________________
निरतिचार संयम की साधना द्वारा सुदर्शन मुनि सिद्धकाम बने। (ज) सुदर्शन सेठ (शूली-सिंहासन)
अंगदेश की राजधानी चम्पा का रहने वाला परम सुशील और सुरूप एक समृद्ध श्रेष्ठी। शूली को सिंहासन में बदल देने वाले उनके निष्कलंक चारित्र की गाथा जैन परम्परा में शताब्दियों से प्रचलित है। ___ सुदर्शन अपार संपदा का स्वामी था। परन्तु उसकी वास्तविक सम्पदा तो उसकी गुणशीलता, सत्यवादिता, सच्चरित्रता आदि सद्गुण थे जिनके कारण उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। इसी कारण चम्पानरेश दधिवाहन ने उसे नगर सेठ की उपाधि से अलंकृत किया था। ___उसी नगर का रहने वाला कपिल पुरोहित सुदर्शन का अंतरंग मित्र था। दोनों परस्पर एक-दूसरे के घर आते-जाते रहते थे। किसी समय कपिल की पत्नी कपिला सुदर्शन सेठ की सुरूपता पर मोहित बन गई। एक दिन जब कपिल ग्रामान्तर गया हुआ था तो कपिला ने अपनी विश्वस्त दासी को एक कल्पित समाचार के साथ सुदर्शन सेठ के पास भेजा। दासी ने सुदर्शन के पास जाकर समाचार दिया कि उसके मित्र कपिल काफी बीमार हैं और उन्हें इसी क्षण बुला रहे हैं। सरल चित्त सेठ दासी के षडयन्त्र को कैसे जान पाता ? वह उसी समय कपिल के घर पहुंचा। घर में प्रवेश करते ही दासी ने द्वार जड़ दिए। जब तक सुदर्शन कुछ पूछता, कपिला अपने कुत्सित प्रस्ताव के साथ उसके समक्ष आ खड़ी हुई। अपने साथ हुए छल से सुदर्शन परिचित बना। पर इस क्षण अपने चारित्र की रक्षा करना अहं प्रश्न था। सुदर्शन ने एक युक्ति निकाली। दीनता से स्वयं को नपुंसक बताते हुए उसकी कामना पूर्ति में स्वयं को असमर्थ जताया। कपिला को जैसे सांप सूंघ गया। उसने भर्त्सना के साथ सुदर्शन को अपने घर से निकाल दिया। ____ सुदर्शन को मित्र-पत्नी की इस बात से अत्यन्त कष्ट हुआ, पर उसे प्रसन्नता इस बात की थी कि उसने अपने चारित्र पर आंच नहीं आने दी।
किसी समय कौमुदी महोत्सव पर नगर के सभी नर-नारी अपने-अपने बच्चों के साथ नगर से बाहर आयोजित समारोह में भाग लेने जा रहा थे। सुदर्शन सेठ भी अपनी पतिपरायणा पत्नी मनोरमा और चारों पुत्रों के साथ रथ में बैठ कर उस महोत्सव में भाग लेन जा रहा था। संयोग से उनके रथ के आगे दधिवाहन की रानी अभया का रथ था। अभया और कपिला में अंतरंग मैत्री थी। सो कपिला भी रानी के रथ में ही बैठी थी। सहसा रानी की दृष्टि पीछे आ रहे रथ में बैठे सुदर्शन के पुत्रों पर पड़ी। सुदर्शन के पुत्र अपने पिता के समान सुरूप थे। रानी ने दासी से पूछा-ये किसके पुत्र हैं ? दासी ने बताया-ये हमारे नगर सेठ सुदर्शन के पुत्र हैं।
रानी के साथ-साथ यह बात कपिला ने भी सुनी। पूरी तस्वीर उसके समक्ष स्पष्ट हो गई। वह समझ गई कि सुदर्शन ने उससे छल किया है। उसने वह पूरी कथा अपनी सहेली अभया को सुनाई और उसे उकसाया कि वह रूपाभिमानी सेठ का मान-मर्दन करे। वैसा करने के लिए अभया ने कपिला को वचन दिया।
अभया रानी की एक दासी थी पंडिता। अभया को उसकी कुटिलता और स्वयं के प्रति उसकी निष्ठा पर पूर्ण विश्वास था। उसने सुदर्शन को रनिवास तक लाने का दायित्व उसे सौंप दिया। पंडिता ने युक्ति के अनुसार सुदर्शन के आकार-प्रकार की एक प्रतिमा बनवाई और उस पर वस्त्र ढ़ांप कर वह उसे महल में ले जाने लगी। पहरेदारों ने उसे टोका तो उसने प्रतिमा पटक दी और रौब दिखाया कि वह महारानी से उन्हें दण्डित कराएगी। पहरेदार भयभीत बन गए। उन्होंने क्षमायाचना तथा अनुनय-विनय पूर्वक पण्डिता को प्रसन्न करना चाहा तथा कहा कि वे भविष्य में उसे नहीं रोकेंगे। ...जैन चरित्र कोश...
-659 ...