता लगाना पड़ता है, कभी २ पता नहीं भी मिलता है इस कठिनता को दूर करने के लिये मैं बहुत परिचिन्तित था किंतु अकारादि क्रम से शब्दों का कोष तैयार करने से वह असुविधा दूर हो गई, यद्यपि ऐसा करने में हमें बहुत श्रम और खर्च करना पड़ा था और पुस्तक भी इतनी बड़ी बन गई कि हम एक दम उसके छपाने से झिझक उठे इसी लिये उस प्रति को जो १२ निघंटु ग्रन्थों की खोज से लिखी गई थी स्थगित कर सिर्फ एक निघंटु के आधार पर नमूना स्वरूप केवल काष्टीषधि शब्द प्रकाशित कर यह देखने की इच्छा हुई कि देखें इसमें कितना लाभ होता है और ऐसे कोष की कितनी मांग होती है क्या-क्या इसमें
और बढ़ाने से यह विशेष उपकारी हो सकता है कुछ मेरी अल्पमति एबं प्रेस कर्मचारियों की असावधानी से इसमें कुछ भेद पड़ जाना निहायत सम्भव है। बिदजन उसे संभाल कर मुझे सूचित करदें, ताकि तृतीय संस्करण में में उसे टोक कर सकू आशा है कि सब प्रकार से मेरे उत्साह को बड़ावेंगे ताकि तीसरा पूर्ण कोष काष्टौषधि एबं धातु
औषधशब्दयुक्त "बैद्यक शब्द कोष" को प्रकाशित करके शीघ्र से शीघ्र इस कमी को पूरा करने में मैं समर्थ होऊँ-यदि इसमें कुछ भी लाभ विद्वानों व विद्यार्थियों को हुआ तो मैं अपने श्रम को सफल समझूगा।
विदुषांविनीतः ।
वैद्यराजः .
वद्यराजः
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