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को बदल दिया था। उस युग का गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह आचार्य हेमचन्द्र के व्यक्तित्व और विद्वत्ता से विशेष प्रभावित था। उसके दरबार में आचार्य श्री को उच्चासन प्राप्त था। नरेश सिद्धराज की प्रार्थना पर ही आचार्य हेमचन्द्र ने 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि भारत भर में हुई। हाथी के होदे पर रखकर इस ग्रन्थ को नगर प्रवेश कराया गया था। तीन सौ लिपिकों ने इस ग्रन्थ की कई प्रतियां तैयार कर भारतवर्ष के सभी प्रमुख पुस्तकालयों में इसे पहुंचाया था। ____ आचार्य हेमचन्द्र ने विपुल साहित्य का सृजन किया। कहते हैं कि अपने जीवन काल में उन्होंने साढ़े तीन करोड़ श्लोकों की रचना की। उस युग में प्रचलित समस्त विषयों पर उन्होंने ग्रन्थों की रचना की। सिद्धहेमशब्दानुशासन, कोषग्रन्थ, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, द्वात्रिंशिकाएं, द्वयाश्रय महाकाव्य, योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा, परिशिष्ट पर्व, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थ विभिन्न विषयों के ग्रन्थ हैं। आज का विद्वद्वर्ग आचार्य हेमचन्द्र की सुविशाल और गहन साहित्य साधना पर चकित है। ___ आचार्य हेमचन्द्र की कृपा के फलस्वरूप ही सिद्धराज जयसिंह की मृत्यु के पश्चात् कुमारपाल गुजरात के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। कुमारपाल आचार्य श्री का परम भक्त था और उनकी आज्ञाओं का पूरा सम्मान करता था। उसने अपना साम्राज्य आचार्य श्री के चरणों पर अर्पित कर दिया था। आचार्य श्री के कथन पर कुमारपाल ने गुजरात में अमारि की घोषणा की थी। संक्षेप में कहा जा सकता है कि आचार्य हेमचन्द्र का युग जैन धर्म के महान उत्कर्ष का युग था। ___84 वर्ष की अवस्था में वी.नि. 1699 में आचार्य हेमचन्द्र का स्वर्गवास हुआ। -प्रभावक चरित्र हेमचन्द्र मलधारी (आचार्य)
___ उत्कृष्ट आचार और प्रकृष्ट विचार के संवाहक एक जैन आचार्य । दीक्षा से पूर्व वे राजमंत्री के पद पर प्रतिष्ठित थे। उनकी चार पत्नियां थी। मंत्री पद और पत्नियों के बन्धन को तोड़कर हेमचन्द्र मलधारी अभयदेव सूरि के पास प्रव्रजित हो गए। प्रौढ़ावस्था में दीक्षित होने पर भी उन्होंने अध्ययन के क्षेत्र में काफी प्रगति की
और आगम-आगमेतर साहित्य के पाठी बने। __ आचार्य हेमचन्द्र की प्रवचन शैली काफी रोचक और प्रभावक थी। जब वे उच्च घोष पूर्वक प्रवचन करते तो राह चलते लोग रुक जाते और उनकी श्रोता परिषद् में आ बैठते। साहित्य सृजन के क्षेत्र में भी । आचार्य मलधारी ने पर्याप्त सुयश अर्जित किया। उनके कई ग्रन्थ वर्तमान में भी उपलब्ध हैं।
पाटण नरेश सिद्धराज जयसिंह आचार्य श्री का परम भक्त था। उनके प्रवचनों में वह अक्सर उपस्थित रहता था। आचार्य श्री का स्वर्गवास सात दिन के अनशन के साथ समाधिपूर्वक हुआ। वे वी.नि. की 17वीं शताब्दी के मान्य आचार्य थे। हैमवन्त कुमार
इनका समग्र परिचय गौतम वत् है। (देखिए-गौतम) -अन्तगडसूत्र, द्वितीय वर्ग, चतुर्थ अध्ययन होलिका
वसंतपुर नगर के निवासी विप्र देवप्रिय की पुत्री। उसका जन्म शीतऋतु में हुआ था। शीतऋतु में अर्धपक्व धान्य को अग्नि में पकाकर खाया जाता है जिसे होला कहते हैं। होला के अवसर पर जन्म लेने से उक्त बालिका का नाम होलिका प्रचलित हो गया। ... जैन चरित्र कोश ...
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