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सौभाग्यमंजरी
कौशाम्बी के महाराज शतानीक की पुत्री। उसका पाणिग्रहण धन्य जी से किया गया था। (देखिएधन्य जी) सौभाग्यसुंदरी
(देखिए-श्रीपाल) (क) स्कंदक (कुमार)
स्कंदक अथवा खंधक कुमार श्रावस्ती नगरी के महाराज जितशत्रु और महारानी धारिणी का अंगजात था। उसकी सहोदरा का नाम पुरन्दरयशा था जो दंडक देश की राजधानी कुंभकटकपुर के राजा दंडक के साथ विवाहित हुई थी। दण्डक राजा के मंत्री का नाम पालक था जो क्रूर और धर्मद्वेषी था। किसी समय पालक श्रावस्ती आया। स्कन्दक और पालक के मध्य सहज वार्ता धर्मचर्चा में बदल गई। पालक ने जैन धर्म की निन्दा की तो स्कन्दक ने जैन धर्म के पक्ष में तर्क पुरस्सर विवेचना प्रस्तुत करते हुए उसे निरुत्तर कर दिया। इससे पालक तिलमिला उठा। स्कंदक कुमार के प्रति द्वेष की गांठ बांधकर वह अपने नगर लौट गया।
वह युग भगवान मुनिसुव्रत स्वामी का शासन काल था। किसी समय भगवान श्रावस्ती नगरी में पधारे तो स्कन्दक भगवान का उपदेश सुनकर विरक्त हो गया और उसने पांच सौ राजपुत्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। अल्पकाल में ही वह आगमों का पारगामी वेत्ता बन गया।
स्कंदक मुनि के मन में एक बार यह भाव जगा कि वह अपने पांच सौ साथी मुनियों के साथ विचरण करे और कुंभकटकपुर जा कर अपनी सहोदरा पुरन्दरयशा को प्रतिबोधित करे। उसने एतदर्थ भगवान से अनुज्ञा चाही तो भगवान ने स्पष्ट किया कि वहां उसे मुनिसंघ सहित मरणान्तक उपसर्ग झेलना होगा। आराधक-विराधक के संदर्भ में स्कन्दक द्वारा उपस्थित की गई जिज्ञासा का समाधान करते हुए भगवान ने कहा कि उसके अतिरिक्त सभी मुनि आराधक होंगे। साथी मुनियों के हित पर अपने हित को अदेखा कर स्कन्दक अपने पांच सौ साथी मुनियों के साथ विचरण करते हुए कुंभकटकपुर पधारे। वे नगर के बाह्य भाग में एक उपवन में ठहर गए।
पालक को जब यह ज्ञात हआ कि राजकमार स्कन्दक. मनि बनकर पांच सौ मनियों के साथ उसके नगर में आया है तो उसके भीतर सोया हआ द्वेष भाव पर्ण वेग के साथ जाग उठा। उसने एक षडयन्त्र रचा। उसने उपवन के आस-पास शस्त्रास्त्र गड़वा दिए और अपने राजा दण्डक के कान भर दिए कि उसका साला स्कन्दक मुनिवेश धर कर उसका राज्य छीनने आया है। उसके साथ मुनिवेश में पांच सौ सैनिक हैं। राजा को विश्वास दिलाने के लिए उसने उपवन के आस-पास भूमि में गड़े शस्त्रास्त्र भी दिखा दिए। अविवेकी राजा को पालक की बात पर विश्वास हो गया और उसने उसे ही मुनियों को दण्ड देने का अधिकार दे दिया।
___ पालक को मुंह मांगा वरदान मिल गया। उसने उपवन के द्वार पर एक बहुत बड़ा कोल्हू लगवाया और उसमें मुनियों को पेलने लगा। स्कन्दक मुनियों को मुनि धर्म की शिक्षा दे रहे थे और पालक के प्रति द्वेष भाव न लाने की सीख दे रहे थे। चार सौ निन्यानवें मुनियों को कोल्हू में पील दिया गया। रक्त के नाले बह चले। मांस की गंध से चीलें और कौवे आकाश में मंडराने लगे। ...704 ...
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