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आचार्य हीरविजय के कई चामत्कारिक प्रसंग साहित्यिक पृष्ठों पर अंकित हैं। भानुचंद्र और सिद्धिचन्द्र आचार्य हीरविजय के प्रमुख शिष्य थे।
-पट्टावली समुच्चय हुकुमचंद जैन कानूनगो (अमर शहीद)
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सभी जातियों और धर्मों के लोगों ने समान रूप से भाग लिया था। स्वतंत्रता संग्राम की बली-वेदी पर अपने जीवन को होम देने वाले अमर बलिदानियों की लंबी श्रृंखला है। उसी श्रृंखला में एक नाम है-लाला हुकुमचंद जैन का।
___ लाला हुकुमचंद जैन हांसी (हरियाणा) के रहने वाले गोयल गोत्रीय अग्रवाल जैन थे। उनका जन्म सन् 1816 में हांसी में हुआ था। वे सुशिक्षित, उदार और वीर थे। वे फारसी भाषा के विद्वान थे। उन्होंने फारसी भाषा में कुछ पुस्तकें भी लिखीं। गणित में भी उनकी रुचि थी। दान-पुण्य और परोपकार के अनुष्ठानों में वे सदैव आगे रहते थे।
लाला हुकुमचंद जैन के मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर से मैत्रीपूर्ण संबंध थे। बादशाह ने उनको हांसी और करनाल क्षेत्रों का कानूनगो नियुक्त किया था। इस पद पर रहते हुए लाला जी ने समाज सेवा के प्रशंसनीय कार्य किए।
सन् 1857 में भारतवर्ष में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ। उस स्वतंत्रता संग्राम में श्री हुकुमचंद जैन ने अपूर्व शौर्य का परिचय दिया। लाला जी के एक मित्र थे-मिर्जा मुनीर बेग। लाला जी और मिर्जा मुनीर बेग ने बादशाह बहादुर शाह जफर को अपने रक्त से एक पत्र लिखा था जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में अपना पूरा सहयोग देने का विश्वास दिलाया गया था। साथ ही उन्होंने बादशाह से संग्राम के लिए शस्त्रास्त्रों की सहायता की मांग की थी।
हुकुमचंद जी ने मित्र मिर्जा बेग के साथ मिलकर हांसी और आस-पास के गांवों के अनेक युवकों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। युवा शक्ति का एक बड़ा संगठन उन्होंने तैयार किया। अंग्रेज सेना दिल्ली पर धावा बोलने के लिए जब हांसी से गुजर रही थी, तब लाला जी और उनके मित्रों ने उसके मार्ग को रोक लिया। सशस्त्र संघर्ष में लाला जी और उनके संगठन ने अंग्रेज सेना को भारी क्षति पहुंचाई। परंतु समय पर बादशाह की ओर से शस्त्रास्त्रों की प्राप्ति न होने के कारण युद्ध में लाला जी को अपने कई मित्रों की प्राणहानि झेलनी पड़ी।
बाद में अंग्रेजों ने दिल्ली पर आक्रमण करके बहादुरशाह जफर को गिरफ्तार कर लिया। बादशाह की निजी फाइलों से श्री हुकुमचंद जी जैन एवं मिर्जा मुनीर बेग द्वारा लिखित पत्र अंग्रेज कमाण्डर ने प्राप्त किया। उसी पत्र को आधार बनाकर अंग्रेजों ने चक्रव्यूह की रचना कर लाला जी और मिर्जा बेग को हांसी से गिरफ्तार कर लिया। लाला जी के 13 वर्षीय भतीजे फकीरचंद को भी गिरफ्तार किया गया। हिसार में स्थित अंग्रेज अदालत में संक्षिप्त मुकदमे के बाद लाला जी और मिर्जा बेग को फांसी की सजा सुनाई गई। फकीरचंद को अदालत ने मुक्त कर दिया। ____19 जनवरी 1858 के दिन लाला जी और मिर्जा बेग को हांसी में उनके अपने घर के समक्ष सरे-आम फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। जिस समय लाला जी को फांसी के फंदे पर लटकाया गया उस समय उनका 13 वर्षीय भतीजा उक्त दृश्य को देखने के लिए वहां उपस्थित था। अंग्रेज अफसर ने क्रूरता और अन्याय की सीमाओं को पार करते हुए उस निर्दोष बालक को भी पकड़ कर फांसी के फंदे पर लटका ... जैन चरित्र कोश...
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